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गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर राष्ट्रपति ने किया संबोधित, कहा-अब तक नहीं पूरा हुआ गांधी जी का मिशन

राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने 68 वें गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर राष्ट्र के नाम संबोधित किया।

By Rahul Sankrityayan
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नई दिल्ली। भारत के राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने 68वें गणतंत्र दिवस के मौके पर राष्ट्र के नाम संदेश दिया। राष्ट्रपति ने कहा कि 68 वें गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर मैं सभी देशवासियों को बधाई देता हूं। कहा कि सशस्त्र बलों, पैरामिलिट्री फोर्सेज और आतंरिक सुरक्षा बलों को मेरी ओर से खास बधाई। उन्होंने कहा कि जब 15 अगस्त 1947 को भारत आजाद हुआ था तो हमारे शासन के पास कोई दस्तावेज नहीं था।

गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर राष्ट्रपति ने किया संबोधित
  • कहा कि हमने 26 जनवरी 1950 तक इंतजाम किया जब भारत की जनता ने खुद को संविधान के हवाले किया। हमने भाईचारे, व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखंडता को प्रोत्साहित करने का वचन दिया और उस दिन हम विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र बन गए।
  • कहा कि भारतीय लोकतंत्र अशांति से ग्रस्त क्षेत्र में स्थिरता का मरूद्यान रहा है। आज हम विश्व की प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में सबसे तेजी से बढ़ रही अर्थव्यवस्था हैं।राष्ट्रपति ने कहा कि हम वैज्ञानिक और तकनीकी जनशक्ति के दूसरे सबसे बड़े भंडार, तीसरी सबसे बड़ी सेना, न्यूक्लीयर क्लब के छठे सदस्य हैं। राष्ट्रपति ने कहा कि अंतरिक्ष की दौड़ में शामिल छठे सदस्य और दसवीं सबसे बड़ी औद्योगिक शक्ति हैं।
  • कहा कि एक निवल खाद्यान्न आयातक देश से भारत अब खाद्य वस्तुओं का एक अग्रणी निर्यातक बन गया। अब तक की यात्रा घटनाओं से भरपूर, कभी-कभी कष्टप्रद, परंतु अधिकांशतः आनंददायक रही है और जैसे हम यहां तक पहुंचे हैं वैसे ही और आगे भी पहुंचेंगे।
  • राष्ट्रपति ने कहा कि जैसे हम यहां तक पहुंचे हैं वैसे ही और आगे भी पहुंचेंगे। परंतु हमें बदलती हवाओं के साथ तेजी व दक्षतापूर्वक रुख में परिवर्तन करना सीखना होगा। कहा कि प्रगतिशील और वृद्धिगत विकास में विज्ञान और प्रौद्योगिकी की उन्नति से पैदा हुए तीव्र व्यवधानों को समायोजित करना होगा।
  • राष्ट्रपति ने कहा कि नवाचार, और उससे भी अधिक समावेशी नवाचार को एक जीवनशैली बनाना होगा। कहा कि मनुष्य और मशीन की दौड़ में, जीतने वाले को रोजगार पैदा करना होगा। प्रौद्योगिकी अपनाने की रफ्तार के लिए एक ऐसे कार्यबल की आवश्यकता होगी जो सीखने और स्वयं को ढालने का इच्छुक हो।
