क्विक अलर्ट के लिए
नोटिफिकेशन ऑन करें  
For Daily Alerts
Oneindia App Download

पेरारिवलनः इंजीनियरिंग की पढ़ाई से लेकर राजीव गांधी हत्या मामले में सज़ा और फिर रिहाई तक

भारत के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या के जुर्म में एजी पेरारिवलन को लगभग 30 साल जेल में बिताने पड़े. इसी सप्ताह उनकी रिहाई हुई.

By BBC News हिन्दी
Google Oneindia News
पेरारिवलन
BBC
पेरारिवलन

राजीव गांधी हत्याकांड में दोषी साबित होने के बाद आजीवन कारावास की सज़ा काट रहे सात लोगों में से एक एजी पेरारिवलन को सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को तुरंत रिहा करने का फ़ैसला सुनाया. उसके बाद वो उसी दिन सालों की क़ैद से रिहा हो गए.

अपनी रिहाई के बाद पेरारिवलन ने अपनी मां के साथ चेन्नई हवाई अड्डे पर तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन से मुलाक़ात की. इस मुलाक़ात में उन्होंने अपनी रिहाई के लिए प्रयास करने के लिए तमिलनाडु सरकार को धन्यवाद दिया.

मौत की सज़ा का सामना करने वाले पेरारिवलन काफ़ी लंबी चली क़ानूनी लड़ाई के बाद रिहा हो पाए हैं. और तब से वो एक बार फिर चर्चा में हैं.

पेरारिवलन पर पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी को आत्मघाती हमले में मारने में इस्तेमाल वाले बम की बैटरी ख़रीदने का आरोप लगा और दोष साबित भी हुआ.

इंजीनियरिंग की पढ़ाई

पेरारिवलन के पिता कुयिलदासन उर्फ़ ज्ञानशेखरन थे और उनकी मां अर्पुथम अम्मल हैं. उनका जन्म 30 जुलाई, 1971 को तमिलनाडु के मौजूदा तिरुप्पथुर ज़िले के जोलारपेट्टई में हुआ.

बचपन में पढ़ाई में वे अच्छे थे और 10वीं में उन्होंने अपने स्कूल में दूसरा स्थान हासिल किया था. उसके बाद उन्होंने इलेक्ट्रॉनिक्स और कम्युनिकेशन इंजीनियरिंग में डिप्लोमा किया. पेरियारवादी विचारधारा से प्रभावित होने के चलते पढ़ाई पूरी करने के बाद वो एक दैनिक अख़बार 'विदुतलाई' के कंप्यूटर विंग में काम करने लगे.

उसी समय 21 मई, 1991 की रात क़रीब 10.20 बजे भारत के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की राज्य के श्रीपेरंबदूर में एक आत्मघाती हमले में हत्या कर दी गई.

उसके बाद, सीबीआई की स्पेशल विंग ने इस मामले की जांच शुरू की. और फिर 11 जून, 1991 को चेन्नई से रात क़रीब साढ़े 10 बजे पेरारिवलन को गिरफ़्तार कर लिया गया. उन पर उस बम में इस्तेमाल हुए 9 वोल्ट की दो गोल्डन पावर बैटरी ख़रीदने का आरोप लगाया गया था.

उन्हें जब गिरफ़्तार किया गया था, तब उनकी उम्र सिर्फ़ 19 साल थी. उन्हें 'मल्लीगई' नामक उस बिल्डिंग में ले जाया गया, जहां पर राजीव गांधी हत्याकांड की जांच चल रही थी.

पेरारिवलन ने अपनी किताब 'तुकू कोट्टाडियिल इरुंधु ओरु मुरैयिट्टू मदल' (फाँसी के तख़्ते से अपील का एक पत्र) में लिखा है कि 'मल्लीगई' बिल्डिंग में बंद करने के बाद उन्हें जमकर प्रताड़ित किया गया.

उनका यह भी कहना है कि जांच अधिकारियों द्वारा दिए गए कागज़ात पर उन्होंने केवल इसलिए साइन किए कि वो और यातना नहीं झेल सकते थे.

