मोदी सरकार के 1 साल- आंतरिक सुरक्षा की समीक्षा
नई दिल्ली। नरेंद्र मोदी ने जब देश के प्रधानमंत्री पद की बागडोर संभाली तो उस वक्त भारत की आंतरिक सुरक्षा सबसे बड़ा मुद्दा थी। उस वक्त भारत की भूमि आतंकवादियों के लिये खेल के मैदान बनने की कगार पर थी, लेकिन आज तस्वीर एकदम अलग है। एक साल में आंतरिक सुरक्षा कितनी मजबूत हुई है, उसकी समीक्षा हम यहां करने जा रहे हैं।
आतंरिक सुरक्षा पर मोदी के कदम
एक साल के भीतर आईएसआईएस वृहद स्तर पर उभरा और करीब 300 भारतीय युवाओं को खुद से जोड़ने के प्रयास किये। लेकिन एनआईए और खुफिया विभाग ने सारी कोशिशों को नाकाम कर दिया।
मोदी की टीम ने सबसे अच्छा काम यह किया कि नेशनल सिक्योरिटी एडवाइजर के रूप में किसी नेता, या अन्य ब्यूरोक्रैट को चुनने के बजाये उसे चुना जो पहले से आईबी में थे। नाम है अजित डोवाल। डोवाल ने अपनी पूरी जिंदगी आईबी को समर्पित कर दी थी। पहले रॉ और आईबी में कभी नहीं बनती थी। दोनों के बीच ईगो क्लैश हुआ करता था। दोनों के बीच तालमेल बिठाने वाले एनएसए आईएएस कैडर के ब्यूरोक्रैट होते थे, लिहाजा कभी बात बनती, कभी बिगड़ती।
अजित डोवाल के आने के बाद खुफिया एजेंसियों के बीच तालमेल बेहतरीन हो गया है। सुरक्षा से जुड़े सभी इनपुट एनएसए के माध्यम ससे दोनों एजेंसियों को भेजे जाते हैं।
खास बात यह है कि भारतीय सेना, कोस्ट गार्ड, नौसेना, आदि सभी सैन्य इकाईयों और राज्यों के खुफिया विभागों के बीच सूचनाओं का आदान प्रदान अनिवार्य कर दिया गया है। इससे दुश्मनों की कई चालें नाकामयाब हुई हैं।
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