इतिहास के पन्नों से- मुंबई की माहिम दरगाह
नई दिल्ली(विवेक शुक्ला) यूं तो मुंबई में बहुत सी दरगाहें है सूफी संतों की, पर महिम इलाके में मख्दूम अली माहिमी की दरगाह का अपना महत्व है। वे बड़े सूफी थे। कहते हैं उनका काल 1372-1431 के बीच रहा। मुंबई के मुसलमान और गैर-मुसलमान इधर आते हैं सजदा करने।
दफनाया गया
आज याकूब मेमन के शव को भी दफनाए जाने से पहले इधर लाया गया। कहते हैं कि बाबा एक अरब के रहने वाले यात्री संतान थे। ये परिवार माहिम में बस गया था। मुंबई सात द्वीपों से मिलकर ही तो बनता है। माहिम बाबा के शुरूआती दिनों के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं मिलती। कहते हैं वे कुरान के बहुत बड़े विद्वान थे।
सबके बाबा
मुंबई के पत्रकार भुवेन्द्र त्यागी कहते हैं कि मुंबई वाले उन्हें बेहद आदर से देखते हैं। वे सबके बाबा थे। वे मजहब से ऊपर थे। वे मानवतावादी थे। उनकी मृत्यु के बाद उन्हें इधर माहिम में ही दफन किया गया।
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सालाना उर्स
इधर हर साल उनका उर्स भी होता है। इसमें बड़ी तादाद में उनके प्रति सम्मान रखने वाले पहुंचते हैं। उर्स में सबसे पहले चादर मुंबई पुलिस की तरफ से चढ़ाई जाती है। महाराष्ट्र सरकार ने कुछ साल पहले जेजे फ्लाईओवर का नाम पर बाबा पर रखा। ये ढाई किलोमीटर लंबा फ्लाईओवर है।