10 कारण, आखिर क्यों नोटबंदी पर PM मोदी के खिलाफ सड़क पर उतरी हैं ममता बनर्जी
नोटबंदी के खिलाफ अभियान छेड़कर ममता बनर्जी राष्ट्रीय राजनीति में एक बार फिर अपनी जमीन तलाश रही हैं ताकि 2019 के लोकसभा चुनाव में वह अपना दखल रख सकें।
नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से नोटबंदी की घोषणा किए जाने के बाद से पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी सड़क पर उतरकर विरोध दर्ज करा रही हैं। कालेधन से निपटने के पीएम मोदी के मिशन के खिलाफ ममता बनर्जी 'करो या मरो' की लड़ाई लड़ रही हैं। आखिर क्या वजह है कि ममता अकेले ही मोदी सरकार के खिलाफ बड़ी लड़ाई के लिए उतरी हैं? इन 10 बातों से समझिए पूरा राजनीतिक खेल-
ममता को नहीं मिला इनका साथ
1. ममता बनर्जी ने सत्ता के लिए बीते महीनों में अपनी धुर विरोधी सीपीएम से भी हाथ मिलाने की कोशिश की थी। हालांकि मार्क्सवादियों ने उन्हें ज्यादा महत्व नहीं दिया।
2. ममता ने बीते महीनों में बिहार के सीएम नीतीश कुमार से भी समर्थन जुटाने की कोशिश की और करीबी बढ़ाई लेकिन नोटबंदी के फैसले पर नीतीश ने मोदी सरकार की सराहना की तो दीदी ने उन्हें गद्दार करार दिया। इसके बाद उन्होंने आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद से संपर्क साधा।
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बाकी विपक्ष से अलग है ममता की मांग
3. पिछले राष्ट्रपति चुनावों में तृणमूल कांग्रेस का समर्थन न करने वाली समाजवादी पार्टी से भी ममता बनर्जी ने सहयोग की अपील की और करीबी बढ़ाई। ताकि मोदी सरकार के खिलाफ उनका आंदोलन मजबूत हो सके।
4. नोटबंदी के फैसले की घोषणा के बाद से ही ममता बनर्जी ने इसे वापस लेने की मांग शुरू कर दी थी, जबकि विपक्ष की दूसरी पार्टियां फैसला लागू करने के तरीके का विरोध कर रही थीं। दूसरी पार्टियों लोगों की परेशानी पर टिकी रहीं, जबकि ममता बनर्जी ने फैसला वापस लेने की मांग जारी रखी।
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जनता के गुस्से को सरकार के खिलाफ इस्तेमाल की कोशिश
5. अगर आम आदमी की बात करें तो पश्चिम बंगाल में रिक्शा चालक से लेकर सैलरी पाने वाले लोग तक मोदी सरकार के फैसले की तारीफ कर रहे हैं। वे इसे एक सार्थक कदम मानते हैं। एटीएम और बैंकों की लंबी लाइन में खड़े लोग भी सरकार की तारीफ कर रहे हैं।
6. किराना की दुकाने और स्थानी बाजार में बिर्की गिरी है। लोग सिर्फ जरूरी सामान खरीद रहे हैं। इसका रिजल्ट यह हुआ है कि लोकल मार्केट का बिजनेस शॉपिंग मॉल में शिफ्ट हो रहा है। इस वजह से बंगाल के वो लोग ज्यादा प्रभावित हैं जिनकी रोजी इसी के जरिए चलती थी। बंगाल में खेती में भी थोड़ी देरी देखने को मिली है। इसका इस्तेमाल ममता अपने राजनीतिक फायदे के लिए कर रही हैं।
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केंद्र की राजनीति में जमीन तलाश रही हैं ममता
7. नोटबंदी के खिलाफ अभियान छेड़कर ममता बनर्जी राष्ट्रीय राजनीति में एक बार फिर अपनी जमीन तलाश रही हैं ताकि 2019 के लोकसभा चुनाव में वह अपना दखल रख सकें। नीतीश कुमार को पहले से ही लालू प्रसाद और यूपी के यादव परिवार में मचे घमासान से समस्या है। जबकि कांग्रेस के पास इतनी संख्या बची नहीं जिनके दम पर वह सरकार के खिलाफ कड़ा विरोध दर्ज करा पाए।
8. 2019 के लोकसभा चुनावों में राज्य की 42 में से कम से कम 40 सीटें जीतने का ख्वाब पाल रहीं ममता बनर्जी किसानों और छोटे कारोबारियों की नाराजगी का फायदा उठाकर अपनी राजनीति को प्रदेश में और मजबूत करना चाहती हैं। इस तबके को वह अपने आंदोलन के जरिए मोदी सरकार के खिलाफ खड़ा करना चाहती हैं।
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बीजेपी के बढ़ते प्रभाव से भी टेंशन में ममता
9. राज्य में लेफ्ट को हराने वाली ममता बनर्जी के लिए बीजेपी भी एक सिरदर्द के तौर पर उभर रही है। बीजेपी का वोट प्रतिशत राज्य में लगातार सुधरा है। यही वजह है कि ममता नोटबंदी का फैसला लागू होने के बाद कोलकाता के व्यापारियों से मिलने पहुंच गईं। इनमें से ज्यादातर वो व्यापारी थे जिन्होंने लोकसभा और राज्य विधानसभा के चुनाव में बीजेपी का समर्थन किया था।
10. ममता बनर्जी बीजेपी को पश्चिम बंगाल में अपने मुख्य विपक्षी के तौर पर देख रही हैं। अगर ऐसा होता है तो उन्हें अपनी सत्ता खोने का भी डर है। यही वजह है कि ममता ने नोटबंदी के बाद मोदी सरकार के खिलाफ सड़क से संसद तक अभियान छेड़ रखा है। संसद में उनकी पार्टी के सांसद लगातार सरकार के खिलाफ आवाज उठा रहे हैं। मोदी और ममता दोनों राज्य की जनता के बीच अपनी पैठ बनाना चाहते हैं। ममता अपनी तरह से इस काम में जुटी हैं।