आपसी सहयोग नहीं असहयोग करते हैं सार्क देश
नई दिल्ली (विवेक शुक्ला) आमतौर पर मृतपाय: सार्क देशों के बीच सहयोग कम और कटुता अधिक ही दिखती है। इसी आलोक में सार्क सम्मेलन आज काठमांडू में शुरू हो गया। हालांकि पूरी दुनिया परस्पर आर्थिक सहयोग के महत्व को समझने लगी है, पर इस मोर्चे पर अपेक्षित सफलता नहीं मिल पाई है सार्क देशों को। पिछले कुछ समय में जिस रफ्तार से भारत का आर्थिक सहयोग दूसरे देशों के साथ बढ़ा है, सार्क सदस्य देशों के साथ कारोबारी रिश्ते उस रफ्तार से नहीं बढ़े हैं।
आपसी व्यापार
साउथ एशिया में इंट्रा-रीजनलट्रेड सिर्फ 6 फीसदी है जबकि दुनिया के दूसरे रीजनलएसोसिएशन की बात करें तो यूरोपियनयूनियन का आपसी कारोबार60 फीसदी, नाफ्टा का 50 फीसदी और आसियान का 25 फीसदी है।
अगर सार्क के सदस्य देशों के साथ अलग-अलग व्यापार पर नजर डालें तो बांग्लादेश सबसे बड़ा साथीदार दिखता है। जनवरी से नवंबर 2013 तक के11 महीनों में भारत ने बांग्लादेश के साथ 557 करोड़डॉलर का कारोबार किया।
इसके बाद है श्रीलंका जिसके साथ भारत का कारोबार 415करोड़डॉलर का रहा। इसी तरह नेपाल के साथ 298 करोड़डॉलर और पाकिस्तान के साथ 222 करोड़डॉलर का कारोबार 11 महीनों में हुआ।
इन देशों के अलावा अफगानिस्तान के साथ भारत का व्यापार करीब 60करोड़ डॉलर, भूटान के साथ करीब 38 करोड़ डॉलर और मालदीव्स के साथ करीब दस करोड़ डॉलर का रहा। इन आंकड़ों से अंदाजा लगाया जा सकता है कि सार्क देशों के साथ आपसी कारोबार बढ़ाने की गुंजाइश कितनी ज्यादा है।
टाटा को नहीं एंट्री
सार्क देशों में आर्थिक सहयोग की खराब हालत की एक बानगी देख लीजिए। कुछ साल पहलेभारत के प्रमुखऔद्योगिक समूह टाटा ने बांग्लादेश में तीन अरब डॉलर की निवेश योजना बनाई थी।टाटा वहां पर अलग-अलग क्षेत्रों में निवेश करना चाहता था। पर वहां पर इसका तगड़ा विरोध शुरू गया।
बांग्लादेश की खालिदा जिया के नेतृत्व में तमाम विपक्षी दलों ने टाटा के बांग्लादेश में निवेश की योजना का यह कहकर विरोध किया कि वह देश के लिए ईस्ट इंडिया कंपनी साबित होगा। फिर बांग्लादेश सरकार ने भी टाटा की प्रस्ताव को हरी झंडी दिखाने में देरी की।
टाटा समूह ने निवेश योजना के तहत इस्पात प्लांट, यूरिया फैक्ट्री और कोयला खदान के लिए1000 मेगावाट क्षमता वाली बिजली इकाई लगाने का प्रस्ताव दिया था। इस उदाहरण से साफ है कि सार्क देशों में आपसी व्यापार को गति देने के लिहाज से कितना खराब माहौल है।
सहयोग की जरूरत
दरअसल दक्षिण एशियाई मुक्त व्यापार क्षेत्र समझौता (साफ्टा) के क्रियान्वयन में ‘सराहनीय प्रगति' के चलते दक्षेस देशों के बीच व्यापार के क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने की जरूरत है। दक्षिण एशिया में आर्थिक वृद्धि में तेजी लाने में व्यापार सबसे महत्वपूर्ण औजार हो सकता है। साफ्टा के क्रियान्वयन में सराहनीय प्रगति हुई है, फिर भी काफी कुछ किया जाना बाकी है।
सार्क देशों के बीच साफ्टा पर 2004 में इस्लामाबाद में हस्ताक्षर किया गया था और इसके तहत वर्ष 2016 के अंत तक सीमा शुल्क घटाकर शून्य पर लाने का लक्ष्य रखा गया है। साफ्टा के तहत दक्षेस देशों के बीच व्यापार बढ तो रहा है पर यह हमारे कुल अंतरराष्ट्रीय व्यापार की तुलना में बहुत कम है जबकि संभावनाएं बहुत ज्यादा हैं।