नरेंद्र मोदी एक मॉडल हैं, एक हीरो हैं: चीफ़ जस्टिस पटना हाईकोर्ट
जवाब: अभी आगे-आगे देखिए होता है क्या? मैं कर्म में विश्वास करता हूं. मैं बताऊं आपको, गुजरात से निकला तो एक इमेज तैयार की गई थी कि पटना जा रहे हो तो वहां ये सब करना होगा जो यहां किए हो. सच बताऊँ. एक ही दिन में मैं पटना का हो गया.
यहां के लोग बहुत अच्छे हैं. सच्ची बताऊं. यहां की भूमि बहुत पवित्र है. हर शहर और हर स्टेट की अपनी समस्या होती है. एक नज़रिया और एक कमिटमेंट चाहिए. आप कोई भी काम करो, कमिटमेंट से करो.
जस्टिस मुकेश रसिक भाई शाह पटना हाईकोर्ट के चीफ़ जस्टिस बने हैं. इस रविवार 12 अगस्त को बिहार के राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने राजभवन में उन्हें शपथ दिलाई.
जस्टिस शाह इससे पहले गुजरात हाई कोर्ट में जज थे. साल 1982 में गुजरात हाई कोर्ट में उन्होंने वकालत की शुरुआत की थी. साल 2004 में वो वहां के जज बने और एक साल बाद वो स्थाई जज बने.
पटना के स्थानीय पत्रकार नीरज प्रियदर्शी ने जस्टिस शाह से उनकी प्राथमिकताओं और उनके जुडिशल करियर के बारे में लंबी बात की.
सवालः 1982 से गुजरात हाई कोर्ट में आपने वकालत शुरू की. बाद में एडिशनल जज बने. फिर जज बने, और अब चीफ जस्टिस. एक वकील के चीफ जस्टिस बनने तक का संघर्ष कैसा होता है?
जवाबः नथिंग इज इम्पॉसिबल. मैंने हर फील्ड में काम किया है. क्रिमिनल लॉयर रहा हूं. दीवानी मुकदमे भी लड़े हैं. उसका उदाहरण है. पॉक्सो के एक मामले में मेरे जजमेंट में की गई टिप्पणी बाद में देश का कानून बन गई.
सवालः क्या था उस टिप्पणी में?
जवाबः उसमें क्या था कि, आप लोग जानते हो कि पॉक्सो का कानून कितना स्ट्रिक्ट हो गया है. जो दुष्कर्म जैसा अपराध करते हैं उनमें भय तो होना ही चाहिए इसलिए बदलने का कोई सवाल ही नहीं है. पर कभी-कभी क्या होता है कि ये जो 17, 18 वाले लड़के होते हैं...
सवाल: जिनको जुवेनाइल बोलते हैं!
जवाबः हां, उन लोगों को पता नहीं होता कि ये कन्सेंट से करेंगे तो भी ये एक अपराध है. तो बेचारे को क्या होता है कि 10-15 साल की सजा हो जाती है, कम से कम 10 साल की. इस तरह उनका 10 साल चला जाता है. मैंने जजमेंट में आखिर में लिखा था कि ऐसे मामलों को ध्यान में रखते हुए जागरुकता फैलाने की ज़रूरत है. तो ये जो यंगस्टर्स हैं, पहले वो ये जान लें कि सहमति के बावजूद भी वे 10 साल के लिए जेल जा सकते हैं. आप समझ सकते हो कि 10 साल तक कोई लड़का जेल में रहेगा तो कैसा बनकर बाहर निकलेगा.
दूसका जजमेंट जो मैंने दिया था वो फॉरेस्ट डिपार्टमेंट का केस था. 546 लोग न्याय का इंतज़ार कर रहे थे. काफी केस चला था. मैंने डिपार्टमेंट के लोगों को बुलाया और बोला कि ये लोग तैयार हैं लम्पसम कॉम्पेन्सेशन देने के लिए. कोई नहीं जानता कि कौन जीतेगा, कौन हारेगा. सरकार तो कभी-कभी कहती है कि सुप्रीम कोर्ट तक जाएंगे. मैंने बोला ये तो बगल का काम है. सभी 546 लोग वहीं थे. तो मैंने लास्ट डे सेटलमेंट करवाया.
सभी खुश थे क्योंकि मुआवज़े के तौर पर उन्हें सात करोड़ रुपए मिले थे. गुजरातियों के लिए ये मेरा आखिरी प्रयास था. इस तरह मैंने हमेशा संतुलन रखने की कोशिश की.
