छह माह की गर्भवती युवती को सुप्रीम कोर्ट ने दी गर्भपात की इजाजत
22 साल की इस महिला की कोख में पल रहे बच्चे की किडनियां नहीं हैं और जन्म के बाद भी बच्चे के जिंदा रहने की उम्मीद ना के बराबर है। इसी आधार पर कोर्ट ने फैसला दिया।
नई दिल्ली। विशेष परिस्थितियों को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को मुंबई की रहने वाली 23 हफ्ते की गर्भवती महिला को गर्भपात कराने की इजाजत दे दी। 22 साल की इस महिला की कोख में पल रहे बच्चे की किडनियां नहीं हैं और जन्म के बाद भी बच्चे के जिंदा रहने की उम्मीद ना के बराबर है। इसी आधार पर महिला ने गर्भपात की इजाजत सुप्रीम कोर्ट से मांगी थी।
भ्रूण की जांच के बाद मुंबई के किंग एडवर्ड मेमोरियल (केईएम) अस्पताल के मेडिकल बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट में महिला की टेस्ट रिपोर्ट दाखिल करते हुए बताया था कि गर्भ में पल रहे बच्चे के बचने की उम्मीद बहुत कम है क्योंकि बच्चे की दोनों किडनियां नहीं हैं। रिपोर्ट में बताया गया कि बच्चे के जन्म के बाद उसे कुछ दिन जीवन रक्षक प्रणाली पर ही जिंदा रखा जा सकता है।
मेडिकल
बोर्ड
से
मांगी
थी
सुप्रीम
कोर्ट
ने
रिपोर्ट
सुप्रीम
कोर्ट
ने
पिछली
सुनवाई
में
केईएम
अस्पताल
को
महिला
की
जांच
के
लिए
मेडिकल
बोर्ड
का
गठन
कर
इस
संबंध
में
रिपोर्ट
मांगी
थी।
मेडिकल
बोर्ड
ने
अपनी
रिपोर्ट
मे
महिला
की
कोख
में
पल
रहे
बच्चे
के
जिंदा
ना
रहने
की
बात
कही।
महिला
ने
मेडिकल
रिपोर्ट
को
चीफ
जस्टिस
खेहर
की
बेंच
के
सामने
रखा।
जिसके
बाद
कोर्ट
ने
महिला
को
गर्भपात
की
इजाजत
दे
दी।
कानून
के
मुताबिक
20
हफ्ते
के
बाद
गर्भपात
कराने
की
अनुमति
नहीं
है
लेकिन
कोर्ट
ने
मामले
को
जानने
के
बाद
महिला
को
गर्भपात
की
इजाजत
दे
दी।