प्रणब ने जताई चिंता, कहा असहिष्णुता और हिंसा लोकतंत्र के साथ धोखा
नयी दिल्ली। राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर देश को संबोधित किया और देश वासियों को आजादी की वर्षगांठ की शुभकामाएं दी। अपने संबोधन में प्रणव ने लोकतंत्र के प्रति चिंता जताई और कहा कि लोकतंत्र शोरगुल का नाम नहीं है। उन्होंने कहा कि लोकतंत्र उत्तेजित करने वाले भड़काऊ, जहरीले भाषणों का नाम नहीं है। असहिष्णुता और हिंसा लोकतंत्र की मूल भावना के साथ धोखा है।
लोकतंत्र को जिम्मेदारी का अहसास है। इसे बनाए रखना है तो संस्थाओं को भी मजबूत करना होगा। कुछ चिंता के ही लहजे में उन्होंने कहा कि क्या संसद में गंभीर विचार मंथन और अच्छी बहस नहीं हो सकती है? क्या अदालतों को हम न्याय का मंदिर नहीं बना सकते हैं? मुखर्जी ने स्वतंत्रता की 67वीं वर्षगांठ की पूर्व संध्या पर राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में कहा कि लोकतंत्र में, जनता के कल्याण हेतु हमारे आर्थिक एवं
सामाजिक संसाधनों के दक्षतापूर्ण एवं कारगर प्रबंधन के लिए शक्तियों का प्रयोग ही सुशासन कहलाता है। प्रणब मुखर्जी ने कहा कि गरीबी के अभिशाप को समाप्त करना हमारे समय की निर्णायक चुनौती है। अब हमारी नीतियों को गरीबी के उन्मूलन से गरीबी के निर्मूलन की दिशा में केंद्रित होना होगा। यह अंतर केवल शब्दार्थ का नहीं है : उन्मूलन एक प्रक्रिया है जबकि निर्मूलन समयबद्ध लक्ष्य।
प्रणब मुखर्जी ने कहा कि हम अपने वातावरण को गंदगी से मुक्त क्यों नहीं रख सकते। महात्मा गांधी की 150वीं वर्षगांठ की स्मृति के सम्मान स्वरूप 2019 तक भारत को स्वच्छ राष्ट्र बनाने का प्रधानमंत्री का आह्वान सराहनीय है, परंतु यह लक्ष्य तभी हासिल किया जा सकता है जब प्रत्येक भारतीय इसे एक राष्ट्रीय मिशन बना ले।