चमत्कार: मृत पड़ी नदी जिंदा हो गई, मेहनत ने कमाल कर दिया
सरकारी रिकॉर्ड में इसकी लंबाई 12 किलोमीटर और चौड़ाई 100 मीटर है। साल 2005 के आसपास से ये नदी सिकुड़ने लगी। बालू माफिया द्वारा खनन और कूड़े की वजह से नदी की चौड़ाई सिकुड़कर 10 से 15 मीटर रह गया था।
नई दिल्ली। मेहनत से चमत्कार हो सकता है इस कथन को सच्चा साबित किया है केरल के मनरेगा मजदूरों ने केरल में 700 मजदूरों ने 70 दिनों तक कड़ी मेहनत कर एक मरती हुई नदी में जान डाल दिया है। केरल की पंपा और अचनकोविल नदियों की उपधारा से बनी उपनदी कुट्टमपरूर पिछले 10 साल से मृतप्राय थी। मनरेगा के तहत ग्राम पंचायत क्लीन किये जाने के बाद इसको नया जीवन मिल गया है।
नौका दौड़ प्रतियोगिता में नौकाएं जलकुंभियों में फंस जाती थी
द न्यूज मिनट की रिपोर्ट के अनुसार केरल के अलापुझा जिले में स्थित कट्टमपरूर नदी बुधानूर गांव की जीवनरेखा थी। गांव का करीब 25 हजार एकड़ धान के खेत की सिंचाई इस नदी से ही होता था। नदी का इस्तेमाल कारोबारीमाल ढुलाई के लिए भी किया करते थे। पंबा और अचनकोविल नदियों में बाढ़ आने की स्थिति में कट्टमपरूर हालात को बिगड़ने से रोकने में मदद करती थी। इन बड़ी नदियों का अतिरिक्त पानी कट्टमपरूर के रास्ते से निकल जाता था।सरकारी रिकॉर्ड में इसकी लंबाई 12 किलोमीटर और चौड़ाई 100 मीटर है। साल 2005 के आसपास से ये नदी सिकुड़ने लगी। बालू माफिया द्वारा खनन और कूड़े की वजह से नदी की चौड़ाई सिकुड़कर 10 से 15 मीटर रह गया था। बुधानूर पंचायत के प्रमुख विश्वंबर के मुताबिक नदी लगभग मृतप्राय हो गई थी। 2011 में नदी में नौका दौड़ प्रतियोगिता आयोजित की गयी तो नौकाएं इसकी जलकुंभियों में फंस गईं।
2013 में भी सफाई की कोशिश हुई थी
विश्वंबर के अनुसार 1997 तक नदी के पाट से बालू खनन कानूनी था। 1997 में पंचायत ने खनन का पट्टा रद्द कर दिया लेकिन बालू माफिया अपना काम करते रहे। इसी साल नदी को बचाने के लिए कई सामाजिक संगठनों ने आवाज उठायी। 2013 में बुधानूर ग्राम पंचायत के नेतृत्व में नदी के उद्धार की योजना भी बनी लेकिन अगले चार साल तक कुछ नहीं हो सका। आखिरकार जनवरी 2017 में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) के तहत नदी की सफाई का काम शुरू हुआ।नदी की सफाई में 700 महिलाएं और पुरुषों ने काम किया। मजदूरी के रूप में करीब एक करोड़ रुपये दिए गए।
मार्च 2017 में नदी की सूरत बदली
45 दिनों तक के काम के बाद नदी सूरत बदल गई है। 20 मार्च 2017 को 70 दिनों के काम के बाद मनरेगा मजदूरों की मेहनत रंग लाई। नदी पूरी तरह साफ हो चुकी थी। राज्य के लोक निर्माण मंत्री जी सुधाकरन ने नदी के पुनर्जिवित होने के बाद इसमें नौका की सवारी की। गांव वालों के अनुसार नदी का पानी अभी पीने और खाना बनाने लायक नहीं है लेकिन जल्दी ही हो जाएगा।