आस्था का मजाक उड़ाने वाले संतों की प्राइवेट आर्मी के सामने क्यों बेबस हो जाती है सरकार?
नयी दिल्ली। एक बाबा जिसने हरियाणा सरकार और पुलिस प्रशासन के नाम में दम कर रखा है। एक संत जो अपने आपको न केवल प्रशासन और सरकार से ऊपर मानता है बल्कि वो खुद को भगवान से भी ऊपर मानता है। कानून को ताख पर रखकर काम करने वाले बाबाओं की कमी नहीं है।
फिलहाल तो हरियाणा के हिसार में संत रामपाल ने प्रदेश सरकार और पुलिस की बैंड बजा रखी है। बरवाला का सतलोक आश्रम जंग का मैदान बना हुआ है। आश्रम के बाहर पुलिस और केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल तैनात हैं तोदूसरी ओर से संत की प्राइवेट आर्मी मोर्चा संभाले हुए है। राष्ट्रीय समाज सेवा समिति के कार्यकर्ता रामपाल की ढ़ाल बने हुए हैं। रामपाल की अचूक सुरक्षा नीति और उसकी आर्मी के बदौलत पुलिस प्रशासन अदालत के निर्देशों का पालन करने में अब तक असमर्थ रही है।
संत रामपाल ऐसे पहले संत नहीं है जिन्होंने अपना साम्राज्य इस कदर फैलला रखा है और अपनी सेना तैयार कर रखी है। पंजाब-हरियाणा में धर्म गुरुओं का अपनी सत्ता चलाना और लोकतांत्रिक संस्थाओं की अवमानना करना कोई नई बात नहीं है। कानून को नजरअंजाद कर ये लोग अपनी निजी सेनाओं तक का गठन कर चुके हैं।
सतलोक आश्रम के पास राष्ट्रीय समाज सेवा समिति के नाम से निजी सेना है, उसी तरह सिरसा के डेरा सच्चा सौदा के पास 'शाह सतनाम जी ग्रीन 'एस' वेलफेयर फोर्स विंग' है। वहीं पंजाब में जालंधर जिले के नूरमहल कस्बे में दिव्या ज्योति जागृति संस्थान की भी अपनी निजी सेना है। अपनी सेना के बदौलत ये संस्थान कई बार दूसरे संस्थाओं के साथ टकराव कर चुके है। वहीं तरनतारन जिले में दमदमी टकसाल के पास भी अपनी हथियारबंद लोगों की अपनी सेना है।
इतना ही नहीं लिस्ट में कई और भी संत है। नामधारी परंपरा का डेरा लुधियाना के गांव में है। इनके पास भी अपनी निजी सेना है। संतों की ये संना आम तौर पर तो सत्संगों और प्रवचनों के मौकों पर सड़कों का बंदोबस्त अपने हाथ में ले लेती हैं, लेकिन जब स्थिति टकराव की आती है तो ये आर्मी बन जाती है। ऐसे में सवाल ये कि क्या संतों की ये सेना देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए खतरा नहीं बनते जा रहे हैं? क्या संतों पर देश का कानून नहीं लागू होता? क्या सरकार इन संतों के सामने नतमस्तक होकर उन्हें अपनी प्राइवेट आर्मी रखने की इजाजत दे देती हैं?