यहां पर 50 रुपए में बिक रहा है गधी का एक चम्मच दूध
बेंगलुरु। बेंगलुरु में इन दिनों एक शख्स गधी का दूध बेच-बेचकर खूब पैसे कमा रहा है। गधी का सिर्फ एक चम्मच दूध ही 50 रुपए में बिक रहा है। टाइम्स ऑफ इंडिया में छपी खबर के मुताबिक कृष्णप्पा नाम के इस शख्स का व्यवसाय ही गधी का दूध बेचना है। कृष्णप्पा बेंगलुरु के कोलार में रहते हैं, जिनके पास लक्ष्मी नाम की एक गधी है।
इस गधी का जैसा नाम है, वैसा ही इसका काम भी है। इस गधी का दूध बेच-बेचकर कृष्णप्पा इतने पैसे कमा रहे रहैं कि लोग उनकी गधी को पैसे दुहने की मशीन कहने लगे हैं। आपके मन में यह सवाल उठ रहा होगा कि आखिर गधी दूध इतना महंगा क्यों बिक रहा है? आखिर क्यों लोग महज चम्मच भर दूध के लिए 50 रुपए चुकाने को तैयार हैं।
क्यों है इसकी कीमत इतनी अधिक?
दरअसल, यह माना जाता है कि गधी का दूध नवजातों में प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने का काम करता है, जिससे बच्चों की बीमारियों से लड़ने की ताकत काफी बढ़ जाती है। यही कारण है कि माएं अपने नवजात बच्चों के लिए गधी का दूध खरीदती हैं। गधी के दूध की मांग इतनी अधिक हो गई है कि लोग बिना मोल-भाव के महज चम्मच भर दूध ही 50 रुपए में बिक रहा है।
गलियों में घूम-घूमकर बेचता है दूध
कृष्णप्पा अपनी गधी लक्ष्मी को लेकर गलियों से गुजरता है और कन्नड में जोर-जोर से चिल्लाता है- गधी का दूध ले लो... अस्थमा, ठंड, खांसी से राहत दिलाने में फायदेमंद। बच्चों की सेहत के लिए भी फायदेमंद....। जैसे-जैसे वह गलियों से गुजरता है, वहां रहने वाली माएं अपने नवजात बच्चों की अच्छी सेहत के लिए गधी का दूध मोटे दाम पर खरीदती हैं।
विशेषज्ञ भी मानते हैं गधी के दूध के हैं फायदे
ऐसा नहीं है कि गधी का दूध फायदेमंद होता है यह सिर्फ लोगों का मानना है, बल्कि कई विशेषज्ञ भी इसके पौष्टिक गुणों पर भरोसा करते हैं। यूनिवर्सिटी ऑफ एग्रीकल्चर साइंस में डेयरी साइंस के विशेष अधिकारी जयप्रकाश एचएम के अनुसार गधी का दूध किसी नवजात बच्चे के लिए मां के दूध जितना फायदेमंद होता है।
मां के दूध का अच्छा विकल्प है गधी का दूध
जयप्रकाश कहते हैं कि गांवों में अगर मां की तबियत खराब होती है तो बच्चों को गधी का दूध पिलाना एक अच्छा विकल्प है। उनके अनुसार गधी के दूध में लाइसोजाइम जैसे पोषक तत्व पाए जाते हैं, जो प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाते हैं। हालांकि, न्यूट्रिशनिस्ट शीला कृष्णास्वामी कहती हैं कि अभ तक आहार विज्ञान में इसके फायदों के कोई भी प्रमाण नहीं मिले हैं।