मौत की सज़ा

क़रीब सात साल तक चली लंबी सुनवाई के बाद 28 जनवरी, 1998 को इस मामले के लिए बनी विशेष अदालत ने सभी 26 अभियुक्तों को मौत की सज़ा सुनाई. इसके बाद इस फ़ैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई. इस अपील पर 5 मई, 1999 को फ़ैसला सुनाया गया.

इसमें पेरारिवलन, नलिनी, संथान और मुरुगन को मौत की सज़ा बरक़रार रखी गई, जबकि रॉबर्ट पेस, जयकुमार और रविचंद्रन की मौत की सज़ा आजीवन कारावास में बदल दी गई. वहीं शनमुगा वाडिवेलु को दोषी न मानते हुए रिहा करने का आदेश दिया गया.

सुप्रीम कोर्ट ने माना कि इस मामले में शामिल बाक़ी 18 लोगों ने आरोपों की तुलना में कम अपराध किए थे. चूंकि वे सालों से क़ैद की ज़िंदगी बिता रहे थे, इसलिए उन सबकी सज़ा पूरी मानते हुए सुप्रीम कोर्ट ने रिहा करने का आदेश दिया.

पेरारिवलन के लिए यह बहुत बड़ा झटका था. सीबीआई ने क़ैदियों की रिहाई का विरोध करते हुए कोर्ट में अपील की. वहीं मौत की सज़ा पाने वालों ने भी अपील दाख़िल की, लेकिन इसे ख़ारिज कर दिया गया.

उसी साल 10 अक्तूबर को मौत की सज़ा पाए सभी चार लोगों ने अपनी दया याचिका तमिलनाडु के राज्यपाल के पास भेजी. उस समय की राज्यपाल फ़ातिमा बीवी ने उन सभी याचिकाओं को खारिज़ कर दिया.

उसके बाद इन चारों लोगों ने राज्यपाल पर 'स्वायत्त निर्णय' लेने का आरोप लगाते हुए मद्रास हाईकोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया. हाईकोर्ट ने राज्यपाल के फ़ैसले को रद्द करते हुए विधानसभा के सामूहिक निर्णय के आधार पर फ़ैसला लेने का निर्देश दिया.

उसके बाद, अप्रैल 2000 में तत्कालीन मुख्यमंत्री एम करुणानिधि के नेतृत्व में कैबिनेट की बैठक में इस मसले पर चर्चा की गई. कैबिनेट ने नलिनी की मौत की सज़ा को आजीवन कारावास में बदलने की सिफ़ारिश की और एक सरकारी आदेश जारी किया.

उसके बाद, बाक़ी संथन, पेरारिवलन और मुरुगन ने राष्ट्रपति केआर नारायणन और एपीजे अब्दुल कलाम के पास अपनी दया याचिका भेजी. लेकिन उन्होंने इस मसले पर कोई भी फ़ैसला नहीं लिया.

प्रतिभा देवी पाटिल जब भारत की राष्ट्रपति बनीं तो उन्होंने इन याचिकाओं को केंद्र सरकार के पास भेजा. उसके बाद 12 अगस्त, 2011 को इन दया याचिकाओं को खारिज़ करने का एलान किया गया.

मौत की सज़ा रद्द

केंद्र सरकार के उस फ़ैसले के बाद पूरे तमिलनाडु में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन होने लगे. सेनकोडी नाम की एक लड़की ने तो आत्मदाह तक कर लिया.

राष्ट्रपति के फ़ैसले को पेरारिवलन, संथान और मुरुगन ने मद्रास हाईकोर्ट में चुनौती दी. इन तीनों ने अनुरोध किया कि उनकी दया याचिकाएं चूंकि 11 सालों से लंबित रहीं, इसलिए उन्हें हुई पीड़ा को देखते हुए उनकी मौत की सज़ा रद्द की जाए.

