इंदिरा को चुकानी पड़ी थी इमरजेंसी की कीमत: राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी
नयी दिल्ली। राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने अपनी लिखी किताब ‘द ड्रैमेटिक डिकेड: द इंदिरा गांधी इयर्स'के पहले खंड में देश की इमरजेंसी के हालात का विवरण किया है। राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने 1975 की इमरजेंसी को 'टालने योग्य घटना' और 'दुस्साहसिक कदम' बताया है। अपनी किताब में प्रणब मुखर्जी ने लिखा है कि उस वक्त की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को इमरजेंसी के प्रावधानों के बारे में नहीं पता था। उन्हें इमरजेंसी कीभारी कीमत चुकानी पड़ी।
राष्ट्रपति ने अपनी किताब में इस बात का जिक्र किया है कि इमरजेंसी के दौरान मौलिक अधिकारों और राजनीतिक गतिविधि के निलंबन, बड़े पैमाने पर गिरफ्तारियों और प्रेस सेंसरशिप का काफी बुरा असर पड़ा था। आपको बता दें कि इमरजेंसी के दौरान प्रणब इंदिरा गांधी कैबिनेट में जूनियर मंत्री थे।
उन्होंने खुलासा किया है कि 1975 में जो आपातकाल लगाया गया था, उसके प्रावधानों के बारे में इंदिरा गांधी को जानकारी नहीं थी और पश्चिम बंगाल के तत्कालीन मुख्यमंत्री सिद्धार्थ शंकर राय के सुझाव पर उन्होंने यह फैसला किया था। राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने अपनी 321 पन्नों की इस किताब में बांग्लादेश की मुक्ति, जेपी आंदोलन, 1977 के चुनाव में हार, कांग्रेस में विभाजन, 1980 में सत्ता में वापसी और उसके बाद के घटनाक्रमों पर प्रकाश डाला है।
अपनी किताब में प्रणव मुखर्जी ने लिखा है कि इमरजेंसी के दौरान मौलिक अधिकारों और राजनीतिक गतिविधि का निलंबन, राजनीतिक नेताओं और कार्यकर्ताओं की बड़े पैमाने पर गिरफ्तारियां, प्रेस सेसरशिप और बिना चुनाव कराए विधायिकाओं का कार्यकाल बढ़ाना आपातकाल की कुछ ऐसी घटनाएं हैं जिन्होंने लोगों के हितों पर विपरीत असर डाला। उन्होंने कहा कि इस इमरजेंसी की भारी कीमत इंदिरा गांधी को चुकानी पड़ी थी।