क्विक अलर्ट के लिए
नोटिफिकेशन ऑन करें  
For Daily Alerts
Oneindia App Download

जिनके लिए पुलिस और डकैत ‘कुआं और खाई’ की तरह हैं

उत्तर प्रदेश के चित्रकूट ज़िले में बसे गाँवों में एक डकैत का ज़बरदस्त ख़ौफ़ है. पुलिस ने उसके सिर पर पाँच लाख रूपए का इनाम रखा है.

By समीरात्मज मिश्र - चित्रकूट से, बीबीसी हिंदी डॉटकॉम के लिए
Google Oneindia News

"साहब दो महीने हो गए, गांव का कोई आदमी न तो शहर की तरफ़ गया है और न ही जंगल की तरफ़. अपनी झोंपड़ियों में ही हम क़ैद हैं. पुलिसवाले इसलिए धमकाते और दबिश डालते हैं कि तुम लोग डकैतों को अपने घर में छिपाते हो और डकैत इसलिए परेशान करते हैं कि तुम लोग मुखबिरी करते हो. अब हम लोग कहां जाएं और क्या करें?"

चित्रकूट ज़िले में नागर गांव के नत्थू कोल ये बताते-बताते लगभग रो पड़ते हैं. नत्थू कोल की तरह इस गांव के तमाम लोग इसी दर्द के साथ हमारे इर्द-गिर्द जमा हो गए. हालांकि पहले इनमें से कोई भी कुछ बोलने को तैयार नहीं था क्योंकि हम भी उन्हें 'संदिग्ध' ही लग रहे थे, लेकिन नत्थू के आगे आने के बाद सभी का दर्द जैसे छलक उठा.

डकैती में लिप्त आईपीएस अफ़सर 'रिटायर'

दो बच्चों वाली 'लेडी डकैत' का खौफ़

बबुली कोल का गिरोह

दरअसल, ये कहानी सिर्फ़ नागर गांव की ही नहीं है बल्कि मानिकपुर में पाठा के जंगलों में बसे क़रीब एक दर्जन गांवों की है. इन गांवों में कोल आदिवासियों का बाहुल्य है और यहीं बबुली कोल नाम के एक डकैत और उसके गिरोह का भी ज़बर्दस्त ख़ौफ़ है.

पुलिस के मुताबिक आए दिन आस-पास के इलाक़ों में कई वारदातों को इस गैंग के लोग अंजाम देते रहते हैं. बबुली कोल पर पुलिस ने पांच लाख रुपए का इनाम भी रखा है, लेकिन अभी तक वो पुलिस की गिरफ़्त में नहीं आ पाया है. उसी की तलाश में पुलिस इन गांवों में मुखबिरों की सूचना पर छापेमारी करती रहती है.

हाइवे पर रेप, डकैती, हत्याएं क्यों नहीं रुकतीं?

हवाई अड्डे पर 'फ़िल्मी स्टाइल' में लूट

पुलिस का धावा

क़रीब दो हफ़्ते पहले ऐसी ही एक मुखबिरी पर पुलिस ने गांव में धावा बोला था. गांव की महिला प्रधान समेत कई घरों की पुलिस ने कथित तौर पर रात में ज़बरन तलाशी ली.

गांव की एक बुज़ुर्ग महिला बताती हैं, "रात में लोग अपने-अपने घरों में सो रहे थे. पुलिस ने ये भी नहीं देखा कि कोई किस हाल में है, कपड़े पहने हैं कि नहीं, कुछ भी नहीं. महिला प्रधान को भी नहीं बख़्शा और ख़ूब मारा."

पुलिस इस दिन ग्राम प्रधान चुन्नी देवी के पति समेत कई लोगों को उठा ले गई. ग्राम प्रधान की बेटी प्रतिभा बताती है, "मेरे भाई की जिस दिन शादी थी उसके अगले दिन ही उसे उठाकर ले गए. बहुत मिन्नतें कीं सबने, लेकिन पुलिसवालों ने किसी की नहीं सुनी."

योगीराज में क़ानून की व्यवस्था या अव्यवस्था?

दहाड़ पाएंगे अखिलेश-मुलायम के 'शेर'?

'पुलिस पर अत्याचार'

हालांकि पुलिस का कहना है कि उसके पास पुख़्ता सबूत थे इसलिए गांव में छापेमारी की गई, लेकिन इतने पुख़्ता सबूत के बावजूद इतनी बड़ी संख्या में आए पुलिस वाले केवल ग्रामीण आदिवासियों पर ही क़हर बरपाते रहे और बबुली कोल तो छोड़िए, गिरोह के किसी व्यक्ति को गिरफ़्तार नहीं कर पाए, इस सवाल का जवाब पुलिस के आला अधिकारियों के पास नहीं है.