- यह भी पढ़ें | हम गायों के क़ानूनी अभिभावक: हाई कोर्ट
सवालः आप ऐसे वक़्त बिहार में आए हैं, जब महिला सुरक्षा की बात सबसे अधिक हो रही है. मुज़फ़्फरपुर का बालिका गृह कांड चर्चा में है. पटना हाई कोर्ट में इसे लेकर पीआईएल भी दायर हुआ है. आपका अभी क्या कहना है और समझना है बिहार और उत्तर प्रदेश के शेल्टर होम से आ रही इन खबरों पर?
जवाब: ये मामला अभी न्यायालय के अधीन है. फ़िलहाल मैं इस बारे में कोई कमेंट नहीं कर सकता. मैंने अभी-अभी ही तो कार्यभार संभाला है.
सवाल: अच्छा तो आपने आज ही चार्ज लिया है?
जवाबः बिल्कुल. मेरा काम देखिए. मैंने 15-16 घंटे काम किए हैं. मुझे सबसे तेज जज कहा जाता था. मैंने दिन भर में 100-110 मैटर चलाए हैं. और पूरी निष्ठा से चलाए हैं.
सवाल: 100 से 110 मैटर?
जवाबः हाँ.
(जस्टिस शाह के मोबाइल की घंटी बजती है. अगले एक मिनट पांच सेकेंड तक वो किसी से गुजराती में बात करते हैं. बातचीत सुनकर ऐसा लगता है कि किसी ने उन्हें कार्यभार संभालने पर बधाई और शुभकामनाएं देने के लिए फोन किया है.)
...मैं आपको बताऊं, वास्तव में मैंने अपने पूरे करियर में 5 लाख से अधिक जजमेंट दिए हैं. एकाध जजमेंट को छोड़कर कोई भी सुप्रीम कोर्ट से रिवर्स नहीं हुआ. दो साल पहले तक गुजरात में 23 लाख पेंडिंग केस थे. अब 15-16 लाख के करीब हैं.
- यह भी पढ़ें | सुप्रीम कोर्ट में पहली बार तीन महिला जज
सवाल: बतौर चीफ जस्टिस ये आपका पहला अनुभव होगा. इसके पहले तक आप जज रहे हैं. अहमदाबाद में रहते हुए आपने ट्रैफिक को लेकर काफी काम किया है. खबरों में ऐसा पढ़ने को मिलता है. अब आप पटना में हैं. अहमदाबाद और पटना में ट्रैफिक की एक जैसी स्थिति है. एक जज के तौर इस शहर को कैसे देखते हैं?
जवाब: अभी आगे-आगे देखिए होता है क्या? मैं कर्म में विश्वास करता हूं. मैं बताऊं आपको, गुजरात से निकला तो एक इमेज तैयार की गई थी कि पटना जा रहे हो तो वहां ये सब करना होगा जो यहां किए हो. सच बताऊँ. एक ही दिन में मैं पटना का हो गया.
यहां के लोग बहुत अच्छे हैं. सच्ची बताऊं. यहां की भूमि बहुत पवित्र है. हर शहर और हर स्टेट की अपनी समस्या होती है. एक नज़रिया और एक कमिटमेंट चाहिए. आप कोई भी काम करो, कमिटमेंट से करो.
वहां हमने 69 पेज का एक ऑर्डर किया था. बैड रोड, पॉटहोल, ट्रैफिक के बारे में. उसमें 50 से अधिक पेज तो केवल दिशा-निर्देश थे.
और जो कहते हैं ना अहमदाबाद स्मार्ट सिटी है, तो सिटी स्मार्ट नहीं होता, कोई सिटी को स्मार्ट बनाना है तो सिटिजन को स्मार्ट बनाना पड़ेगा. सबको इसे अपना शहर मानना पड़ेगा. नहीं मानेंगे तब तक कोई भी कुछ भी नहीं कर पाएगा. अकेले प्रशासन क्या-क्या करेगा. कुछ नहीं कर सकता. वो तो खाली पेनाल्टी लेगा. अनुशासित होने के लिए उसके बाद किसी को कुछ करना है तो अपने आप को करना है. गुजरात में अपने-आप में लोग स्मार्ट हो रहे हैं.
- 'सुप्रीम कोर्ट को नहीं बचाया तो लोकतंत्र ज़िंदा नहीं रहेगा'
- ट्रांसजेंडर जज क्यों जाना चाहती हैं सुप्रीम कोर्ट
- इलाहाबाद हाई कोर्ट के जज शुक्ला से काम क्यों छीना गया?
सवालः अहमदाबाद हाई कोर्ट की अपेक्षा पटना हाई कोर्ट का डिस्पोजल रेट कम है. इसके लिए आप क्या करेंगे?
जवाबः मैं प्लानिंग में भरोसा करता हूं. सभी ज़िला जजों के साथ मीटिंग करूंगा. कहूंगा कि कम से कम जज पूरे दिन काम करें. एक बात बताऊं. खाली शिकायत करने से कुछ नहीं होता. अधिकारी कम हैं. जज कम हैं. आपको यह मानना पड़ेगा. जरूरी है कि जो भी आप काम करिए उसमें अपना मैक्सिमम आउटपुट दीजिए तो ही हो सकता है.
