वो वाघेला जिन्होंने मोदी को गुजरात से बाहर निकलावाया..
गुजरात के दिग्गज नेता और पूर्व मुख्यमंत्री शंकर सिंह वाघेला कॉलेज के दिनों से ही आरएसएस से जुड़े रहे.
गुजरात के दिग्गज नेता और पूर्व मुख्यमंत्री शंकर सिंह वाघेला ने शुक्रवार को कांग्रेस से इस्तीफ़ा दे दिया.
अपने 77वें जन्मदिन पर उन्होंने शक्ति प्रदर्शन करते हुए एक रैली की और उसमें कहा कि कांग्रेस पार्टी ने उन्हें निकाल दिया है.
इस मौके पर गांधीनगर में हुए वाघेला के भाषण को सुनकर यह तो साफ़ लगा कि दबंग आवाज़ वाले, 77 साल के गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री शंकर सिंह वाघेला रिटायरमेंट के मूड में तो नहीं हैं.
लेकिन वाघेला ने ऐसा कोई साफ़ इशारा भी नहीं दिया, जिससे पता लग सके कि वो आगे क्या करने वाले हैं.
कहा जाता है कि भारतीय राजनीति में वाघेला जैसे कुछ ही नेता होंगे जिनके बारे में आप तय नहीं कर पाएंगे कि ये दोस्त किसके हैं और विरोधी किसके.
करीब दो महीने पहले ट्विटर पर राहुल गाँधी और अन्य कांग्रेसी नेताओं को अनफ़ॉलो कर वह चर्चा में आए थे. इससे पहले बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह और वाघेला की एक बैठक भी हुई थी, जो सुर्ख़ियों में रही थी.
वाघेला की नाराज़गी एक रिवाज़
इस बैठक के बाद भी अटकलें लगाई गई थीं कि वो कांग्रेस का हाथ छोड़ अपने पुराने दोस्तों के साथ बीजेपी में शामिल हो जाएंगे.
वाघेला को अमित शाह का राजनीतिक गुरु बताया जाता है. लेकिन क्या गुजरात में 'बापू' के नाम से जाने जानेवाले वाघेला अब बीजेपी का रुख करेंगे, यह कुछ दिन में साफ हो जाएगा.
वैसे वाघेला यह बात जानते हैं कि इस साल होने वाला गुजरात विधानसभा चुनाव शायद उनके लिए आखिरी चुनाव हो.
पर पिछले दो दशकों से गुजरात में कोई भी चुनाव हो, वाघेला की नाराज़गी वाली ख़बर तो एक रिवाज़ बन गई है.
फिर चाहे वाघेला बीजेपी से लड़ रहे हों या कांग्रेस से. मानो गुजरात के राजनेताओ में रूठ जाने का रिकॉर्ड 'बापू' का ही है.
'बापू' का बायोडेटा
गुजरात में शायद ही किसी राजनेता के पास वाघेला जैसा बायोडेटा है.
कॉलेज के समय से आरएसएस से जुड़े रहे वाघेला को इमरजेंसी के वक़्त इंदिरा गाँधी की सरकार ने जेल में बंद कर दिया था.
वह जनसंघ से जुड़े थे और इमरजेंसी के बाद 1977 में जनता पार्टी की टिकट पर लोकसभा के सदस्य बने.
फिर 1980 में वह गुजरात बीजेपी के महासचिव और उसके बाद पार्टी अध्यक्ष.
1990 के बाद जब लालकृष्ण आडवाणी बीजेपी के लिए राष्ट्रीय नेता बन गए तो यह तय था कि गुजरात में बीजेपी के आने पर नेता वाघेला ही होंगे.
मोदी के साथ
उन दिनों पार्टी में उनके सबसे क़रीबी थे नरेंद्र मोदी जिनके साथ वह गुजरात में घूमा करते थे.
लेकिन आडवाणी का झुकाव मोदी की तरफ़ ज़्यादा था और बापू जान गए थे कि उनका दोस्त उनके लिए ख़तरा बन सकता है.
1995 में जब बीजेपी गुजरात में 121 सीटों पर जीती तब आडवाणी और मोदी ने वाघेला को हटाकर केशुभाई पटेल को मुख्यमंत्री बना दिया.
