दाना मांझी को नहीं मिला है बीते साल के मनरेगा का पैसा, न बना है बीमा योजना का कार्ड
नई दिल्ली। अपनी पत्नी की मौत के बाद उसकी लाश कंधे पर रख 12 किलोमीटर पैदल चलने वाले दाना मांझी इस घटना से पहले कुछ एक सरकारी योजनाओं के लाभार्थी थे।
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अब उनके दरवाजे पर योजनाओं और दान मिलने का सिलसिला लगभग रुक नहीं रहा है। अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार दाना मांझी महीने का 1,000 से 1,500 रुपए तक कमाते हैं।
उनके पास न ही इंदिरा आवास योजना (प्रधानमंत्री आवास योजना) के तहत मिला कोई घर है और न ही अक्टूबर 2015 से मनरेगा का पैसा मिला है।
अखबार के अनुसार कालाहांडी की 72 फीसदी आबादी गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करते हैं। उनमें से सिर्फ 50 फीसदी लोगों को ही इंदिरा गांधी आवास योजना के तहत घर मिला है। मांझी उस 50 फीसदी का हिस्सा नहीं हैं।
हालांकि इस घटना के बाद जिले के कलेक्टर ब्रुंढा डी ने आश्वासन दिया है कि मांझी के परिवार को इस योजना के तहत आवास मिल जाएगा।
बीते साल अक्टूबर का पैसा अब तक नहीं मिला
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बात अगर महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार योजना की करें तो 2015-16 में कालाहांडी के 20,384 घरों को मनरेगा का जॉब कार्ड जारी किया गया जिसमें से 8,652 घरों को काम मिला।
उसमें भी सिर्फ 239 घरों को 100 दिन का काम मिला। मनरेगा के जिला कोआर्डिनेटर पार्बती पत्नीक के मुताबिक मांझी को अभी अक्टूबर 2015 के 4,064 रुपए मिलने बाकी हैं।
राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून के तहत जिसमें प्रति व्यक्ति 5 किलो राशन मिलता है, इस कानून के अंतर्गत मांझी का राशन कार्ड बना है और वो हर माह 25 किलो राशन पाता था लेकिन पत्नी की मौत के बाद अब सिर्फ 20 किलो राशन मिलेगा।
राष्ट्रीय बीमा योजना में नहीं बना मांझी का कार्ड
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वहीं राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना के अंतर्गत अब तक मांझी का कार्ड नहीं बना है। पूरे कालाहांडी में मार्च 2014 से कोई नया नाम इस योजना में नहीं जुड़ा है।
जननी शिशु सुरक्षा कार्यक्रम के अंतर्गत भी मांझी की पत्नी को सुविधाएं नहीं मिली थी। इस योजना के लॉन्च होने के बाद मांझी की एक और बेटी हुई लेकिन उसका जन्म घर पर हुआ साथ ही उसे अस्पताल ले जाने के लिए एंबुलेंस नहीं आई थी।
मांझी की पत्नी अमांगदेई टीबी की मरीज थीं। मेलघर से नजदीक का प्राथमिक चिकित्सा केंद्र नकरुंदी में है। वहां कोई डॉक्टर नहीं है बल्कि एक फर्मासिस्ट इसे संचालित करता है।
मांझी को लोगों ने सलाह दी थी कि वो अपनी पत्नी को 60 किलोमीटर जिला हेडक्वार्टर स्थित अस्पताल जाए लेकिन वो नहीं जा सका।
ये हालात इस बात की गवाही देते हैं जिले में नेशनल हेल्थ मिशन जिसका नाम पहले नेशनल रूरल हेल्थ मिशन था उसके हालात भी कालाहांडी में अच्छे नहीं हैं।
पत्नी की मौत के बाद मिल रही मदद
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पत्नी की मौत के बाद मांझी को अब हर होर से सहायता मिल रही रही है। जिला प्रशासन ने 30,000 रुपए और चावल की एक बोरी दी।
उसकी तीन बच्चियो चांदनी,चौली और सोनाई का एडमिशन आवासीय आदिवासी स्कूल में कराने का वादा भी हुआ है।
इतना ही नहीं सोलर बैटरी,पक्का मकान, महाराष्ट्र से किसी डोनर से 80,000 रुपए और 10,000 के चार सर्टिफिकेट उसकी बेटियों के नाम आए हैं।
सुलभ इंटरनेशनल की ओर से मांझी की बेटी चांदनी को जब तक की उसकी शादी नहीं हो जाती प्रतिमाह 10,000 रुपए और उसे एक नौकरी देने का भी वादा किया गया है।
मांझी की मदद को बहरीन के प्रधानमंत्री भी आगे आए थे।