इन 10 बातों में समझिए मुलायम-अमर की मुलाकात के मायने
लखनऊ में जनेश्वर मिश्र पार्क के लोकार्पण समारोह के दौरान राजनीति के दो दिग्गज मुलायम सिंह यादव और अमर सिंह चार साल बाद आमने-सामने आये। कहने को तो वो दुश्मन हैं, लेकिन आज उनकी पुरानी दोस्ती की खबरें तेजी से दौड़ रही हैं। हर कोई यही सोच रहा है कि अमर सिंह की राजनीति में नया अध्याय शुरू होने वाला है।
अगर इतिहास के पन्नों को पलटें तो 'अमर सिंह' नाम के साथ कभी सपा के कर्ता-धर्ता व राजनैतिक दिग्गज शब्द जोड़ा जाता था। वक्त के साथ रास्ते बदले और आमर सिंह की गाड़ी बेपटरी सी नज़र आने लगी।
हालांकि उन्होंने अपना दौर जी लिया था पर धीरे-धीरे उनकी राह में रोड़े नज़र आए और आज वे अलग-थलग होकर यहां-वहां दरवाज़ों पर दस्तक दे रहे हैं। मुलायम सिंह के कार्यक्रम में शामिल होकर अमर ने ज़ाहिर तो किया कि 'उन्हें मुलायम ने फोन किया था' पर क्या इस फोन, कॉल, मेल-मिलाप के मायने कुछ और हैं- घुमाएं स्लाइडर और हमारे साथ जानें इस 'अमर कहानी' को...
'अमर' राजनीति
अमर सिंह आजमगढ़ के रहने वाले हैं। उन्होंने अपनी राजनीति कोलकाता से शुरू की थी। अमर सिंह की राजनीति की शुरूआत कांग्रेस से काफी निचले स्तर से हुई थी।
व्यवहारिकता काम आई अमर की
शुरुआत में दिग्गज कांग्रेसी नेताओं की आवभगत के दौरान अमर सिंह की जान पहचान पूर्व विदेश मंत्री स्वर्गीय दिनेश सिंह के निजी सचिव से हुई। इस दौरान वे यूपी के ताकतवर नेता अरुण सिंह मुन्ना , के के बिड़ला से मिले व उनके जनसंपर्क अधिकारी बन गए।
अमिताभ बच्चन और अमर सिंह
राजनैतिक भागदौड़ में अमर सिंह का इलाहाबाद भी आना जाना शुरू हो गया जहां वे क्षेत्र के पूर्व सांसद अमिताभ बच्चन के नजदीक आए। यह नज़दीकी काफी रंग लाई।
कैश फॉर वोट कांड व अमर सिंह
जब राजनीति चमक उठी तो अमर जल्दी-जल्दी तरक्की की सीढि़यां चढ़ने लगे। कैश फॉर वोट कांड में अमर सिंह व उनके निजी सहयोगी पर आरोप लगे, जिसके बाद उन्हें गहरा धक्का लगा।
सपा में परिवारवाद से झुंझलाए अमर
भीतरी कारण जो भी रहे हों पर अमर सिंह परिवारवाद का मुद्दा उठाकर सपा से किनारा कर गए। बताया गया कि मुलायम के कई खास लोग अमर के ख़िलाफ खड़े हो गए थे।
नहीं गली अमर की दाल
सपा में करीबियों को पारिवारिक दर्जा दिया जाता रहा है। जैसे अमर सिंह, अमिताभ बच्चन, जया प्रदा और अनिल अंबानी जैसे लोग भी सपाकरीबियों की सुर्खियां बने हैं। जब यह सम्बंध टूटा तो अमर ने बीते साल रालोद का दामन भी थामा पर दाल नहीं गल पाई।
परिवारवाद नहीं असली वज़ह?
अमर के परिवारवाद के आरोप किसी को हजम नहीं हुए। सिर्फ मुलायम ही नहीं, लालू का राजद, मायावती की बसपा, ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस, ओम प्रकाश चौटाला का इनेलो, अजित सिंह का रालोद, शिबू सोरेन का झामुमो, ठाकरे की शिव सेना, करुणानिधि की द्रमुक, जयललिता की अन्नाद्रमुक अपने दौर में परिवारवाद का नमूना ही तो हैं।
मुलायम-अमर संग
इस दौर में जब अमर को कांग्रेस में जाने का फायदा नहीं, भाजपा में उन्हें क्षेत्रीय पद मिलना भी मुश्कल, रालोद व हर दल में नुकसान दिख रहा हो, ऐसे में उन्हें पुराने सहयोगी ही नज़र आ रहे हैं। मुमकिन है मुलायम-अमर का साथ जल्द ही हकीकत में बदल जाए।
बेहतर रणनीतिकार हैं अमर
मुमकिन है कि बीते दिनों से वरुण गांधी को लेकर चल रहे शंखनाद के चलते सपा में एक बेचैनी का माहौल बना हो। बेहतर रणनीतिकार के तौर पर अमर को पार्टी ने न्यौता भेजा हो।
अमर का सहारा।
चूंकि सपा को डर है कि हालिया चुनावी परिणामों में वह जिस तरह से अपने ही गढ़ों में हारी है, उसे कोई पुरानी रणनीति ही पटरी पर ला सकती है। केंद्र में कांग्रेस, यूपी में सपा की हालत सी एक ना हो जाए इसलिए चाहिए किसी का सहारा।