सबजार भट की मौत के बाद फिर से कश्मीर घाटी में इंटरनेट बंद, 24 घंटे पहले ही हटा था बैन
सबजार भट की मौत के बाद घाटी में फिर से इंटरनेट सेवाएं ब्लॉक। शुक्रवार को ही खत्म हुआ था इंटरनेट और सोशल मीडिया पर लगा एक माह पुराना बैन।
श्रीनगर। शनिवार को कश्मीर घाटी में बहाल हुआ इंटरनेट और सोशल मीडिया साइट्स को फिर से बंद कर दिया गया है। यह कदम त्राल में हुए एक एनकाउंटर में मारे गए हिजबुल मुजाहिद्दीन आतंकी सबजार भट की एक एनकाउंटर में हुई मौत के बाद उठाया गया है। शुक्रवार को ही घाटी में सोशल मीडिया साइट्स पर लगे बैन को हटाया गया था।
सबजार के एनकाउंटर के समय शेयर हो रहे थे मैसेज
जम्मू कश्मीर सरकार की ओर से इंटरनेट को बंद करने के ऐलान से पहले ही कुछ ऐसे मैसेज शेयर हो चुके थे जिनके जरिए पत्थरबाजों को उकसाया जा रहा था। व्हाट्स एप पर बने एक ग्रुप के जरिए सबजार भट के एनकाउंटर के बारे में लोगों को पल-पल की जानकारी दी जा रही थी। इस ग्रुप की ओर से जो मैसेज शेयर किया गया था उसमें सबजार की मदद के लिए पहुंचने की अपील लोगों से की गई थी। जम्मू कश्मीर सरकार ने शुक्रवार को उन सभी 22 सोशल नेटवर्किंग साइट्स से बैन हटा लिया था जिन्हें 26 अप्रैल को बैन किया गया था। सरकार का कहना था कि राष्ट्रविरोधी तत्वों को रोकने के लिए यह बैन लगाया था। सरकार की ओर से इस बारे में कोई भी आधिकारिक ऐलान नहीं किया गया था। लेकिन शुक्रवार से यूजर्स सोशल मीडिया साइट्स को एक्सेस कर पा रहे थे। राज्य सरकार की ओर से इन साइट्स को तब मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती की ओर से बुलाई गई खास मीटिंग के बाद बैन किया गया था। सरकार का कहना था कि इन साइट्स का प्रयोग घाटी में विवादित कंटेंट के सर्कुलेशन के लिए हो रहा था।
अक्सर ठप हो जाता है इंटरनेट
जम्मू सरकार की ओर से एक माह पहले जिन 22 सोशल नेटवर्किंग साइट्स को बैन किया गया था उसमें फेसबुक, ट्विटर, व्हाट्सएप, क्यूक्यू, वी चैट, ओजोन, टंबलर, गूगल+, स्काइप, वीबर, लाइन, स्नैपचैट और इस तरह की 22 सोशल मीडिया साइट्स शामिल थीं। कश्मीर घाटी में हिंसा और विरोध प्रदर्शनों को रोकने के लिए अक्सर ही इंटरनेट को बंद कर दिया जाता है। एक रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2012 से लेकर 2016 तक घाटी में 31 बार इंटरनेट को ब्लॉक किया जा चुका है। लेकिन यह पहला मौका था जब अथॉरिटीज की ओर से सोशल नेटवर्किंग साइट्स को पूरी तरह से ही बैन कर दिया गया था। 11 मई को यूनाइटेड नेशंस (यूएन) ने इस मामले में हस्तक्षेप किया और भारत सरकार से कहा कि वह जम्मू कश्मीर में इंटरनेट सर्विसेज को बहाल कर फ्रीडम ऑफ स्पीस को वापस लाए।