यूपी, बिहार, झारखंड, एमपी के गांवों का असली दर्द
नई दिल्ली। उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, ओडिशा, मध्य प्रदेश और पश्चिम बंगाल की सरकारें भले ही पैसों में खेल रही हों, लेकिन जनता आज भी दशकों पीछे चल रही है। नेताओं का दावा है कि गांव विकास कर रहे हैं, जबकि गांव में बसे घरों के अंदर कदम रखने पर मंजर कुछ और ही दिखाई देता है। यहां आज भी 95 प्रतिशत घरों में भोजन लकड़ी और गोबर के कंडों पर बनता है।
Positive India: कैसे छोड़ें गैस सुब्सिडी?
यह हम नहीं कह रहे हैं, एक्सेस टू क्लीन कुकिंग एनर्जी एंड इलेक्ट्रिसिटी-सर्वे ऑफ स्टेट की रिपोर्ट कह रही है, जो इन छह राज्यों में किये गये सर्वेक्षण के आधार पर तैयार की गई है। इस रिपोर्ट में निम्न बातें निकल कर सामने आयीं-
-
ग्रामीण
केवल
14
प्रतिशत
में
ही
बायोगैस,
एलपीजी,
विद्युत
या
प्राकृतिक
गैस
का
इस्तेमाल
भोजन
पकाने
के
लिये
होता
है।
-
पूरे
भारत
में
67%
से
ज्यादा
घरों
में
आज
भी
भोजन
चूल्हे
पर
बनता
है।
-
ग्रामीण
उत्तर
प्रदेश
में
केवल
5
प्रतिशत
घर
ही
एलपीजी
पर
भोजन
पकाते
हैं,
जबकि
पूरे
यूपी
में
33
प्रतिशत
घरों
में
एलपीजी
कनेक्शन
हैं।
-
ग्रामीण
इलाकों
में
एलपीजी
कनेक्शन
के
मामले
में
यूपी
के
बाद
पश्चिम
बंगाल,
फिर
बिहार,
मध्य
प्रदेश,
ओडिशा
और
झारखंड
हैं।
-
9
सिलेंटर
प्रति
वर्ष
के
हिसाब
से
बिहार
के
रहने
वाले
लोगों
की
औसत
आय
का
19
प्रतिशत
सिर्फ
एलपीजी
पर
खर्च
हो
जाता
है।
-
यूपी
में
लोगों
की
औसत
आय
का
15
प्रतिशत,
झारखंड
में
12
प्रतिशत,
मध्य
प्रदेश
में
10
प्रतिशत,
ओडिशा
में
10
प्रतिशत
खर्च
होता
है।
-
88%
लोगों
का
कहना
है
कि
एलपीजी
सिलेंडर
उन्हें
महंगा
पड़ता
है,
इसलिये
नहीं
लेते।
-
72%
लोगों
का
कहना
है
कि
एलपीजी
सिलेंडर
उनके
घर
पहुंचता
ही
नहीं
है।
- झारखंड के ग्रामीण इलाकों में 85 प्रतिशत लोगों का कहना है कि उनके इलाकों में एलपीजी डिस्ट्रीब्यूटर ही नहीं है।
जरा सोचिये डिजिटल इंडिया और स्मार्ट सिटी का ख्वाब देख रहे भारत के लिये अभी तक ग्रामीण इलाकों में एलपीजी मुहैया कराना संभव नहीं हो पा रहा है। ऐसे में कौन भारतीय होगा, जो स्मार्ट विलेज के सपने देखेगा, शायद केवल वही, जो हकीकत से अंजान है।