मद्रास हाईकोर्ट ने मौत की सज़ा के ख़िलाफ़ आदेश देते हुए मामले को सुप्रीम कोर्ट भेज दिया. उसके बाद, फरवरी 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर अपना फ़ैसला सुनाया.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा, 'चूंकि इन तीन क़ैदियों की अपील सालों से नहीं सुनी गई, इसलिए इनकी मौत की सज़ा रद्द की जाती है.'

अदालत का फ़ैसला आने के अगले ही दिन तमिलनाडु की तब की मुख्यमंत्री जयललिता ने राजीव गांधी हत्याकांड के सभी क़ैदियों को रिहा करने का एलान किया. उन्होंने यह भी कहा कि सात दोषियों को तीन दिन के भीतर रिहा कर दिया जाएगा.

उसके बाद, तमिलनाडु सरकार के फ़ैसले के ख़िलाफ़ केंद्र सरकार सुप्रीम कोर्ट चली गई. राज्य सरकार के एलान पर अदालत ने अंतरिम रोक लगा दी.

उसके बाद केंद्र ने एक अहम घोषणा की. उसने कहा कि जो लोग सीबीआई की जांच वाले मामले में अभियुक्त होंगे, उन्हें बिना केंद्र की मंज़ूरी के रिहा नहीं किया जा सकता.

सुप्रीम कोर्ट ने भी ऐसा ही फ़ैसला दिया. अदालत ने यह भी कहा कि यदि रिहाई आईपीसी की धारा 161 के तहत होती है, तो केंद्र सरकार की मंज़ूरी की ज़रूरत नहीं होगी.

उसके बाद 9 सितंबर, 2018 को तमिलनाडु सरकार ने संथान, मुरुगन, पेरारिवलन, नलिनी, रविचंद्रन, रॉबर्ट पेस और जयकुमार को रिहा करने का संकल्प पारित किया. लेकिन राज्यपाल ने इस संकल्प का कोई जवाब नहीं दिया, तो फिर इन सभी को रिहा नहीं किया जा सका.

रिहाई का आदेश

पिछले साल राज्य की सत्ता में 10 साल बाद फिर से डीएमके सत्ता में आ गई. उसके बाद मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने राष्ट्रपति को एक पत्र लिखकर सभी 7 क़ैदियों की रिहाई का आदेश देने की अपील की.

इस बीच, अपनी रिहाई में हो रही देरी को लेकर पेरारिवलन ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की. अदालत का ताज़ा फ़ैसला इसके बाद ही आया है.

सालों तक जेल में रहने के दौरान, पेरारिवलन ने कंप्यूटर के एक कोर्स के अलावा टू व्हीलर टेक्नोलॉजी, रेडियो टेक्नोलॉजी, टीवी टेक्नोलॉजी और बीसीए की पढ़ाई पूरी की. साथ ही तमिल और अंग्रेज़ी में टाइपराइटिंग का कोर्स भी पूरा किया.

जांच के दौरान पेरारिवलन का बयान दर्ज करने वाले सीबीआई के पूर्व अधिकारी त्यागराजन ने एक इंटरव्यू में कहा है कि उनका बयान ग़लत तरीक़े से दर्ज किया गया था.

बहरहाल पेरारिवलन के बीते तीन दशकों का यह संघर्ष काफ़ी मुश्किलों भरा रहा. उनके इस सफ़र में उनकी मां अर्पुथम अम्मल का योगदान काफ़ी अहम रहा.

(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप यहां क्लिक कर सकते हैं. आप हमें फ़ेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम और यूट्यूब पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)

BBC Hindi
Comments
देश-दुनिया की ताज़ा ख़बरों से अपडेट रहने के लिए Oneindia Hindi के फेसबुक पेज को लाइक करें
English summary
release of A G Perarivalan, convict in Rajiv Gandhi assassination case
तुरंत पाएं न्यूज अपडेट
Enable
x
Notification Settings X
Time Settings
Done
Clear Notification X
Do you want to clear all the notifications from your inbox?
Settings X
X