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जम्मू के रोहिंग्या मुसलमानों की मोदी से भावुक अपील

जम्मू में रहने वाले छह हज़ार रोहिंग्या मुसलमानों के सामने लगातार संकट बढ़ रहा है. ऐसे में उन लोगों ने मोदी से क्या अपील की है, जानिए.

By मोहित कंधारी - जम्मू से, बीबीसी हिंदी डॉट कॉम के लिए
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जम्मू के विभिन्न हिस्सों में रहने वाले रोहिंग्या मुसलमानों की मुश्किलें लगातार बढ़ रही हैं. राज्य में गैर क़ानूनी ढंग से रह रहे इन लोगों को सूबे से बाहर किए जाने का दबाव राज्य सरकार पर लगातार बढ़ रहा है. रोहिंग्या मुसलमानों के ख़िलाफ़ राज्य भर में हिंसक प्रदर्शन देखने को मिल रहा है जिसके चलते ये लोग शरणार्थी कैंपों में क़ैद हो कर रह गए हैं.

जम्मू के रोहिंग्या मुसलमानों की मोदी से भावुक अपील

बीते एक पखवाड़े में रोहिंग्या मुसलमानों की कई झुग्गी झोपड़ियों को संदेहास्पद परिस्थितियों में जला दिया गया. बिना किसी सहायता के इन शरणार्थियों के सामने अपनी और अपने परिवार की सुरक्षा का बड़ा ख़तरा पैदा हो गया है.

स्थानीय पुलिस अधिकारियों ने भी रोहिंग्या मुसलमानों के काग़ज़ातों की जांच शुरू कर दी है. वहीं कुछ रोहिंग्या मुसलमान अपने घर वापस लौटने की संभावना को भी तलाशने लगे हैं.

जम्मू में गैर क़ानूनी ढंग से रह रहे इन लोगों का मोटे तौर पर कहना है, "हम लोग काफ़ी डरे हुए हैं. हम और यातना नहीं सह सकते. हम अपने घरों को लौटने के लिए तैयार हैं या फिर कोई देश शरण देने को तैयार हो तो वहां जा सकते हैं."

'कोई काट न दे, इस डर से काम पर नहीं जाता'

जम्मू में रोहिंग्या मुसलमानों की नींद हराम

इन रोहिंग्या मुसलमानों ने भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से एक भावुक अपील भी की है जिसमें अनुरोध किया गया है कि वे उन्हें सुरक्षित म्यांमार तक पहुंचाने की व्यवस्था कर दें. जम्मू में इन लोगों का विरोध करने वाले लोगों से भी रोहिंग्या मुसलमानों ने अपील की है- 'हमें हमारे मुल्क में बराबरी का अधिकारी दिलवाने के लिए म्यांमार सरकार पर ज़ोर डालें.'

रोहिंग्या मुसलमानों की बस्ती के मदरसा तुल महज़रीन, सुंजवान में पढ़ाने वाले मौलाना अली ओल्हा ने भारतीय प्रधानमंत्री से अपील करते हुए कहा है, "हमलोग भी आज़ाद रहना चाहते हैं और दूसरे समुदाय के साथ शांति से रहना चाहते हैं. हम अपने देश भी लौटना चाहते हैं, अगर हमें वहां मूलभूत अधिकार मिल जाएं. अगर भारतीय प्रधानमंत्री हमें सुरक्षित हमारे घर तक पहुंचा सकें तो हम उनके आभारी रहेंगे."

एक दूसरे रोहिंग्या समुदाय के नेता मोहम्मद इसार कहते हैं, "अगर भारत सरकार हमारी ज़िम्मेदारी ले तो हम तुरंत अपने घर जा सकते हैं."

मोहम्मद इसार जम्मू में नौ साल से कैंप में रह रहे हैं और 250 ऐसे परिवारों की देखभाल का काम संभालते हैं. उनका ज़्यादातर वक्त इन लोगों के आपसी विवाद, लेन-देन के विवाद और अन्य झगड़ों को सुलझाने में बीतता है.

वे आगे कहते हैं, "म्यांमार में हमने रक्तपात देखा है. हमारी महिलाओं और बच्चों को यातनाएं दी जाती थीं. हम वैसी हिंसा का सामना नहीं करना चाहते."

