जानिए चीन के साथ 62 की जंग में शास्त्री ने क्यों कहा पाकिस्तान को देना पड़ता कश्मीर?
नई दिल्ली। भारत और चीन के बीच सिक्किम और भूटान के बीच के डोकलाम क्षेत्र की वजह से तनाव बना हुआ है। चीन की मीडिया कई बार इस मुद्दे को लेकर युद्ध की धमकी तक दे चुकी है। दोनों देशों साल 1962 में जंग के मैदान में आमने-सामने आ चुके हैं। दोनों के बीच जारी तनाव के बीच ही आपको एक ऐसे किस्से के बारे में भी जान लेना चाहिए जिसका जिक्र वरिष्ठ पत्रकार कुलदीप नैयर ने अपनी किताब में किया है। उन्होंने अपनी किताब 'बियांड द लाइन्स' में लिखा है कि इस जंग के दौरान पाकिस्तान ने भारत की मदद की थी। जानिए आखिर कैसे भारत के दुश्मन नंबर वन पाकिस्तान ने एक समझदारी भरा फैसला लिया और उसके इस फैसले ने भारत की बड़ी मदद की थी।
भारत के अंदर दाखिल चीनी सेना
1961 के मध्य में चीनी बॉर्डर सेना ने सिंकियांग-तिब्बत के 70 मील दूर पश्चिम में एक सड़क बना ली थी। यह वह पोजीशन थी जिसे उन्होंने सन् 1958 में हासिल किया था। चीनी सेना भारतीय सीमा के 12,000 स्क्वायर मील तक अंदर दाखिल हो गई थी। उस समय रक्षा मंत्री कृष्णा मेनन थे और नैयर ने अपनी किताब में दावा किया है कि भारत में किसी ने भी इस बात की सराहना नहीं की थी कि भारत ने 4,000 स्क्वायर मीटर उस सीमा पर अतिक्रमण कर लिया है जो चीन की है।
नेहरू के आदेश को मानने से किया इनकार
उस समय प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने तत्कालीन सेना प्रमुख जनरल पीएन थापर को आदेश दिया था कि वह चीन की सेना को उन पोस्ट्स से हटाएं जो भारतीय सीमा के अंदर हैं। जनरल थापर ने ऐसा करने से साफ मना कर दिया था क्योंकि वह इस बात से बखूबी वाकिफ थे कि यह करना मधुमक्खी के छत्ते में हाथ डालने जैसा होगा।
सेना नहीं थी जंग के लिए तैयार
इसके बाद मेनन की अगुवाई में एक मीटिंग हुई जिसमें चीन के खिलाफ एक्शन लेने पर रजामंदी हुई। जनरल थापर ने कहा कि भारतीय सेना के पास ऐसा करने के लिए जरूरी ताकत नहीं है। रक्षा मंत्री मेनन ने कहा कि उन्होंने चीन के उप-प्रधानमंत्री छेन वाई से जेनेवा में मुलाकात की थी। उन्होंने मेनन को भरोसा दिलाया था कि चीन कभी भी सीमा के मुद्दे पर भारत से युद्ध नहीं लड़ेगा।
पहले से तय थी हार
वहीं मेनन इस बात को मानने के लिए तैयार ही नहीं थे कि जनरल थापर के मुताबिक भारतीय सेना चीन का सामना करने को तैयार ही नहीं है। जनरल थापर ने सन् 1960 में सेना प्रमुख का जिम्मा संभाला था। उस समय उन्होंने सरकार को चिट्ठी लिखकर बताया था कि सेना इस समय इतनी खराब हालत में है कि अगर चीन और पाकिस्तान से इस समय युद्ध हुआ तो भारत आसानी से हार जाएगा।
चीन ने दी वॉर्निंग
वहीं पंडित नेहरू ने दावा किया था कि आजादी के बाद से ही देश की रक्षा व्यवस्था काफी बेहतर स्थिति में है। जनरल थापर चीन के साथ युद्ध करने के खिलाफ थे। नेहरू ने उन्हें भरोसा दिलाने के लिए उनसे कहा कि उन्हें इस बात की विश्वसनीय जानकारी मिली है कि चीनी सेना को अगर पोस्ट्स खाली करने को कहा जाएगा तो वह खुद को आगे बढ़ने से रोक लेंगे। सरकार ने चीन की ओर से आई उन चेतावनियों को बिल्कुल भी गंभीरता से नहीं लिया जिसमें कहा गया था कि भारत को अपनी आक्रामकता के नतीजे झेलने होंगे।