  • कहा कि इससे उनके लिए कभी-कभी स्वतंत्रता को हल्के में लेना आसान हो जाता है।लोकतंत्र ने हम सब को अधिकार प्रदान किए हैं। परंतु इन अधिकारों के साथ-साथ दायित्व भी आते हैं। राष्ट्रपति ने कहा कि आज युवा आशा और आकांक्षाओं से भरे हुए हैं।
  • कहा कि खुशहाली समान रूप से आर्थिक और गैर आर्थिक मानदंडों का परिणाम है और खुशहाली के प्रयास सतत विकास के साथ मजबूती से जुड़े हुए हैं। कहा कि हमें अपने लोगों की खुशहाली और बेहतरी को लोकनीति का आधार बनाना चाहिए और सरकार की प्रमुख पहलों का निर्माण समाज के कल्याण को बढ़ावा देने के लिए किया गया है।
  • कहा कि हमारी अर्थव्यवस्था चुनौतीपूर्ण वैश्विक आर्थिक परिस्थितियों के बावजूद, अच्छा प्रदर्शन करती रही है। यद्यपि हमारे निर्यात में अभी तेजी आनी बाकी है, परंतु हमने विशाल विदेशी मुद्रा भंडार वाले स्थिर बाह्य क्षेत्र को कायम रखा है। कहा कि काले धन को बेकार करते हुए और भ्रष्टाचार से लड़ते हुए, विमुद्रीकरण से आर्थिक गतिविधि में, कुछ समय के लिए मंदी आ सकती है।
  • राष्ट्रपति ने कहा कि लेन-देन के अधिक से अधिक नकदीरहित होने से अर्थव्यवस्था की पारदर्शिता बढ़ेगी। स्वतंत्र भारत में जन्मी, नागरिकों की तीन पीढि़याँ औपनिवेशिक इतिहास के बुरे अनुभवों को साथ लेकर नहीं चलती हैं। इन पीढि़यों को स्वतंत्र राष्ट्र में शिक्षा और अवसरों को प्राप्त करने तथा सपने पूरे करने का लाभ मिलता रहा है।
  • राष्ट्रपति ने कहा कि इससे उनके लिए कभी-कभी स्वतंत्रता को हल्के में लेना आसान हो जाता है। लोकतंत्र ने हम सब को अधिकार प्रदान किए हैं। परंतु इन अधिकारों के साथ-साथ दायित्व भी आते हैं।
  • राष्ट्रपति ने कहा कि सरकार की प्रमुख पहलों का निर्माण समाज के कल्याण को बढ़ावा देने के लिए किया गया। कहा कि भारत का बहुलवाद और उसकी सामाजिक, सांस्कृतिक, भाषायी और धार्मिक अनेकता हमारी सबसे बड़ी ताकत है। हमारी परंपरा ने सदैव 'असहिष्णु' भारतीय नहीं बल्कि 'तर्कवादी' भारतीय की सराहना की है।
  • कहा कि सदियों से हमारे देश में विविध दृष्टिकोणों, विचारों और दर्शन ने शांतिपूर्वक एक दूसरे के साथ स्पर्द्धा की है और लोकतंत्र के फलने-फूलने के लिए, एक बुद्धिमान और विवेकपूर्ण मानसिकता की जरूरत है। कहा कि एक स्वस्थ लोकतंत्र के लिए सहिष्णुता, धैर्य और दूसरों का सम्मान जैसे मूल्यों का पालन करना आवश्यक है।ये मूल्य प्रत्येक भारतीय के हृदय और मस्तिष्क में रहने चाहिए।
  • कहा कि हमारा लोकतंत्र कोलाहलपूर्ण है; फिर भी जो लोकतंत्र हम चाहते हैं वह अधिक हो, कम न हो। हमारे लोकतंत्र की मजबूती यह है कि 2014 के आम चुनाव में 66% से अधिक मतदाताओं ने मतदान किया। हमारे लोकतंत्र का विशाल आकार हमारे पंचायती राज संस्थाओं में आयोजित किए जा रहे नियमित चुनावों से झलकता है।
  • कहा कि हमारे विधाननिर्माता सत्र में व्यावधान के कारण अहम मुद्दों पर बहस नहीं कर पाते और विधान नहीं बना पाते। बहस, परिचर्चा और निर्णय पर पुनःध्यान देने के सामूहिक प्रयास किए जाने चाहिए। हमारे गणतंत्र के 68वें वर्ष में प्रवेश करने के दौरान हमारी प्रणालियां श्रेष्ठ नहीं है।त्रुटियों की पहचान की जानी चाहिए और उनमें सुधार लाना चाहिए।
