जरूर देखें देश के पहले गणतंत्र दिवस की एक झलक
नई दिल्ली(विवेक शुक्ला) आज जिस तरह के राजधानी में बारिश हो रही है गणतंत्र दिवस पर, इसके विपरीत 26 जनवरी,1950 को राजधानी में मौसम बेहद खुशनुमा था। बादलों के पीछे कई दिनों तक छिपे रहने के बाद सूरज देवता ने दर्शन दिए थे। उस दिन राजधानी की फिजाओं में पर्व का उल्लास था। देश अपने नए संविधान को लागू कर रहा था। भारत गणतंत्र राष्ट्र के रूप में सामने आ रहा था। इस मौके पर लोग बधाई ले और दे रहे थे।
राजेन्द्र प्रसाद बने राष्ट्रपति
और देश के पहले राष्ट्रपति के रूप में शपथ लेने जा रहे डा. राजेन्द्र प्रसाद के लिए तो यह खासा दिन था। वे सुबह करीब आठ बजे राजघाट पहुंच गए बापू की समाधि पर नमन करने के लिए। वहां से वे सीधे राष्ट्रपति भवन पहुंचे शपथ ग्रहण करने के लिए। उन्हें ठीक नौ बजे देश के गवर्नर जनरल सी.राजगोपालचार्य ने देश के पहले राष्ट्रपति के पद की शपथ दिलाई। यह सारा आयोजन भव्य दरबार हाल में हुआ। इस एतिहासिक शपथ ग्रहण समारोह के साक्षी बने 500 अतिविशिष्ट गण।
गांधी टोपी पहनी
इनमें इंडोनेशिया के राष्ट्रपति सुकर्णो,उनकी श्रीमती जी, देश के पहले प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने का इंतजार कर रहे पंडित नेहरु,लौह पुरुष सरदार पटेल, संविधान सभा के सदस्य और दूसरे तमाम गणमान्य हस्तियां शामिल थीं। डा. राजेन्द्र प्रसाद ने काली अचकन,झक सफेद चूड़ीदार पायजामा और गांधी टोपी पहनी हुई थी। राष्ट्रपति पद की शपथ लेने के बाद उन्होंने अंग्रेजी और हिन्दी में संक्षिप्त भाषण भी दिया।
उन्होंने कहा- "आज स्वतंत्र भारत के इतिहास का बेहद खास दिन है। हमें इस दिन परम पिता परमात्मा और राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के प्रति अपनी कृतज्ञता प्रकट करनी चाहिए। उनके सत्यागृह के प्रयोग के चलते देश के लाखों स्त्री,पुरुष स्वाधीनता आंदोलन से जुड़े। जिसके फलस्वरूप देश को स्वाधीनता मिली और अब हम गणतंत्र राष्ट्र की स्थापना कर सके।" राष्ट्रपति के बाद प्रधानमंत्री पंडित ने और उनके बाद उनकी कैबिनेट के सदस्यों ने शपथ ली।
विशाल जनसमूह
जब राष्ट्रपति भवन के दरबार हाल में आयोजन चल रहा था, उस वक्त बाहर अपार जनसमूह एकत्र हो चुका था। बड़ी तादाद में लोग पड़ोसी राज्यों से आए हुए थे। वे बाहर खड़े होकर गांधी जी की जय और वंदेमातरम के गगनभेदी नारे लगा ऱहे। ये ही लोग राजघाट में पहुंचकर बापू के प्रति अपनी कृतज्ञता भी दिखा रहे थे।
इरविन स्टेडियम में आयोजन
सन 1936 बैच के आईसीएस अफसर बदरूद्दीन तैयबजी के ऊपर जिम्मेदारी थी कि वे सुबह दरबार हाल और शाम को इरविन स्टेडियम ( ध्यानचंद नेशनल स्टेडियम) में होने वाले सार्वजनिक कार्यक्रम के प्रबंध को देखें। उन्होंने करीब 20 साल पहले इस लेखक को बताया था कि उन्हें इन दोनों आयोजनों को आयोजित करवाने की जिम्मेदारी खुद पंडित नेहरु ने दी थी। पंजाब कैडर के आईसीएस अफसर तैयबजी साहब का 1995 में निधन हो गया था।
सुबह
के
कार्यक्रम
के
बाद
अब
शाम
के
वक्त
इरविन
स्टेडियम
में
होने
वाले
सार्वजिनक
समारोह
की
तैयारियां
शुरू
हो
गईं
थीं।
शाम
करीब
पांच
बजे
डा.
राजेन्द्र
प्रसाद
घोड़े
की
बग्घी
में
बैठकर
आयोजन
स्थल
पर
आए।
वे
बारास्ता
कनाट
प्लेस
होते
हुए
इरविन
स्टेडियम
आए
थे।
जिधर
से
वे
गुजरे
वहां
पर
भी
हजारों
की
संख्या
में
सभी
आयु
वर्ग
के
लोग
उनका
अभिवादन
कर
रहे
थे।
उधर
पहले
से
ही
खचाखच
भीड़
थी,
पर
भीड़
पूरी
तरह
से
नियंत्रित
थी।
किसी
तरह
की
अराजकता
कहीं
नहीं
थी।
राष्ट्रपति
जैसे
ही
स्टेजियम
आए
उन्हें
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तोपों
की
सलामी
दी
गई।
संक्षिप्त
भाषण
श्री तैयब जी ने बताया था कि राष्ट्रपति भवन की तरह इधर भी डा. राजेन्द्र प्रसाद ने संक्षिप्त भाषण दिया। उन्होंने देश की जनता का आहवान किया कि वे राष्ट्रपिता के सपनों का भारत का निर्माण करने के लिए अपनी सारी उर्जा झोंक दें। राष्ट्रपति के भाषण के बाद राजधानी के कुछ स्कूलों के छात्र-छात्राओं ने कुछ देर तक सांस्कृतिक कार्यक्रम पेश किए।
राजधानी के जाकिर हुसैन कालेज का पूर्व प्रधानाचार्य प्रो. रियाज उमर ने उस आयोजन को अपने पिता के साथ देखा था। उस दिन को याद करते हुए प्रो. उमर बताने लगे कि जब इरविन स्टेडियम में कार्यक्रम चल रहा था, उस वक्त वहां पर गिनती के ही पुलिसकर्मी मौजूद थे। जैसे ही कार्यक्रम समाप्त हुआ और राष्ट्रपति वहां से गए, लोगों ने नेहरु जी को घेर लिया। वे आम और खास लोगों से मजे-मजे में 10-15 मिनट बातें करते रहे।