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गांधी को हिंदू धर्म छोड़ने से रोका था श्रीमद राजचंद्र ने

जानिए कौन थे वो संत जिन्होंने गांधी को वैवाहिक जीवन में रहते हुए ब्रह्मचर्य का पाठ पढ़ाया था.

By राजेश प्रियदर्शी - डिजिटल एडिटर, बीबीसी हिंदी
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यह श्रीमद राजचंद्र की 150वीं जयंती का वर्ष है, जिन्हें कभी गुजराती में 'महात्मा नो महात्मा' कहा जाता था, यानी गांधी के महात्मा. इस संत को आज भारत के लोग एक तरह से भूल चुके हैं.

श्रीमद राजचंद्र को कई लोग जैनों का 25वाँ तीर्थंकर कहते थे, वर्धमान महावीर जैनों के 24वें तीर्थंकर थे. गांधी उनसे अध्यात्मिक विषयों पर लगातार विचार-विमर्श और पत्राचार किया करते रहते थे और उनसे बहुत प्रभावित थे.

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गांधी के जीवन की दो प्रमुख बातों--अहिंसा और ब्रह्मचर्य - में श्रीमद राजचंद्र का बहुत बड़ा योगदान था.

श्रीमद राजचंद्र उम्र में गांधी से दो ही वर्ष बड़े थे और गांधी की ही तरह गुजराती भाषी थे. वे मोरबी के निकट एक गाँव में एक जौहरी परिवार में नवंबर 1867 में पैदा हुए थे और बचपन से ही धार्मिक प्रवृति के थे.

उन्होंने परिवार के दबाव में कुछ समय तक मोतियों का कारोबार किया, उनके रिश्तेदार चाहते थे कि वे मुंबई चले जाएँ लेकिन वे ऐसा करने को तैयार नहीं हुए.

उनकी शादी 20 वर्ष की उम्र में ज़बकबेन से हुई, जो उस दौर में काफ़ी देर से हुई शादी थी, उनके चार बच्चे भी हुए लेकिन श्रीमद राजचंद्र का पूरा ध्यान आत्मा-परमात्मा के रहस्यों को समझने में ही लगा रहा.

गांधी के जीवन पर प्रभाव

महात्मा गांधी
Getty Images
महात्मा गांधी

गांधी ने लिखा है कि उनके अध्यात्मिक जीवन पर जिन लोगों ने सबसे अधिक असर डाला है उनमें श्रीमद राजचंद्र अग्रणी थे जिन्हें गांधी प्यार से रायचंद भाई कहते थे.

अपने अफ्रीका प्रवास के दौरान गांधी सभी अंगरेज़ी जानने वालों को टॉल्सटॉय की किताबें और गुजराती भाइयों को रायचंद भाई की 'आत्म सिद्धि' पढ़ने की सलाह देते थे.

श्रीमद राजचंद्र के बारे में कहा जाता है कि उन्हें अपने पिछले कई जन्मों की बातें याद थीं और उनकी स्मरण शक्ति बहुत तेज़ थी लेकिन वे परंपरागत जैन धर्म के मुनि के तौर पर नहीं बल्कि आत्म-साक्षात्कार का ज्ञान देने वाले संत के रूप में जाने जाते हैं.

जन्म के बाद उनका नाम लक्ष्मीनंदन रखा गया था जिसे चार साल की उम्र में बदलकर उनके पिता ने रायचंद कर दिया, बाद में वे खुद को राजचंद्र कहने लगे जो रायचंद का संस्कृत रूप है.

गांधी और श्रीमद राजचंद्र की मुलाक़ात 1891 में हुई थी और वे उनके शास्त्रों के ज्ञान और गहरी समझ से बहुत प्रभावित हुए थे जिसका ज़िक्र उनकी आत्मकथा 'सत्य के प्रयोग' में भी मिलता है.

हिंदू धर्म के अध्ययन की सलाह

महात्मा गांधी
AFP
महात्मा गांधी

कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी प्रेस से छपी शोधपरक किताब 'गांधी एज़ डिसाइपल एंड मेंटोर' में थॉमस वेबर ने लिखा है, "गांधी के जीवन में एक ऐसा दौर आया कि वे ईसाई और इस्लाम मत के जानकारों के करीब आए, उनके मन में धर्म परिर्वतन का ख़याल भी आया लेकिन उन्होंने सोचा कि पहले अपने धर्म को ठीक से समझने के बाद ही वे ऐसा कोई क़दम उठाएँगे, इस दौर में उनकी अध्यात्मिक जिज्ञासों के उत्तर श्रीमद राजचंद्र दिया करते थे."

वेबर ने लिखा है, "ये राजचंद्र ही थे जिन्होंने गांधी को धीरज रखने और गहराई से हिंदू धर्म का अध्ययन करने की सलाह दी थी."

गांधी जब अध्यात्मिक और वैचारिक उथल-पुथल से गुज़र रहे थे तब श्रीमद राजचंद्र के शब्दों से उन्हें शांति मिली.

गांधी ने लिखा है, "उन्होंने मुझे समझाया कि मैं जिस तरह के धार्मिक विचार अपना सकता हूँ वो हिंदू धर्म के भीतर मौजूद हैं, आप समझ सकते हैं कि मेरे मन में उनके लिए कितनी श्रद्धा है."

अपने समय का सर्वश्रेष्ठ भारतीय

महात्मा गांधी
Getty Images
महात्मा गांधी

गांधी ने अपने मित्र हेनरी पॉलक को राजचंद्र के बारे में लिखा था, "मैं उन्हें अपने समय का सर्वश्रेष्ठ भारतीय मानता हूँ."

वेबर ने अपनी किताब में लिखा है कि राजचंद्र ने ही गांधी को समझाया था कि वे विवाहित रहकर भी ब्रह्मचर्य का पालन कर सकते हैं. वेबर अपनी किताब में एक पत्राचार का उल्लेख भी करते हैं जिसमें राजचंद्र ने गांधी को दूध पीना छोड़ने की सलाह दी थी, उनका कहना था, "पशु का दूध पीकर पाशविक प्रवृत्तियाँ समाप्त नहीं हो सकतीं."

20 अक्तूबर 1894 को गांधी ने अपने प्रिय 'रायचंद भाई' को एक लंबा पत्र लिखा जिसमें अध्यात्मिक जिज्ञासा से भरे 27 सवाल थे, जैसे, आत्मा क्या है? क्या कृष्ण भक्ति से मोक्ष मिल सकता है? ईसायत के बारे में आपकी राय क्या है? वगैरह..

1901 में 33 वर्ष की आयु में श्रीमद राजचंद्र का निधन राजकोट में हुआ और गांधी ने इसी वर्ष से ब्रह्मचर्य का व्रत लिया.

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English summary
Shrimad Rajchandra had prevented Gandhi from leaving Hinduism
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