शरद की बगावत के बीच नीतीश के सामने नई मुसीबत, कैसे पार पाएंगे?
एनडीए में शामिल होने के बाद नीतीथ कुमार के सामने राष्ट्रीय राजनीति में प्रासंगिक बने रहने की चुनौती
नई दिल्ली। बिहार में महागठबंधन की सरकार से नाता तोड़ने के बाद एनडीए में शामिल होने वाले नीतीश कुमार के लिए राष्ट्रीय राजनीति में नई चुनौती सामने आ गई है। एनडीए में शामिल होने के बाद नीतीश के सामने खुद को राष्ट्रीय राजनीति में बनाए रखने की मुश्किल चुनौती है। नई समीकरणों के बाद नीतीश कुमार को अपनी रणनीति को कुछ इस कदर बदलना होगा ताकि वह एनडीए में रहते हुए भी खुद की प्रासंगिकता को राष्ट्रीय राजनीति में बनाए रख पाएं, लिहाजा नीतीश इस बात को बेहतर समझते हैं कि एनडीए में शामिल होने के बाद उनके खुद के अस्तित्व को बनाए रखना इतना आसान नहीं होगा।
लोकसभा में सिर्फ 2 सीटें
हालांकि बिहार में नीतीश भाजपा के साथ मिलकर सरकार चला रहे हैं, लेकिन अगर लोकसभा की बात करें तो नीतीश कुमार की पार्टी के पास लोकसभा में सिर्फ दो सीटें हैं, जबकि राज्यसभा में जदयू के पास 9 सीटें हैं, जिसमें दो बागी सांसद अली अनवर और शरद यादव भी हैं। ये दोनों ही बागी राज्यसभा सांसद पहले ही नीतीश कुमार और भाजपा के खिलाफ मोर्चा खोल चुके हैं। जिस तरह से शरद यादव ने विपक्षी दलों के साथ बैठक की और उसके बाद केंद्र सरकार और पर हमला बोला उसने साफ कर दिया है कि वह नीतीश कुमार का साथ देने के बिल्कुल मूड में नहीं हैं।
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केंद्र में मिल सकती है जगह
मौजूदा
समीकरणों
पर
नजर
डालें
को
एनडीए
में
शामिल
होने
के
बाद
नीतीश
कुमार
की
पार्टी
को
केंद्र
सरकार
में
दो
मंत्रालय
मिल
सकते
हैं।
पटना
में
नीतीश
कुमार
ने
जो
संसदीय
समिति
की
बैठक
में
भाषण
दिया
है
उससे
इस
बात
की
ओर
साफ
इशारा
मिलता
है
कि
वह
नीतीश
की
केंद्र
सरकार
में
भी
भागेदारी
होगी।
भविष्य पर नजर
इस
बैठक
में
नीतीश
कुमार
ने
एनडीए
का
शुक्रिया
अदा
करते
हुए
कहा
कि
बिहार
में
बाढ़
के
हालात
में
तुरंत
मदद
के
लिए
हम
केंद्र
का
शुक्रिया
अदा
करते
हैं।
ऐसे
में
उन्होंने
यह
संदेश
भी
देने
की
कोशिश
की
है
कि
भविष्य
में
भी
बिहार
को
बेहतर
आर्थिक
मदद
केंद्र
सरकार
से
मिलती
रहे।
माना
जा
रहा
है
कि
नीतीश
कुमार
को
एनडीए
का
संयोजक
भी
बनाया
जा
सकता
है।
शीर्ष नेताओं से संपर्क
जदयू के एक शीर्ष नेता का कहना है कि नीतीश कुमार को एनडीए के सेक्युलर चेहरे के तौर पर आगे किया जा सकता है और बतौर एनडीए संयोजक वह वह सांप्रदायिक ताकतों को माकूल जवाब दे सकते हैँ। इसके साथ ही नीतीश कुमार के पक्ष में जो एक और बात जाती है वह यह कि उनका भाजपा के शीर्ष नेतृत्व से सीधा संपर्क है, वह बिहार के तमाम केंद्रीय मंत्रियों से सीधे बात कर सकते हैं।
2019 के लिए कारगर
एनडीए के एक सूत्र का कहना है कि नीतीश कुमार को एनडीए में लाने की बड़ी वजह 2019 के चुनाव हैं। उनपर यह जिम्मेदारी होगी कि 2-2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान वह बिहार में एनडीए को बेहतर सीटें दिला सकें। एनडीए में आने के बाद वह पार्टी के लिए अधिक से अधिक समर्थन जुटा सकते हैं।