  • कहा कि स्थायी आत्मसंतोष पर सवाल उठाने होंगे। विश्वास की नींव को मजबूत बनाना होगा। चुनावी सुधारों पर रचनात्मक परिचर्चा करने का भी समय आ गया है। राजनीतिक दलों के विचार-विमर्श से इस कार्य को आगे बढ़ाना चुनाव आयोग का दायित्व है।
  • कहा कि भयंकर रूप से प्रतिस्पर्द्धी विश्व में, हमें अपनी जनता के साथ किए गए वादे पूरा करने के लिए पहले से अधिक परिश्रम करना हो। हमें और अधिक परिश्रम करना होगा क्योंकि गरीबी से हमारी लड़ाई अभी समाप्त नहीं हुई है। हमारी अर्थव्यवस्था को अभी भी गरीबी पर तेज प्रहार करने के लिए दीर्घकाल में 10 प्रतिशत से अधिक वृद्धि करनी होगी।
  • कहा कि हमारे देशवासियों का पांचवा हिस्सा अभी तक गरीबी रेखा से नीचे बना हुआ है। गांधीजी का प्रत्येक आंख से हर एक आंसू पोंछने का मिशन अभी अधूरा है। कहा कि हमें अपने लोगों को खाद्य सुरक्षा प्रदान करने के लिए और परिश्रम करना होगा।
  • कहा कि प्रकृति के उतार-चढ़ाव के प्रति कृषि क्षेत्र को लचीला बनाने के लिए और अधिक परिश्रम करना है। हमें जीवन की श्रेष्ठ गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए हमारे ग्रामीणों को बेहतर सुविधाएं और अवसर प्रदान करने होंगे। युवाओं को और अधिक रोजगार अवसर प्रदान करने के लिए अधिक परिश्रम करना है।
  • कहा कि घरेलू उद्योग की स्पर्द्धात्मकता में गुणवत्ता, उत्पादकता और दक्षता पर ध्यान देकर सुधार लाना होगा। हमें अपनी महिलाओं और बच्चों को सुरक्षा और संरक्षा प्रदान करने के लिए और अधिक परिश्रम करना है। महिलाओं को सम्मान और गरिमा के साथ जीवन जीने में सक्षम बनना चाहिए।
  • कहा कि बच्चों को पूरी तरह से अपने बचपन का आनंद उठाने में सक्षम होना होगा।हमें अपने उन उपभोग तरीकों को बदलने के लिए और अधिक परिश्रम करना है जिनसे पर्यावरण प्रदूषण हुआ है। हमें बाढ़, भूस्खलन और सूखे के रूप में, प्रकोप को रोकने के लिए प्रकृति को शांत करना होगा।
  • राष्ट्रपति ने कहा कि हमें बहुलवादी संस्कृति और सहिष्णुता की रक्षा के लिए और परिश्रम करना होगा। ऐसी स्थितियों से निपटने में तर्क और संयम हमारे मार्गदर्शक होने चाहिए। आतंकवाद की बुरी शक्तियों को दूर रखने के लिए और अधिक परिश्रम करना है, इनका दृढ़ व निर्यायक मुकाबला करना होगा। हमारे हितों की विरोधी इन शक्तियों को पनपने नहीं दिया जा सकता।
  • कहा कि हमें आंतरिक और बाह्य खतरों के रक्षक सैनिकों और सुरक्षाकर्मियों की बेहतरी के लिए और परिश्रम करना है। हमें और अधिक परिश्रम करना है क्योंकि हम सभी अपनी मां के एक जैसे बच्चे हैं। हमारी मातृभूमि हमसे अपनी भूमिका को निष्ठा, समर्पण और दृढ़ सच्चाई से निभाने के लिए कहती है।
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English summary
President Pranab Mukherjee addressed nation on eve of 68th Republic Day
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