मोदी-शाह की जोड़ी से पार पाने में सोनिया-राहुल चारों खाने चित
एक बार फिर से सोनिया गांधी और राहुल गांधी पर भारी पड़े नरेंद्र मोदी और अमित शाह, बिहार का किला बचाने में विफल रहा यूपीए
नई दिल्ली। जनता दल के अध्यक्ष नीतीश कुमार जब पिछले शनिवार को कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गांधी से मुलाकात करने के लिए गए तो माना जा रहा था कि इस मुलाकात के बाद बिहार के महागठबंधन में चल रही उठापटक का दौर खत्म हो सकता है। लेकिन बुधवार को जिस तरह से तेजी से बिहार के राजनीतिक घटनाक्रम में बदलाव हुआ उसने ना सिर्फ कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के नेतृत्व बल्कि बिहार में महागठबंध को ध्वस्त करके रख दिया।
इसे भी पढ़ें- बीजेपी से हाथ मिलाकर क्या नीतीश ने सबसे बड़ा रिस्क लिया है?
तेजस्वी के बचाव में गिर गया बिहार किला
तेजस्वी यादव के उपर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों के बीच नीतीश कुमार की पार्टी ने लगातार लालू की पार्टी पर दबाव बनाया कि वह इस मामले में तेजस्वी से मीडिया के सामने सफाई देने और इस्तीफा देने को कहे। लेकिन नीतीश की मांग से इतर लालू तेजस्वी का लगातार बचाव करते रहे हैं और अंत में नीतीश ने महागठबंधन को खत्म करने का फैसला लिया और बिहार के मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया।
Recommended Video
अडिग रहे नीतीश
यहां गौर करने वाली बात यह है कि नीतीश कुमार ने अपने इस्तीफे की जानकारी राहुल गांधी को नहीं दी, बल्कि सीपी जोशी को इस बात की जानकारी राहुल को देने को कहा। सीपी जोशी बिहार काग्रेस के महासचिव हैं। हालांकि सीपी जोशी ने काफी कोशिश की कि नीतीश अपना इस्तीफा नहीं दें लेकिन नीतीश अपने फैसले को लेकर दृढ़ थे।
कांग्रेस ने दिया जनमत का हवाला
नीतीश के इस्तीफे के बाद मुंह की खाने वाली कांग्रेस ने बयान जारी करके कहा कि वह नीतीश के फैसले से निराश है, हालांकि यह कहा गया कि राहुल गांधी और सोनिया गांधी नीतीश कुमार का सम्मान करते हैं। कांग्रेस की ओर से जारी किए गए बयान में कहा गया कि हम सबको यह याद रखना चाहिए कि यह बहुमत महागठबंधन और नीतियों पर पांच साल के लिए दिया गया है। यह जनादेश जनता ने हमें भाजपा, पीएम मोदी के खिलाफ और बिहार की अस्मिता के लिए दिया था। कांग्रेस पार्टी जनादेश के सम्मान के लिए कुछ भी करेगी।
जानकारी के बाद हल नहीं निकाल सके राहुल-सोनिया
वहीं राजद की ओर से जो बयान जारी किया गया उसमें लालू और उनके परिवार के खिलाफ भ्रष्टाचार का कहीं भी जिक्र नहीं किया गया है। नीतीश कुमार भाजपा के साथ हाथ मिलाना चाहते थे और वह इसके लिए पीछे ही पीछे साजिश कर रहे थे। कांग्रेस के अंदरूनी नेताओं का कहना है कि राहुल गांधी हमेशा से ही नीतीश कुमार के समर्थन में थे, जबकि सोनिया गांधी के भीतर नीतीश के लिए सॉफ्ट कार्नर है। वह नहीं चाहते थे कि भ्रष्टाचार के आरोपों को दरकिनार किया जाए, लेकिन वह यह भी नहीं चाहते थे कि यह महागठबंधन टूटे। राहुल और सोनिया ने नीतीश और लालू से इस बात की अपील की कि इस विवाद को खत्म करें, लेकिन इसका हल निकल नहीं सका।
