पैलेट गन पर सुप्रीम कोर्ट और केंद्र सरकार के बीच हुई जिरह, अब 10 अप्रैल को अगली सुनवाई
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से कहा पत्थरबाजों पर पैलेट गन की जगह किसी और विकल्प पर विचार करें क्योंकि यह जिंदगी और मौत का विषय है। 10 अप्रैल को होगी मामले की अगली सुनवाई।
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से कहा है कि वह पत्थरबाजों पर पैलेट गन के अलावा किसी और विकल्प के प्रयोग पर विचार करे। सुप्रीम कोर्ट ने पैलेट गन के प्रयोग को जिंदगी और मौत से जुड़ा विषय बताया है। चीफ जस्टिस जेएस खेहर की अगुवाई वाली बेंच मामले की सुनवाई कर रही है।
सुप्रीम कोर्ट ने जताई चिंता
सुप्रीम कोर्ट ने इस बात पर चिंता जाहिर की कि कश्मीर घाटी में विरोध प्रदर्शन में शामिल बच्चों को भी चोट का सामना करना पड़ा है। साथ ही उसने सरकार से पूछा कि उनके माता-पिता के खिलाफ क्या कार्रवाई की गई है। सरकार की पैरवी कर रहे अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी से सुप्रीम कोर्ट ने विरोध प्रदर्शनों के दौरान सरकार की ओर से उठाए गए प्रभावी कदमों से जुड़ा विस्तृत जवाब दाखिल करने को कहा है। मामले की सुनवाई को 10 अप्रैल तक के लिए टाल दिया गया है। पिछले वर्ष 14 दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि पैलेट गन का प्रयोग जम्मू कश्मीर में भीड़ को नियंत्रित करने के लिए भेदभाव के आधार पर नहीं होना चाहिए। अथॉरिटीज की ओर से इस मसले को दिमाग का पूरा प्रयोग करके सुलझाना चाहिए। उस समय तत्कालीन चीफ जस्टिस टीएस ठाकुर ने केंद्र सरकार और जम्मू कश्मीर की सरकार को नोटिस जारी किया था जिसमें उनसे 'राज्य में पैलेट गन के अधिकतम प्रयोग' पर जानकारी मांगी थी। सुप्रीम कोर्ट ने तब अटॉर्नी जनरल इस मुद्दे पर मदद मांगी थी और उनसे पैलेट पर बनाई गई एक्सपर्ट कमेटी की रिपोर्ट की कॉपी मांगी थी।
पैलेट गन एकमात्र उपाय
वहीं केंद्र सरकार ने पैलेट गन के उपयोग का बचाव करते हुए कहा कि देश की संप्रभुता और अखंडता दांव पर है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सभी को शांतिपूर्ण तरीके से विरोध करने का अधिकार है। इस पर अटॉर्नी जनरल ने कहा कि पैलेट गन के प्रयोग से पहले एक सही स्टैंडर्ड प्रोटोकॉल का पालन किया जाता है। मजिस्ट्रेट इसके उपयोग का निर्देश देता है। देश की अखंडता और संप्रभुता दांव पर है और पैलेट गन ही अंतिम उपाय है। भीड़ पत्थर और तेज धार वाली वस्तुओं का प्रयेाग करती है। हिंसा में लगभग 3777 सुरक्षा कर्मियों भी घायल हुए हैं। सरकार ने कहा है कि सुरक्षाबलों क्या करना चाहिए क्योंकि यह शांतिपूर्ण स्थिति नहीं है। आठ जुलाई 2016 से अगले 32 दिनों में सीआरपीएफ पर करीब 252 हमले हुए।