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कश्मीर यूनिवर्सिटी से दूर जाते संस्कृत के छात्र

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नई दिल्ली(विवेक शुक्ला) कश्मीर यूनिवर्सिटी के संस्कृत विभाग को छात्रों का इंतजार है। विभाग से जुड़े प्रोफेसर और दूसरे मुलाजिम रोज इस उम्मीद में दफ्तर आते हैं कि शायद आज कोई खुदा का बंदा उनके विभाग में दाखिला ले लेगा। पर अभी तो लगता है कि खुदा भी इनकी नहीं सुन रहा। यहां के संस्कृत विभाग में पिछले दो सालों से एक भी छात्र ने दाखिला नहीं लिया।

कश्मीरी पंडित

कश्मीर यूनिवर्सिटी का संस्कृत विभाग साल 1983 में चालू किया गया था। तब इसमें काफी संख्या में छात्र आते थे। ज्यादातर तो कश्मीरी पंडित थे। कुछ छात्र मुसलमान भी होते थे।

पंडितों का पलायन

जानकारों का कहना है कि राज्य में देश विरोधी ताकतों के मजबूत होने के साथ ही संस्कृत विभाग के दिन खराब होने लगे। यहां से पंडितों का पलायन होने के चलते संस्कृत विभाग में छात्राओं का आना कम होता चला गया।

साल 1990 में संस्कृत विभाग को बंद कर दिया। उसे फिर से शुरू किया गया साल 2001 में। तब जम्मू क्षेत्र से कुछ छात्र यहां पर दाखिला लेने लगे। पर उनकी संख्या हमेशा बहुत कम ही रही।

कश्मीर यूनिवर्सिटी के संस्कृत विभाग में करीब 10 लोगों का स्टाफ है। इनमें पांच टीचर्स हैं। शेष दूसरा स्टाफ है। एक दौर में कश्मीर यूनिवर्सिटी से जुड़े रहे मनोज थुस्सु ने बताया कि पहले तो संस्कृत विभाग में काफी तादाद में छात्र आते थे संस्कृत का अध्ययन करने के लिए।

सोते रहते

पर बाद में आतंकवाद के दौर में ये विभाग खत्म सा हो गया। अब तो इधर के टीचर्स सारा दिन अपनी कुर्सियों पर बैठकर सोते रहते हैं। संस्कृत विद्वान रमाकांत गोस्वामी कहते हगैं कि सरकार और कश्मीर यूनवर्सिटी की तरफ से कोशिश होनी चाहिए ताकि संस्कृत विभाग फिर से गुलजार हो सके। इधर छात्रों का ना आना बेहद दुखद है।

English summary
Students not joining Sanskrit department of Kashmir University. It was established in 1983. Kashmiri Pandit student used to join the department.
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