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सियाचिन शहीद हनुमनथप्‍पा की पत्‍नी को नौकरी और मेमोरियल का इंतजार

सियाचिन शहीद लांस नायक हनुमनथप्‍पा की पत्‍नी को उनकी शहादत के एक वर्ष बाद है अच्‍छी नौकरी का इंतजार। कहा अब सरकार पर भरोसा नहीं और न ही नौकरी के लिए सरकार से जी हुजूरी करनी है।

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बेंगलुरु। लांस नायक हनुमनथप्‍पा कोप्‍पाड को शहीद हुए एक वर्ष हो गए हैं। अगर आप हनुमनथप्‍पा को भुल गए हैं तो याद दिला दें कि पिछले वर्ष फरवरी में हनुमनथप्‍पा सियाचिन में आए एक बर्फीले तूफान में शहीद हो गए थे। हनुमनथप्‍पा के साथ नौ और जवान शहीद हो गए थे। एक वर्ष बीत जाने के बाद भी हनुमनथप्‍पा की पत्‍नी महादेवी को एक अच्‍छी जिंदगी की दरकार है।

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बेटी को आती है पिता की याद

जहां तूफान के बाद सभी नौ जवान मौके पर ही शहीद हो गए तो हनमुनथप्‍पा 25 फीट बर्फ के नीचे दबे मिले थे। नौ दिनों तक बहादुरी से लड़ने के बाद वह शहीद हो गए थे। हनुमनथप्‍पा की बेटी आज भी अपने पिता को याद करती है और उनकी तस्‍वीर को देखकर कहती है, 'अप्‍पा।' वहीं उनकी पत्‍नी की आंखें नम हो जाती हैं और वह बताती हैं कि बेटी अपने पिता को बहुत याद करती है। चह सिर्फ उसे वह प्‍यार दे सकती हैं जो उसके पिता उसे देते अगर जिंदा होते तो। महादेवी के मुताबिक एक अकेली मां होना बहुत ही मुश्किल है। उनका सपना है कि वह सेना में शामिल हों जैसे हनुमनथप्‍पा सेना का हिस्‍सा बने थे। सेना में शामिल होकर वह अपनी बेटी का सैनिकों की कहानियां सुनाना चाहती हैं और उनके बलिदान के बारे में बताना चाहती हैं ताकि उसे जिंदगी में प्रेरणा मिल सके।

श्रद्धांजलि के बाद गायब सब

वह कहती हैं कि जब हनुमनथप्‍पा का निधन हुआ तो कई राजनेता, ब्‍यूरोक्रेट्स और प्रतिनिधि श्रद्धांजलि देने आए थे। कई वादे उनसे किए गए थे, जहां कुछ वादे पूरे हो गए हैं तो कुछ वादों का पूरा होना अभी बाकी है। कर्नाटक सरकार की ओर से महादेवी को कैश मिला और एक जमीन भी दी गई लेकिन महादेवी को एक नौकरी चाहिए। उन्‍हें एक नौकरी की दरकार है ताकि वह एक सम्‍मान भरी जिंदगी बिता सकें। महादेवी ने कहा कि उन्‍होंने कोई भी खास चीज नहीं मांगी है। वह बताती है कि अथॉरिटीज उन्‍हें कॉल तो अक्‍सर करती हैं लेकिन उन्‍हें कोई विकल्‍प नहीं देती हैं।

सरकारों को महादेवी का जवाब

महादेवी नौकरी के लिए पिछले एक वर्ष से इंतजार कर रही हैं और अब इंतजार करके थक गई हैं। उनका कहना है कि वह सरकार के नौकरी के लिए नहीं कह सकती हैं। वह सिस्‍टम से तंग आ चुकी हैं जिसकी वजह से एक शहीद की विधवा को आत्‍मनिर्भर बनने का मौका भी नहीं मिल रहा है। एक वर्ष बाद भी अभी तक हनुमनथप्‍पा का मेमोरियल तक नहीं बन पाया जिसे उनके गांव में बनाने का वादा किया गया था। इस मेमोरियल को गांव के पंचायत ऑफिस के पास बनना था। राज्‍य के मुख्‍यमंत्री ऑफिस की ओर से दावा किया गया है कि इस मेमोरियल के फंड और जरूरी सामान दिया गया है लेकिन उन्‍हें नहीं मालूम कि अथॉरिटीज ने काम क्‍यों नहीं शुरू किया है।

नौकरी पर शुरू दोष देने का खेल

महादेवी की नौकरी बात पर राज्‍य सरकार से जुड़े लोग इसे केंद्र सरकार का जिम्‍मा बता देते हैं। महादेवी इस पर कहती हैं कि राजनीतिक पार्टियों और राजनेताओं से इसी रुख की अपेक्षा की जाती है। वह सवाल पूछती है कि अगर कोई सैनिक भी यही करने लगे तो लोग क्‍या करेंगे? तब क्‍या यह देश चैन से सो सकेगा और अगर कोई सैनिक राज्‍य के लिए काम करता है राष्‍ट्र के लिए नहीं तो फिर सरकार कहां जाएगी? महादेवी के मुताबिक भगवान उनके साथ है और उनका मानना है कि उनके पति भी हर मिनट उनके साथ हैं। उन्‍हें पूरा भरोसा है कि जिस तरह से उन्‍होंने पहले मुश्किलों का सामना किया है, उसी तरह से इस मुश्किल से भी बाहर निकल आएंगी।

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English summary
Siachen martyr Hanumantappa's wife pleads to live with dignity.
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