देश की परंपरओं को बचायेगा 'संस्कृति' ऐप
नई दिल्ली। इंटरनेट और सोशल मीडिया के इस दौर में नई पीढ़ी को अपनी संस्कृति के प्रति जागरूक बनाने, इतिहास और परंपराओं में रूचि पैदा करने की दिशा में सरकारी तंत्र तेजी से काम रहे हैं। डिजिटल इंडिया महज नारा नहीं रह गया है बल्कि इसे ज़मीनी हकीकत बनाने में मंत्रालय के तमाम विभागों ने काफी सक्रियता दिखाई है।
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अगर आप संस्कृति मंत्रालय की वेबसाइट पर जएं तो यह एहसास आपको खुद हो जाएगा कि इसमें कितना बदलाव आया है और कितनी तेजी से आपको संस्कृति से जुड़े कार्यक्रमों के बारे में नए अपडेट्स मिल रहे हैं। मंत्रालय का मोबाइल ऐप 'संस्कृति' इस दिशा में एक अहम कदम है।
संस्कृति और परंपराओं को बचाना
सरकार के लिए अपनी संस्कृति और परंपराओं को बचाना, इससे नई पीढ़ी को जोड़ना और इस क्षेत्र में काम कर रहे लोगों को भरपूर मदद देना सरकार की प्राथमिकताओं में है। निजी तौर पर संस्कृति मंत्री डॉ. महेश शर्मा की दिलचस्पी अपने देश की कला, संस्कृति, संगीत, नृत्य, रंगमंच के अलावा अपनी परंपराओं और धरोहरों के संरक्षण में है और उनकी सक्रियता इस दिशा में लगातार दिखाई देती रही है।
दो हज़ार से ज्यादा कलाकारों ने अपनी कला का प्रदर्शन किया
अक्सर देखा जाता है कि सांस्कृतिक महोत्सवों और कला मेलों में आने वाले कलाकार अपनी उपेक्षा और आयोजकों के रवैये से नाराज़ रहते हैं, ऐसे आयोजनों को दिखावा और महज कुछ लोगों के फायदे के लिए बताते हैं लेकिन जिस तरह दिल्ली में आठ दिनों तक चला राष्ट्रीय संस्कृति महोत्सव इस बार संपन्न हुआ और तकरीबन दो हज़ार से ज्यादा कलाकारों ने अपनी कला का प्रदर्शन किया वह अपने आप में अनूठा था।
संस्कृति मंत्रालय के लिए 17.5 फीसदी की बढ़ोत्तरी
आमतौर पर सरकारी योजनाओं और इन्हें ज़मीनी स्तर पर उतारने को लेकर गंभीर सवाल उठते रहे हैं, लेकिन इसे पारदर्शी बनाने और वास्तव में लोक और आदिवासी कला और संस्कृति के संरक्षण के साथ साथ कलाकारों के हित में काम करने की ये पहल उम्मीद जगाने वाली है। इसका अंदाज़ा मौजूदा बजट में संस्कृति मंत्रालय के लिए 17.5 फीसदी की गई बढ़ोत्तरी से लगाया जा सकता है।
2500 करोड़ रूपए का बजट
इस बार संस्कृति मंत्रालय को अपने कामकाज को बेहतर बनाने के लिए 2500 करोड़ रूपए का बजट दिया गया है। जाहिर है अगर इस बजट का सही और व्यावहारिक इस्तेमाल होता है तो कोई संदेह नहीं कि अपने देश की कला, संस्कृति, इतिहास, परंपराएं और धरोहर सुरक्षित ही नहीं रहेगी, लगातार फले फूलेगी और नई पीढ़ी इसके रंग को बेहतर तरीके से समझ पाएगी।