2019 की कवायद में फेल हुआ विपक्ष
जिस तरह से तमाम विपक्षी दल भाजपा के खिलाफ 2019 के लोकसभा चुनाव के लिए एकजुट होने की कवायद में जुटे थे और माना जा रहा था कि तमाम विपक्षी दल भाजपा के सामने चुनौती खड़ी कर सकते हैं, वह उम्मीद अब धूमिल होती नजर आ रही है। राजद के भीतर भ्रष्टाचार के आरोपों ने विपक्ष की एकता पर बड़ा हमला किया और आखिरकार विपक्ष इस मुद्दे को सुलझाने में पूरी तरह से विफल रहा, नीतीश कुमार ने छवि का समझौता नहीं करने की बात कहते हुए लालू से पल्ला झाड़ लिया।
कांग्रेस नेतृत्व पूरी तरह से विफल रहा
राहुल गांधी ने खुद आज मीडिया के सामने आकर कहा कि उन्हें इस बात की जानकारी पिछले 3-4 महीने से थी कि नीतीश यह योजना बना रहे हैं। ऐसे में इससे साफ है कि इस पूरे प्रकरण की जानकारी होने के बाद भी कांग्रेस पूरे विवाद को खत्म करने में पूरी तरह से विफल रही और महागठबंधन बनाने में पूरी तरह से फेल हो गई। जिस तरह से 2004 में अटल बिहारी सरकार के खिलाफ कांग्रेस विपक्ष को एकजुट करने में सफल हुई और सत्ता में वापसी की वह इस बार होता नहीं दिख रहा है।
13 साल पहले जैसा मजबूत नहीं रहा यूपीए
पिछले 13 वर्षों के यूपीए के इतिहास पर नजर डालें तो इसमे लगातार गिरावट देखने को मिल रही है और लगातार इस गठबंधन को निराशा का सामना करना पड़ा है। सोनिया गांधी पर विदेशी महिला होने का आरोप लगा था, बावजूद इसके वह सोनिया गांधी तमाम विपक्षी दलों को एकजुट करने में सफल रही थीं। लेकिन कांग्रेस या यूं कहें कि यूपीए का दुर्भाग्य है कि वह कूबत राहुल गांधी में नहीं दिखती है जो सोनिया गांधी के भीतर थी। लेकिन यहां इस बात को भी नहीं भूलना चाहिए कि उस वक्त सोनिया गांधी के सामने नरेंद्र मोदी , अमित शाह जैसी मजबूत चुनौती नहीं थी।
कांग्रेस के सामने विधायकों क बचाने की चुनौती
कांग्रेस के सामने सबसे बड़ी चुनौती यह है कि बिहार में अपने विधायकों को टूटने से बचाए। रिपोर्ट की मानें तो तमाम कांग्रेस के विधायक भाजपा के संपर्क में हैं। पीएम मोदी और अमित शाह को विपक्षी दलों और नेताओं से बहुत ही मजबूती से निपटने के लिए जाना जाता है। दोनो ही नेता विपक्षियों पर निशाना साधने का कोई भी मौका नहीं चूकते हैं। यूपी में प्रचंड जीत के बाद भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने विपक्षियों पर लगातार तीखे हमले जारी रखे। जिस तरह से विपक्ष के तमाम नेता भ्रष्टाचार के आरोपों में घिरते रहे उसके बाद सरकार के खिलाफ भ्रष्टाचार के मुद्दे पर विपक्ष को हमला बोलना मुश्किल हो गया।
सोनिया-राहुल पर भारी पड़ी मोदी-शाह की जोड़ी
भाजपा के नेता भी इस बात से वाकिफ थे कि नीतीश कुमार विपक्ष के मजबूत चेहरे है और वह मुश्किल खड़ी कर सकते हैं। लिहाजा भाजपा ने लगातार नीतीश कुमार को अपने पाले में लाने की कोशिशों को जारी रखा और लालू-नीतीश के बीच विवाद को बढ़ाने की कोशिशों को लगातार बल दिया। ऐसे में आखिरकार भाजपा को यह सफलता मिली और एक बार फिर से नरेंद्र मोदी और अमित शाह सोनिया गांधी और राहुल गांधी से बीस साबित हुए हैं।