मेहनत आपकी होगी, लेकिन जो फल होगा वो भगवान देगा. भगवान हमेशा आपके साथ रहेगा यदि आप समाज की भलाई के लिए काम करते हैं. सबका काम करने का तरीका अलग है. मैं एक स्ट्रिक्ट और अनुशासित आदमी हूं. सबको साथ लेकर ही काम हो सकता है. वो तो भगवान का दिया था कि मैं जज बना. सब भगवान की कृपा है. मैं अपनी हर संभव कोशिश करूंगा बिहार गुजरात जैसा हो जाए.
सवाल: लेकिन, गुजरात और बिहार में बहुत अंतर है.
जवाब: आप एकदम सही हैं. लेकिन कोई भी ऐसी चीज नहीं है जो नहीं हो सकती है. पब्लिक अवेयरनेस क्रिएट करना चाहिए, जैसे ये बात कि ये शहर मेरा है, मैं अपने पटना को नंबर वन बनाना चाहता हूं. आखिर क्यों नहीं होगा. और यह होगा. हमें लोगों तक जाना है. स्कूल, कॉलेज, यूनिवर्सिटी में जाना है. आम आदमी के पास जाना है कि देखो ये होगा, जरूर होगा.
सवाल: आप गुजरात से हैं. गुजरात को लेकर लोगों के मन में कई तरह की धारणाएं हैं. आपके यहां आने के बाद से बहुत तरह की बातें भी निकल कर आई हैं. आप प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के राज्य से हैं. तो लोग कहते हैं कि आप तो मोदी और अमित शाह के शहर से हैं. एक गुजराती के लिए इस परसेप्शन से बाहर निकलना कितना ज़रूरी होता है. सब लोग आपको मोदी से जोड़ लेते हैं, ऐसा क्यों होता है?
जवाब: क्योंकि नरेंद्र मोदी एक मॉडल हैं. वह एक हीरो हैं. जहां तक मोदी की बात है तो पिछले एक महीने से यही चल रहा है. सोशल मीडिया पर ऐसे सैकड़ों क्लिपिंग्स हैं. रोज़ पेपर में भी यही चलता है.
सवाल: इधर हाल फिलहाल में हिंदुत्व, राष्ट्रवाद जैसे मुद्दे छाए हुए हैं. सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट से इसे लेकर पिछले दिनों में कई टिप्पणियां भी आई थीं. अगर हम केवल हिंदुत्व की बात करें तो इसे लेकर आप क्या सोचते हैं?
जवाबः मैटर स्टडी नहीं किया है, जाने दो. मैं काम करने में भरोसा रखता हूं. कर्म ही पूजा है.
सवालः आपको व्यक्तिगत तौर पर ये नहीं लगता कि ये थोड़ा ज़्यादा हो रहा है. एक विशेष धर्म अथवा जाति को लेकर यह ठीक नहीं है?
जवाब: मेरी बात इनमें मायने नहीं रखती.
- समलैंगिक संबंध अपराध की श्रेणी से बाहर आ सकेगा?
- सुप्रीम कोर्ट ने बताया, क्या है प्राइवेसी, 7 बातें
- निजता का अधिकार मौलिक अधिकार है: सुप्रीम कोर्ट
सवालः आप चीफ जस्टिस हैं. आपका परसेप्शन मायने रखता है.
जवाबः जो भी है. इसके लिए मैं आपको बस इतना ही कहना चाहूंगा कि एक जज सिर्फ अपने जजमेंट से बोलता है. कल को मैं सुप्रीम कोर्ट का चीफ जस्टिस हो जाऊं और आपको इंटरव्यू दूं तो ठीक है. वैसे हमें केवल अपने जजमेंट से ही बोलना होता है.
सवालः आप बिहार के नए चीफ जस्टिस हैं. पटना के लोगों को क्या कहना चाहेंगे.
जवाबः पटना को कहना चाहूंगा कि लोग कायदा पालन करें. क़ानून का पालन करें. नियम और कायदे का पालन करने से कोई शहर ऐसा नहीं जो दूसरों को चुनौती नहीं दे सकता. लोगों को न सिर्फ़ पटना में बल्कि बिहार के हर शहर में इसका पालन करना होगा.
अधिकांश आईएएस, आईपीएस इसी राज्य से आते हैं, लेकिन क्या होता है कि ये लोग तैयार होकर बाहर चले देते हैं. अपने राज्य के लिए भी कुछ सोचना होगा. ये सोचो कि मेरे स्टेट को मेरी तरह आवाज़ की ज़रूरत है.