फिर क्या था वाघेला नाराज़ हो गए. इसके बाद बापू ने जो कर दिखाया वह बीजेपी और गुजरात में कभी नहीं हुआ था.
केशुभाई पटेल और मोदी के सामने वाघेला ने अब मोर्चा खोल दिया था.
सबको खुजराहो भेज दिया
1995 में जब पटेल अमरीका दौरे पर गए तब वाघेला ने गुजरात बीजेपी के 55 विधायकों के साथ विद्रोह कर दिया.
वाघेला ने इन सभी विधायकों को एक निजी विमान में रात को तीन बजे अहमदाबाद से खुजराहो भेज दिया.
वाघेला को मनाने के लिए, उनके कहने पर पार्टी ने नरेंद्र मोदी को गुजरात से बाहर भेज दिया और पटेल को हटाकर बापू के खेमे से सुरेश मेहता को गुजरात का मुख्यमंत्री बना दिया गया.
लेकिन इससे वाघेला शांत नहीं हुए. वह भांप गए थे कि मोदी गुजरात से बाहर तो हैं पर अमित शाह के सहारे उन्होंने अपना दबदबा बनाए रखा है.
1996 में गोधरा से लोकसभा का चुनाव हारने के बाद वाघेला बीजेपी से अलग हो गए और उन्होंने अपनी पार्टी बना ली.
गुजरात में सरकार
वाघेला की राष्ट्रीय जनता पार्टी ने कांग्रेस के साथ मिलकर गुजरात में सरकार बनाई.
वाघेला इस सरकार में एक साल तक मुख्यमंत्री रहे और बाद में कांग्रेस से मतभेद होने के बाद वाघेला को दिलीप पारीख को मुख्यमंत्री बनाना पड़ा.
लेकिन पारीख की सरकार लंबी नहीं चली और कुछ ही महीने में गुजरात में फिर चुनाव हुए.
1998 के इस चुनाव में वाघेला की पार्टी को सिर्फ़ चार सीटें मिलीं जिसके बाद वह अपनी पार्टी के साथ कांग्रेस में शामिल हो गए.
वाघेला ने 1995 में मोदी को गुजरात से बाहर भले ही निकलवा दिया हो पर वह मजबूत होकर बतौर मुख्यमंत्री 2001 में गुजरात लौटे.
मोदी के सामने वाघेला
साल 2002 के दंगों के बाद ध्रुवीकरण के कारण बीजेपी गुजरात में और ज़्यादा मज़बूत हो गई.
ऐसे समय में गुजरात कांग्रेस में ऐसा कोई नेता नहीं था जो मोदी और शाह को समझ सके और उन्हें रोक सके.
तब सोनिया गाँधी ने गुजरात में वाघेला को कांग्रेस की कमान सौंपी. इसे कई कांग्रेसी नेता खुश नहीं थे क्योंकि वह कांग्रेस में वाघेला को 'बाहरवाला' मानते थे.
सोनिया गाँधी के राजनीतिक सलाहकार और गुजरात कांग्रेस के सबसे कद्दावर नेता अहमद पटेल की भी वाघेला से बनती नहीं थी.
लेकिन सोनिया जानती थीं कि मौजूदा हालत में वाघेला से बेहतर उनके पास कोई नहीं है.
यूपीए सरकार
लेकिन वाघेला अपने इस नए रोल में नाकाम रहे. उनके कार्यकाल के दौरान कांग्रेस गुजरात में मोदी विरोधी पार्टी के तौर पर उभरी, पर लोगों से दूर जाती दिखी.
फिर 2004 में जब यूपीए की सरकार बनी तब गाँधी ने वाघेला को कपड़ा मंत्री बना दिया. वाघेला मोदी से लोहा लेते रहे, लेकिन कांग्रेस को गुजरात में मज़बूत नहीं कर पाए.
2009 का लोकसभा चुनाव हारने के बाद पार्टी में उनका कद छोटा हो गया.
लेकिन, 2012 के गुजरात चुनाव में जहां कांग्रेस के सभी दिग्गज नेता हार गए, वहीं वाघेला कपडवंज सीट से जीत गए.
फिर, मोदी के 2014 में प्रधानमंत्री बनने पर गुजरात विधानसभा में अपने भाषण में उन्होंने पुराने मित्र और शत्रु की प्रशंसा कर सबको अचम्भित कर दिया था.