भारत में महज 40 फीसदी लोगों के पास विकलांगता का सर्टिफिकेट
बैंगलुरू। आज दुनिया विश्व विकलांगता दिवस मना रही है, साथ ही विकलांगों के लिए एक बेहतर जीवन और समाज में समान अधिकार के लिए अपनी आवाज को बुलंद कर रही है। लेकिन इसी बीच एक यह भी सच्चाई है कि भारत में विकलांग आज भी अपनी मूलभूत जरूरतों के लिए दूसरों पर आश्रित है।
हालांकि भारत में बहुत सी ऐसी सरकारी योजनाएं हैं जो विकलांगों की मदद के लिए हैं लेकिन आज भी सिर्फ चालीस फीसदी विकलांग भारतीयों को विकलांगता का सर्टिफिकेट ही मुहैया कराया जा सका है। ऐसे में विकलांगों के लिए सरकारी सुविधाएं महज मजाक बनकर रह गयी हैं।
भारत में आज भी विकलांगता सर्टिफिकेट हासिल करना किसी चुनौती से कम नहीं है। सरकारी कार्यालयों और अस्पतालों के कई दिनों के चक्कर लगाने के बाद भी लोगों मायूस होना पड़ता है। हालांकि सरकारी दावे कहते हैं कि इस प्रक्रिया को काफी सरल बनाया गया है लेकिन हकीकत इससे काफी दूर नजर आती है।
क्या
है
मुश्किलें।
विकलांगता
का
सर्टिफिकेट
हासिल
करने
के
लिए
आपको
90
फीसदी
विकलांग
होने
का
सर्टिफिकेट
डॉक्टर
से
हासिल
करना
होता
है।
इसके
बाद
ही
आपको
सरकारी
विकलांगता
का
सर्टिफिकेट
मिल
सकता
है।
लेकिन
विकलांगों
को
कई
मामलों
में
डॉक्टर
70
या
80
फीसदी
ही
विकलांग
करार
देते
हैं
जिसके
चलते
वह
सरकारी
सुविधायें
पाने
से
महरूम
हो
जाते
हैं।
सरकार
के
आंकड़ो
पर
नजर
डालें
तो
2013-14
में
महज
39.28
फीसदी
लोगों
को
विकलांगता
का
सर्टिफिकेट
प्राप्त
है।
वहीं
पश्चिम
बंगाल
में
41
फीसदी
लोगों
को
यह
सर्टिफिकेट
प्राप्त
है।
राज्यों
की
आंकड़े
भी
चिंताजनक
2011
के
जनगणना
के
अनुसार
देश
मे
2.68
करोड़
विकलांग
है
जिनमें
से
महज
1.05
करोड़
लोगों
को
विकलांगता
का
सर्टिफिकेट
हासिल
है।
पश्चिम
बंगाल
में
20.17
लाख
लोग
विकलांग
है
जिनमें
से
8.27
लाख
लोगों
को
विकलांगता
का
सर्टिफिकेट
प्राप्त
है।
जबकि
नागालैंड
में
महज
5.7
फीसदी,
अरुणाचल
प्रदेश
में
7
फीसदी,
दिल्ली
में
21
फीसदी
विकलांगो
के
पास
विकलांगता
का
सर्टिफिकेट
है
जोकि
सरकार
की
नीतियों
पर
प्रश्न
चिन्ह
खड़ा
करता
है।
वहीं त्रिपुरा इस मामले में सबसे बेहतर है। यहां 97.72 फीसदी विकलांगो को विकलांगता का सर्टिफिकेट प्राप्त है। तमिलनाडु में 84 फीसदी लोगों के पास विकलांगता का सर्टिफिकेट प्राप्त है। वहीं नागालैंड
सरकारी
सुविधायें
पर
प्रश्न
चिन्ह
देश
में
विकलांगों
के
लिए
सरकार
ने
कई
नीतियां
बनायी
है।
उन्हें
सरकारी
नौकरियों,
अस्पताल,
रेल,
बस
सभी
जगह
आरक्षण
प्राप्त
है।
साथ
ही
विकलांगो
के
लिए
सरकार
ने
पेशन
की
योजना
भी
शुरु
की
है।
लेकिन
ये
सभी
सरकारी
योजनाएं
उन
विकलांगों
के
लिए
महज
एक
मजाक
बनकर
रह
गयी
हैं।
जब
इनके
पास
इन
सुविधाओं
को
हासिल
करने
के
लिए
विकलांगता
का
सर्टिफिकेट
ही
नहीं
है।