देखिए 1978 में नोटबंदी के बाद लगी थी कितनी लंबी लाइन, लोगों ने झेली थीं कितनी परेशानियां
1978 में नोटबंदी का निर्णय कैसे और क्यों लिया गया था? 2016 के डिमोनेटाइजेशन के बारे में बहुत कुछ कहता है 1978 का फैसला।
दिल्ली। 2016 में 500 और 1000 के नोटों को पर पाबंदी के बाद बैंकों और एटीएम के आगे लंबी लाइनें लग रही हैं और लोगों को पैसों के लिए घंटों का इंतजार करना पड़ रहा है।
ऐसा पहली बार नहीं हुआ है। 1978 में भी 1000, 5000 और 10,000 के नोटों पर बैन के बाद बहुत लंबी लाइनें लगी थीं, जिसे आप नीचे की तस्वीर में देख सकते हैं। आइए आपको इस तस्वीर के बारे में बताते हैं।
Read Also: मोदी से पहले भी हो चुका है ऐसा बोल्ड फैसला, जानिए तब कौन थे पीएम?
स्टोरी में आपको यह भी बताते हैं कि 1978 में जब डिमोनेटाइजेशन हुआ था तब लोगों को क्या-क्या समस्याएं झेलनी पड़ी थीं?
1978 में मुंबई का हुआ था यह हाल
जो तस्वीर आप ऊपर देख रहे हैं, वह 18 जनवरी, 1978 का है। यह मुंबई की तस्वीर है जिसे उस समय बंबई कहा जाता था।
तस्वीर में रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया की बिल्डिंग है जिसके आगे बहुत लंबी लाइन है। यह लॉन्ग शॉट फोटो यह दिखा रही है कि उस समय भी नोटबंदी के बाद लोगों ने कितनी परेशानियां झेली थीं।
फोटो क्रेडिट - टाइम्स ऑफ इंडिया
शादी में आई थीं मुश्किलें, लोगों को हुआ था हार्ट अटैक
2016 के डिमोनेटाइजेशन के बाद कैश की कमी की वजह से लोगों को शादियों के अरेंजमेंट में भारी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है और कइयों की अलग-अलग वजहों से मौत भी हुई है।
1978 में भी कुछ ऐसा ही हुआ था। जब 1000 रुपए पर बैन लगा तो ऐसी खबर आई कि पश्चिम बंगाल में एक पंडित को अपनी बेटी की शादी की तिथि आगे बढ़ानी पड़ी।
वहीं नैनीताल में नोट एक्सचेंज करवाने गए एक बिजनेसमैन को दिल का दौरा पड़ गया और उनकी वहीं मौत हो गई।
1978 में ऐसे हुई थी नोटबंदी की घोषणा
इमरजेंसी के बाद जब जनता पार्टी सत्ता में आई तो 14 जनवरी 1978 को सरकार ने आरबीआई के एक वरिष्ठ अधिकारी आर जनकिरमन को अकेले ही दिल्ली आने को कहा।
लेकिन अधिकारी एक सहायक के साथ दिल्ली आए। उनको सरकार ने डिमोनेटाइजेशन का ड्राफ्ट तैयार करने के लिए सिर्फ 24 घंटे का समय दिया। अधिकारी को बंबई के आरबीआई हेडक्वार्टर से संवाद करने नहीं दिया गया।
काले धन पर नियंत्रण पाने के लिए 16 जनवरी 1978 को सरकार ने 1000, 5000 और 10,000 के नोटों को सर्कुलेशन से हटाने की घोषणा कर दी।
उस समय भी घोषणा के अगले दिन सार्वजनिक छुट्टी रखी गई ताकि बैंक आने वाली मुश्किलों का सामना करने की तैयारी कर सकें। लोगों को पुराने नोट को एक्सचेंज करने के लिए सिर्फ तीन दिन का समय दिया गया।
सुबह से लगी एसबीआई और आरबीआई के आगे लंबी लाइनें
जनता सरकार की घोषणा के बाद स्टेट बैंक ऑफ इंडिया और रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के आगे तड़के से ही लोगों की लंबी लाइनें लगने लगीं।
बैंकों में अतिरिक्त काउंटर्स बनाए गए। शाम में 6.30 बजे तक बैंकों में काम होता था। कैश की कमी की वजह से और एक्सचेंज करवाने के दौरान लोगों और विदेशी टूरिस्ट्स का गुस्सा फूटा था।
नोटबंदी के पक्ष में नहीं थे गवर्नर आईजी पटेल
लोगों को हो रही मुश्किलों के बावजूद जनता सरकार के गृह मंत्री एचएम पटेल खुश थे और उन्होंने कहा था, 'परिणाम कुछ भी हो, मुझे आप मुस्कुराते हुए पाएंगे।'
लेकिन 1978 में रिजर्व बैंक के गर्वनर आईजी पटेल डिमोनेटाइजेशन के पक्ष में नहीं थे क्योंकि उनका मानना था कि इससे काले धन पर रोक नहीं लगती। आईजी पटेल का कहना था, 'जो लोग काला धन जमा करते हैं वह इसे कैश के तौर पर बहुत कम रखते हैं। यह कहना कि लोगों ने सूटकेस और गद्दों में नोट छिपा रखे है, बिल्कुल बचकानी बात है।'
पूर्व वित्त मंत्री सी सुब्रमण्यम ने 1978 में डिमोनेटाइजेशन के बारे में कहा था कि इसका मकसद राजनीतिक था और यह दूसरी पार्टियों को नुकसान पहुंचाने के मकसद से उठाया गया कदम था।
अब 2016 में नरेंद्र मोदी सरकार ने उत्तर प्रदेश और पंजाब चुनाव से ठीक पहले डिमोनेटाइजेशन का कदम उठाया है उसके बारे में 1978 का डिमोनेटाइजेशन बहुत कुछ कहता है।
Read Also: RBI ने कहा, नोट बदलने के लिए पहचान पत्र की फोटोकॉपी की जरूरत नहीं