सेना के अधिकारी जंग के खिलाफ थे
जनरल थापर फिर भी कोई खतरा लेने को तैयार नहीं थे। उन्होंने नेहरू से कहा कि वह कुछ आर्मी कमांडर्स से बात करें। लेफ्टिनेंट जनरल प्रोदीप सेना जो इस ईस्टर्न आर्मी कमांडर थे, वह थापर के ही कमरे में मौजूद थे। उन्हें बुलाया गया और उन्होंने भी जनरल थापर की बात का समर्थन किया और कहा कि सेना इस समय जंग के लिए तैयार नहीं है। नेहरू ने अपनी बात फिर से दोहराई और कहा कि चीनी प्रतिक्रिया नहीं देंगे।
दिल्ली तक था तनाव
चीन के साथ जंग होनी चाहिए या नहीं इस बात को लेकर दिल्ली में भी जंग का माहौल था। नैयर ने अपनी किताब में दावा किया है कि जनरल थापर ने उनसे कहा था कि जो परिस्थितियां थीं उसमें उन्हें इस्तीफा दे देना चाहिए था। इसके अलावा आर्मी कमांडर बीएम कौल छुट्टी लेकर दिल्ली आ गए थे। कौल उस समय नार्थ ईस्ट के जनरल ऑफिसर इन कमांड यानी जीओसी थे।
पाकिस्तान के साथ जंग की पूरी तैयारी
रक्षा मंत्री मेनन के खास आदेश थे कि पाकिस्तान से सटे बॉर्डर से एक भी सैनिक चीन के साथ जंग में नही आना चाहिए। भारत यह मान चुका था कि उसे आजादी के बाद पाकिस्तान से ही जंग करनी होगी। इस बात पर रक्षा मंत्रालय के पास हमेशा एक प्लान तैयार रहता और सेनाएं हमेशा तैयार रहती थीं। चीन की तरफ वाले बॉर्डर को हमेशा असुरक्षित रखा गया क्योंकि इस तरफ से हमे की उम्मीद किसी को नहीं थी।
20 अक्टूबर को चीन ने किया हमला
जनरल थापर भी पाकिस्तान से सटी सीमाओं से ट्रूप्स को हटाने के पक्ष में नहीं थे लेकिन हालात बदल रहे थे। वह चाहते थे कि पाकिस्तान से सटे सेक्टर से ट्रूप्स को हटाया जाए। नेहरू ने उनकी बात मान लीं। चीन की ओर से 20 अक्टूबर को सुबह पांच बजे ईस्टर्न सेक्टर पर हमला बोला गया जहां पर सूरज जल्दी निकलता है। सुबह सात बजे उसने लद्दाख में हमला किया जहां पर सूरज की रोशनी देर से पहुंचता है।'
ईरान के शाह ने भेजी पाक जनरल को चिट्ठी
जिस समय जंग की शुरुआत हुई ईरान के शाह ने नेहरू को एक चिट्ठी भेजी जो उन्होंने पाकिस्तानी जनरल अयूब खान को लिखी थी। उन्होंने सलाह दी थी कि अयूब खान को अपने सैनिकों को भारतीय सैनिकों के साथ चीन के खिलाफ लड़ने के लिए भेजना चाहिए।
इस तरह से पाक ने की भारत की मदद
कुलदीप नैयर ने अपनी किताब में मोहम्मद अली जिन्ना के हवाले से लिखा है कि अगर किसी तीसरे देश ने भारत पर हमला किया तो इस सूरत में पाकिस्तान के सैनिक भारत के सैनिकों के साथ खड़े होंगे। अयूब खान ने विदेशी ताकतों को बता दिया था कि पाकिस्तान, भारत की इस स्थिति का फायदा नहीं उठाना चाहता है और यही पाकिस्तान की ओर से भारत को की गई खास मदद है।
तो फिर पाक को देना पड़ता कश्मीर
जब जंग खत्म हुई तो पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री जो कि उस समय गृह मंत्री थे, उन्हें शाह की वह चिट्ठी याद आई। उन्होंने कहा था कि अगर पाकिस्तानी सैनिकों ने भारत की तरफ से लड़ा होता और भारतीय सैनिकों के साथ अपना भी खून बहाया होता तो फिर पाकिस्तान को कश्मीर के लिए भी न कह पाना भी मुश्किल हो जाता।