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बच निकलती हैं मिलावट करने वाली 75 फीसदी कंपनियां

By Ians Hindi
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नई दिल्ली। नेस्ले इंडिया को जहां मैगी नूडल में सीमा से अधिक सीसा और एमएसजी पाए जाने के कारण नुकसान झेलना पड़ रहा है, वहीं स्वास्थ्य मंत्रालय के एक आंकड़े के मुताबिक गलत तरीके से ब्रांडिंग करते या मिलावटी खाद्य पदार्थ बेचते पाई जाने वाली हर चार में से तीन कंपनियां सजा पाने से बच जाती हैं।

Maggi

गत सात सालों में 53,406 कंपनियों के विरुद्ध खाद्य सुरक्षा कानून का उल्लंघन करने के लिए मामला चलाया गया, जिनमें से सिर्फ 25 फीसदी को ही दोषी ठहराया जा सका।

गत वर्ष देश भर में दाल, घी और चीनी जैसे खाद्य सामग्रियों के 72,200 नमूने एकत्र किए गए। इनमें से 18 फीसदी नमूने मानक से कम गुणवत्ता के और मिलावटी पाए गए।

मिलावटी खाद्य सामग्री खाने से कैंसर, अनिद्रा तथा अन्य प्रकार के स्नायु संबंधी रोग पैदा होते हैं। विशेषज्ञों के मुताबिक कम मामलों में दोष साबित न हो पाना एक प्रमुख कारण है, जिसकी वजह से देश भर में मिलावट की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है। अधिकारी कहते हैं कि खाद्य विश्लेषकों की कमी के कारण कम मामलों में दोष साबित हो पाता है।

सात सरकारी प्रयोगशालाएं बंद

एक रपट के मुताबिक, गत वर्ष विश्लेषकों की कमी के चलते राजस्थान ने सात सरकारी स्वास्थ्य प्रयोगशालाएं बंद कर दीं।

भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) के एक अधिकारी ने बताया, "देश में सिर्फ 200 खाद्य विश्लेषक हैं। इसलिए अदालत में आरोप साबित कर पाना कठिन हो जाता है।"

अधिकारी यह भी बताते हैं कि खाद्य सुरक्षा एवं मानक अधिनियम (2006) के तहत हर राज्य में अपीलीय न्यायाधिकरण स्थापित किया जाना चाहिए, लेकिन अधिकतर राज्यों ने इसे स्थापित नहीं किया है। इसके कारण भी सुनवाई लंबी खिंचती है।

अधिनियम को लागू करने की जिम्मेदारी राज्य सरकारों पर डाली गई है।

2014-15 में 45 फीसदी मामलों में दोष साबित हुए, जबकि 2008-09 की दर 16 फीसदी थी। यह वृद्धि अगस्त 2011 में एफएसएसएआई स्थापित होने के कारण हुई है।

खाद्य सामग्रियों पर गलत लेबल लगाने, मिलावट करने या असुरक्षित पदार्थ बेचने पर छह महीने से लेकर आजीवन कारावास का प्रावधान है। इसके साथ ही 10 लाख रुपये तक जुर्माना भी लगाया जा सकता है।

पिछले तीन साल में 17 करोड़ का जुर्माना

गत तीन वर्षो में सरकार ने इस कानून के तहत करीब 17 करोड़ रुपये जुर्माना वसूले हैं।

गत तीन साल के आंकड़ों के मुताबिक, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और जम्मू एवं कश्मीर जैसे कुछ राज्यों को छोड़ दिया जाए, तो बाकी राज्यों में आरोपियों को दोषी नहीं ठहराया जा सका। इस मामले में बिहार, राजस्थान और हरियाणा का प्रदर्शन काफी बुरा है।

छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश और हिमाचल प्रदेश जैसे कुछ राज्यों में हर तीन में से एक नमूना मानक पर खरा नहीं उतर पाया।

(आंकड़ा आधारित, गैर लाभकारी, लोकहित पत्रकारित मंच, इंडियास्पेंड के साथ एक व्यवस्था के तहत। यहां प्रस्तुत विचार लेखक के निजी हैं।)

इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।

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English summary
According to the latest data provided by Health Ministry 75 per cent of the companies doing adulteration get protected.
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