इसार ये भी कहते हैं कि बीते कई सालों से वे लोग शांतिपूर्ण ढंग से इस इलाके में रह रहे हैं, लेकिन बीते दो-तीन महीनों से राज्य में स्थिति बिगड़ती जा रही है.

वे आगे कहते हैं, "हम सुरक्षित नहीं हैं. लोग हमें यहां से निकालना चाहते हैं. हम काफ़ी डरे हुए हैं. हम अपने बच्चों को अब नहीं खोना चाहते हैं. हम घर लौटने को तैयार हैं."

एक अन्य रोहिंग्या मुसलमान कहते हैं, "मैं भारतीय प्रधानमंत्री से अपील करता हूं कि वे म्यांमार के नेताओं से बातचीत करें और हमारी सुरक्षा को सुनिश्चित करें. हम अपने देश में आज़ादी से रहना चाहते हैं."

भारत सरकार से गुहार

जम्मू में बीते नौ साल से रहने वाले ओलिया अहमद कहते हैं, "मैं हमले की धमकी से तंग आ गया हूं. अगर मेरे परिवार की सुरक्षा नहीं होगी तो मैं नहीं रहूंगा."

ओलिया कबाड़ी का सामान बेचकर अपने सात सदस्यीय परिवार का पेट पालते हैं. वे कहते हैं, "मैं तो घर लौटना चाहता हूं. अपनी ज़मीन पर खेती करना चाहता हूं जिस पर सरकारी सुरक्षा बल ने कब्ज़ा कर लिया था."

ओलिया कहते हैं कि म्यांमार की सरकार बांग्लादेश के लोगों को तो अपने यहां रहने दे रही है, लेकिन हमें बाहर निकालने पर तुली हुई है.

जम्मू में बीते नौ साल से रह हे अब्दुल गफ़ूर कहते हैं, "भारत सरकार ने हमें इतने सालों तक रहने दिया. अब अगर भारत सरकार म्यांमार में हमारे अधिकारों के लिए बात करे तो हम लौट जाएंगे."

एक अन्य रोहिंग्या मुसलमान किफ़ायतुल्ला कहते हैं, "हम यहां मेहमान के तौर पर आए थे. हम यहां लगातार तो नहीं रह सकते हैं. हम अपने घर लौटना चाहते हैं. हम चाहते हैं कि हम लोगों के अधिकारों के लिए भारतीय प्रधानमंत्री म्यांमार की सरकार से बात करें."

किफ़ायतुल्ला कहते हैं कि उन लोगों के जम्मू में रहने को लेकर गंदी राजनीति की जा रही है क्योंकि वे सालों तक रहे और किसी को कोई मुश्किल नहीं हुई.

मदरसा रियाज़ उल उलूम ताहफ़ाज़ अल क़ुरान मुहाज़रीन, नरवाल के प्रमुख मोहम्मद शफ़ीक कहते हैं, "अगर कुछ रोहिंग्या मुसलमानों पर आपराधिक मामले हैं तो उन्हें क़ानून के मुताबिक सज़ा मिलनी चाहिए, लेकिन हम सबको उसकी सज़ा नहीं मिलनी चाहिए."

मोहम्मद शफ़ीक कहते हैं कि जम्मू-कश्मीर और भारत सरकार को ही हमारे भाग्य का फ़ैसला करना चाहिए, हमें उनके फ़ैसले का इंतज़ार है.

भारत में रह रहे रोहिंग्या मुसलमानों में से लगभग छह हज़ार ने भारत प्रशासित कश्मीर के जम्मू क्षेत्र में पनाह ले रखी है. ये लोग कई सालों से यहां रह रहे हैं और झुग्गी झोपड़ियों में रहते हुए छोटे-मोटे काम करके अपना और अपने परिवार का पेट पाल रहे हैं.

पिछले दो-तीन महीनों में जम्मू में कुछ हिंदुत्ववादी राजनीतिक और व्यापारिक संगठनों ने उन्हें जम्मू से बेदखल करने की मुहिम छेड़ दी है. उनका दावा है कि रोहिंग्या मुसलमान जम्मू-कश्मीर के लोगों के अधिकारों और सुविधाओं का फ़ायदा उठा रहे हैं.

BBC Hindi
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English summary
Rohingya Muslims in Jammu make an emotional appeal to Prime Minister Narendra Modi.
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