घर में टॉयलेट बनवाकर फंसा परिवार, सरकार ने नहीं दिया पैसा, बेटा हो गया कैद
प्रशासन की सख्ती की वजह से लोन लेकर टॉयलेट बनवाने वाले लोगों की मुश्किल बढ़ गई है। उनका कर्ज लगातार बढ़ रहा है और एक साल होने के बाद भी केंद्र सरकार से पैसा नहीं मिला।
जान
से
मारने
की
धमकी
भी
दी
अंग्रेजी
अखबार
इंडियन
एक्सप्रेस
की
एक
रिपोर्ट
के
मुताबिक,
52
वर्षीय
भागीरथी
खांडे
का
बेटा,
बहू
अपनी
18
महीने
की
बेटी
को
लेकर
नवंबर
में
काम
के
लिए
यूपी
के
देवरिया
जिले
के
लिए
निकले
थे।
वहां
उन्हें
ईंट
भट्ठों
पर
काम
मिलने
वाला
था।
स्वच्छ
भारत
अभियान
के
तहत
टॉयलेट
बनाने
के
लिए
उन्होंने
लोन
लिया
था।
दो
महीने
पहले
खांडे
के
बेटे
शोभ
ने
पहली
बार
फोन
किया
और
मदद
की
गुहार
लगाई।
उसने
बताया
कि
उन्हें
तय
पैसा
नहीं
दिया
जा
रहा
और
मारपीट
की
जाती
है।
उन्हें
जान
से
मारने
की
धमकी
भी
मिल
रही
है।
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2000
के
नोटों
की
प्रिंटिंग
को
लेकर
बड़ा
खुलासा,
घिरी
सरकार
महिला
की
तस्वीर
पर
हुआ
था
काफी
विवाद
छत्तीसगढ़
के
इन
इलाकों
से
काम
के
लिए
पलायन
कोई
नई
बात
नहीं
है
लेकिन
इस
साल
आंकड़ा
बढ़ा
है।
बीते
साल
मालखारोदा
ब्लॉक
के
सभी
गांव
खुले
में
शौच
से
मुक्त
घोषित
कर
दिए
गए
थे।
अंडी
गांव
के
सभी
125
घरों
में
टॉयलेट
बनवाए
जा
चुके
थे।
प्रशासन
ने
इसके
लिए
दबाव
डाला
था
और
खुले
में
शौच
करने
वालों
को
शर्मिंदा
किया
जिससे
लोग
टॉयलेट
बनवाने
को
मजबूर
हो
गए।
स्थानीय
एक्टिविस्ट
पुष्पेंद्र
खुंटे
ने
बताया
कि
एक
बार
अधिकारियों
ने
खुले
में
शौच
के
लिए
गई
एक
महिला
की
तस्वीर
खींच
ली
थी
और
उसे
जारी
कर
दिया।
इस
पर
काफी
विवाद
हुआ
था।
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के
बीच
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के
लिए
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में
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सीटों
पर
दर्ज
की
जीत
केंद्र
से
पैसा
आने
की
रफ्तार
धीमी
गांव
के
लोगों
ने
कुछ
महीनों
में
महसूस
किया
कि
बदलाव
तो
आया
है
लेकिन
बड़ी
कीमत
पर।
खांडे
ने
कहा,
'मैंने
18000
रुपये
खर्च
करके
टॉयलेट
बनवाया।
सरकार
ने
कहा
था
कि
वह
12000
रुपये
देगी।
अंडी
गांव
में
कोई
भी
नहीं
है
जिसे
सरकार
से
पैसा
मिला
हो।
एक
साल
बाद
भी
वह
पैसा
नहीं
आया।
अगर
उन्होंने
पहले
बताया
होता
कि
पैसा
नहीं
आएगा
तो
हम
टॉयलेट
बनवाने
से
मना
कर
देते।'
एक
अधिकारी
ने
नाम
न
छापने
की
शर्त
पर
बताया
कि
पैसा
सबसे
बड़ी
समस्या
है।
सरकार
काम
शुरू
होने
से
पहले
पैसा
नहीं
देती।
लोगों
तक
पैसा
आने
में
भी
काफी
वक्त
लगता
है।
केंद्र
से
पैसा
राज्य
को
आता
है।
राज्य
से
जिले
और
जिले
से
पंचायतों
में
पैसा
पहुंचता
है।
पैसा
आने
रफ्तार
धीमी
है
और
लोगों
के
कर्ज
बढ़
रहे
हैं।
पुष्पेंद्र खुंटे ने बताया कि गांव में 5 फीसदी ब्याज पर कर्ज मिलता है। कभी-कभी तीन फीसदी पर भी मिल जाता है। ऐसे में यदि कोई 20000 रुपये कर्ज लेता है तो उसे 32000 रुपये लौटाने होंगे। यह राशि गांव के लोगों की जेब से बाहर है।