चित्रकूट के पुलिस अधीक्षक प्रताप गोपेंद्र बेहद तल्ख़ी के साथ कहते हैं, "पुलिस ने हवा में दबिश नहीं डाली थी, बल्कि उसके पास पूरे प्रमाण थे. ग्रामीणों ने पुलिसवालों पर पथराव किया और डकैत को घर में छिपाए थे. अत्याचार इन पर नहीं हो रहा है बल्कि यही लोग पुलिस पर अत्याचार कर रहे हैं."

क्या उत्तर प्रदेश बिहार के रास्ते जाएगा?

पुलिस से मारपीट, 14 हिंदूवादी कार्यकर्ता गिरफ़्तार

संदेह में छापेमारी

प्रताप गोपेंद्र पुलिस के ऊपर किसी तरह के आरोप को स्वीकार करने को तैयार नहीं हैं और सवाल पूछने पर ग्रामीणों से हमदर्दी का आरोप भी लगाते हैं.

ग्रामीणों के लिए ऑन रिकॉर्ड वो जिस भाषा का इस्तेमाल करते हैं, उसे लिखा नहीं जा सकता. इस मामले में उनका स्थानीय सांसद भैरों प्रसाद मिश्र से वाद-विवाद भी हुआ था और बकौल सांसद जब उन्होंने 'पुलिसिया अत्याचार' का वीडियो दिखाया तो एसपी महोदय शांत हो गए.

नागर गांव की बात करें तो पुलिस ने जिन घरों में डकैतों के छिपने के संदेह में छापेमारी की थी उन घरों में छिपाने जैसी जगह शायद ही मिले. इन कच्चे घरों में कुछ ही घर ऐसे हैं जिनमें ठीक से दरवाज़ा लगा है और घर की हैसियत एक या दो कमरों से ज़्यादा की नहीं है.

'बहुत कठिन होगी डगर योगी सरकार की'

ये हैं योगी सरकार का इकलौता मुस्लिम चेहरा

पीएसी की बटालियन

ये अलग बात है कि गांव में प्रवेश करते ही प्राथमिक विद्यालय में पीएसी की एक बटालियन इस तरह से कैंप कर रही है जैसे ये बेहद संवेदनशील इलाक़ा हो. कोल आदिवासी ज़्यादातर मज़दूरी करके या फिर जंगल की लकड़ियों और दूसरी चीजों को बाज़ारों में बेचकर पैसा कमाते हैं.

दिनेश नाम के एक व्यक्ति का कहना था, "यहां लोगों के पास अपने खाने और पहनने का तो है ही नहीं, डकैतों को कहां से देंगे. दो महीने से कोई बाहर नहीं जा रहा है तो और भुखमरी की स्थिति आ गई है."

हालांकि कुछ लोग ऐसे भी थे जो इस बात से इनकार नहीं करते कि यहां डकैत या उनके गिरोह के लोग नहीं आते. लेकिन उनका कहना है कि अगर कोई आ गया है और हमें धमकी दे रहा है तो हम क्या कर सकते हैं?

यूपी में फेरबदल, सुलखान सिंह बने नए डीजीपी

महिलाएं शराब की दुकानों पर गुस्सा क्यों उतार रही हैं?

डकैतों के कारनामे

ग्रामीणों का ये भी कहना था कि जिन लोगों के पास मोबाइल फ़ोन थे, उनमें से कई ने अपने फ़ोन तोड़ डाले. मुंदर नाम के एक व्यक्ति बताते हैं, "कहा गया कि फ़ोन सर्विलांस पर लगा है. हम किसी से भी बात करते थे तो पुलिस वाले कहते थे कि डकैतों से बात कर रहे हो. रोज़-रोज़ के इस बवाल से बचने के लिए हमने फ़ोन ही तोड़ दिया."

गांव वाले बताते हैं कि एक बुज़ुर्ग व्यक्ति तो घर और गांव छोड़कर ही चले गए. कहां गए, किसी को पता नहीं.

चित्रकूट के मानिकपुर का ये इलाक़ा लंबे समय से डकैतों की पनाहग़ाह रहा है. ददुआ, ठोकिया जैसे डकैतों के गिरोह लंबे समय तक यहां सक्रिय रहे लेकिन उनके ख़ात्मे के बाद काफी दिनों तक इलाक़ा शांत था. पिछले कुछ दिनों से डकैतों के कारनामों और उनके बीच वर्चस्व की जंग की ख़बरें फिर आने लगी हैं.

BBC Hindi
Comments
देश-दुनिया की ताज़ा ख़बरों से अपडेट रहने के लिए Oneindia Hindi के फेसबुक पेज को लाइक करें
English summary
police and dacoits are like 'wells and ditch' For whom
तुरंत पाएं न्यूज अपडेट
Enable
x
Notification Settings X
Time Settings
Done
Clear Notification X
Do you want to clear all the notifications from your inbox?
Settings X
X