बसपा प्रमुख मायावती बोलीं 'मैं पीड़ित हूं'
लखनऊ। उत्तर प्रदेश में सियासी सरगर्मियों को गति पकड़ने के लिए बहाना मिल गया है। उस बहाने को आप अभद्र भाषा कह लीजिए या फिर विवादित बयान....हां आपत्तिजनक टिप्पणी भी कह सकते हैं। लेकिन इस पूरे मामले में बहाना बेहद बद्तर था। नारीत्व को रूढ़िवादी सोच से ग्रसित लोगों ने पेश करने की मांग की और खुद के माथे पर जब बवाल चस्पा होते हुए देखा तो सफाई देने का दौर शुरू कर दिया।
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नसीमुद्दीन सिद्दीकी ने कहा कि पेश होने को कहना गाली तो नहीं। वहीं बसपा सुप्रीमों ने खुद को पीड़ित बताना शुरू कर दिया है। बहरहाल जनता को तय करना है कि कौन कितना सच्चा है और किसका दावा एक दम झूठा है ? इसका इतर सवाल यह भी है कि क्या नारों का वही मतलब था जिसे लोगों ने समझा है ?
पेश है वन इंडिया की ये खास रिपोर्ट-
क्या 'कुत्ता' आपत्तिजनक भाषा नहीं ?
दयाशंकर मामले में बसपाईयों द्वारा विरोध प्रदर्शन के दौरान नीली तख्तियों में कुत्ता शब्द को लगभग सभी ने पढ़ा...बाकायदा सुबूतों के तौर पर कई लोगों ने तो अपने फोन, लैपटॉप या कैमरे में सेव भी कर रखे होंगे।
बसपा के विरोध प्रदर्शन में कुत्ता शब्द का प्रयोग
हालांकि हो सकता है कि कुछ लोगों ने आर्काइव में समेट दिया हो। लेकिन बात पुख्ता है कि बसपा के विरोध प्रदर्शन में कुत्ता शब्द का प्रयोग हुआ। बाकी रही मां, बहन, बेटी को पेश करो वाले नारों की बात तो इसे बसपा नेताओं ने स्वीकार भी किया है।
'गिरफ्तारी की मांग पर खुद पर ही हुई FIR'
भारतीय जनता पार्टी में रहे दयाशंकर सिंह का बयान जिसे पहले भाजपा की फजीहत के तौर पर देखा जा रहा था वो अब भाजपा को फारवर्ड मोड पर ले आया है। जबकि सिंह के बयान के बाद बहुजन समाज पार्टी द्वारा किए गए विरोध प्रदर्शन में जिस तरह से नारेबाजी हुई उसके विरोध में दयाशंकर की मां तेतरा सिंह, पत्नी स्वाति सिंह ने थाने में जाकर शिकायत दर्ज करा दी। बसपा द्वारा मांग तो थी दयाशंकर को गिरफ्तार करने की लेकिन बसपा खेमा खुद ही इस जाल में उलझता नजर आ रहा है।
न नसीम गिरफ्तार हुए न ही दयाशंकर
मीडिया से बातचीत के दौरान सुप्रीमों मायावती ने कहा, "सपा और बीजेपी की मिलीभगत का नमूना देखिए कि दयाशंकर को 36 घंटे बाद तक भी पकड़ा नहीं गया। मैं पीड़ित हूं और मेरे ख़िलाफ़ ही शिकायत दर्ज कर ली गई।" लेकिन लोगों का तो यह भी सवाल है कि नसीमुद्दीन सिद्दीकी, मायावती पर भी तो एफआईआर हुई है...उन्हें अब तक क्यों नहीं गिरफ्तार किया गया है।
'पेश करो' मायावती की नजर में गलत नहीं, बयान पर दी सफाई
मायावती ने दावा किया कि दयाशंकर की पत्नी और बेटी के ख़िलाफ़ कतई आपत्तिजनक भाषा का इस्तेमाल नहीं किया गया। मायावती ने सफ़ाई दी, "बसपा नेता और कार्यकर्ता नारे लगा रहे थे कि दयाशंकर की पत्नी और बेटी को पेश करो। हमारा मतलब ये था कि उन्हें पेश करो ताकि हम उनसे पूछें कि दयाशंकर ने जो बात एक दलित की बेटी के बारे में कही है उस पर वो क्या कहेंगी।
दूषित मानसिकता के तहत ये सबकुछ हुुआ
लेकिन दूषित मानसिकता के तहत उल्टे हमारे ख़िलाफ़ ही मोर्चा खोल दिया गया।" मायावती के मुताबिक़ दयाशंकर की ग़लत भाषा पर पर्दा डालने की कोशिश हो रही है। उनका कहना था कि अब दयाशंकर की पत्नी और बेटी के ज़रिए बसपा नेताओं को कठघरे में खड़ा किया जा रहा है।
इस बारे में आम जनता का क्या कहना है.. जानने के लिए नीचे की स्लाइड़ों पर क्लिक कीजिये..
शिवेंद्र सिंह चौहान, उन्नाव
मैं एक आम व्यक्ति हूं। बसपा द्वारा किया गया विरोध प्रदर्शन दयाशंकर के लिए था न...क्योंकि उन्होंने आपत्तिजनक टिप्पणी की थी। लेकिन बसपाईयों ने भी मर्यादा को लांघते हुए कुत्ता, पेश करो जैसे अभद्र शब्द प्रयोग किए। अब मायावती जी चाहे सच्चाई दबाने के लिए कोई भी मतलब की घुट्टी तैयार कर लें। लेकिन जिस वक्त नारे लग रहे थे, उस वक्त लोगों के दिल में इन नारों को सुनकर क्या जहन में आया जरा इस बात का आंकलन करके देखें सपा सुप्रीमों। शायद नहीं करेंगी। सब सियासत की देन है।
अक्षय पांडे, कानपुर
बेटी का जिस तरह से अपमान किया गया है...और वो तो राजनीति का पूरी तरह से मतलब भी शायद ही जानती हो। निन्दनीय है। हम लगातार संघर्ष करते रहेंगे।
रमन तिवारी, बाराबंकी
सोशल मीडिया से लेकर रास्तों पर चलते लोगों के द्वारा भी बसपा के द्वारा विरोध प्रदर्शन के वक्त पेश करो वाले नारों की जमकर फजीहत की जा रही है। देखना दिलचस्प तो ये है कि जिस हनक के साथ बसपा नेता नसीमुद्दीन सिद्दीकी ने 25 तारीख का इंतजार कर��े को कहा है, उससे तो कहीं न कहीं यही आशंका लगाई जा रही है कुछ बड़ा होने वाला है। सियासत है नजारे भी विवादित होंगे...खबर बनेंगी। कोई आगे जाएगा तो कोई पीछे खिसक जाएगा। लेकिन किसको फायदा होगा और किसको नुकसान ये तो आने वाला वक्त ही बताएगा।
अक्षरा श्रीवास्तव, बनारस
राजनीति के लिए कुछ लोग अपने आप पर भी कीचड़ उछलवाते हैं, इस गंदी सियासी चाल का ये उतकृष्ठ उदाहरण हैै लेकिन जनता हर किसी को समझती है।
रितेश पांडे, कानपुर
नारी केे सम्मान का ठेका लेने वाले सियासी दलों को शर्म आनी चाहिए, सत्ता लोभ के चलते बसपा-भाजपा दोनों की मति भ्रष्ट हो गई है।