देखिए ये है मोदी के गाँवों में टॉयलेटों का हाल
नरेंद्र मोदी ने जोर-शोर से स्वच्छता अभियान की शुरुआत की थी लेकिन तीन साल के बाद क्या हालत मोदी के स्वच्छता अभियान की.
चिलचिलाती धूप में एक पतली सी सड़क आपको वाराणसी-इलाहाबाद हाइवे से नागेपुर पहुँचाती है, इस गाँव को मोदी ने गोद लिया है.
गाँव में घुसते ही गरीबी का एहसास आपको हिलाकर रख देगा और इस हरिजन बस्ती वाले अपनी 'जात को कोसते हुए' ये बात कहने से कतराते भी नहीं.
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आबादी पूछने पर हज़ार के करीब बताई जाती है और लोग तुरंत उसे हरिजन, यादव, मौर्य,पटेल और राजभर बस्ती में बाँट देते हैं.
मिट्टी से पुते कच्चे घर भी हैं और ढूँढने पर एक आधा ईंट वाले घरों में बिजली के तार भी दिख जाते हैं.
एक घने बरगद की छाँव में, बेंत से बिनी चारपाई पर, चाय सुड़कते हुए चर्चा योगी आदित्यनाथ के शासन पर हो रही है.
देर से बेचैनी का शिकार रहे मेरे टैक्सी ड्राइवर पूछ बैठे, "बाथरूमवा कहाँ है हो".
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नागेपुर के ये सभी पांच निवासी मुस्कुरा उठे और दो ने खेत की ओर इशारा कर दिया.
बबलू कुमार ने कहा, "हम चार भाइयों का परिवार है. कुल तेरह लोग हैं और शौचालय सिर्फ़ एक भाई के घर में. अब खेत में ही तो जाएंगे न".
गंदे पानी का इस्तेमाल
बबलू के बरामदे से गाँव के भीतर पहुंचे तो एक बड़े लेकिन गंदे कुँए के इर्द-गिर्द चार महिलाएं मशक्कत करती मिलीं.
कोई आधा किलोमीटर आई थी और कोई अपने दूध पीते बच्चे को उसकी सात साल की बड़ी बहन की निगरानी में छोड़ कर.
इन सबमें अंजू देवी का घर कुँए के सबसे नज़दीक है इसलिए वे सिर्फ़ दो बाल्टियां ही लेकर आई हैं.
मैंने पूछा इस गंदे पानी का इस्तेमाल कहाँ करती हैं.
अंजू का जवाब था, "इसी पानी को पीते हैं, नहाते हैं और बोतलों में लेकर खेतों में ले जाते हैं".
अंजू के घर के ठीक बगल में एक नीले-सफ़ेद रंग वाला फ़ाइबर वाला टॉयलेट है जिसके भीतर धूल-मिटटी जम चुकी है.
अंजू के पति विजय कुमार मौर्य ने बताया, "इस तरह के दर्जनों शौचालय हमारे गाँव में पिछले साल आए थे. कोई गुजरात की कंपनी थी शायद लेकिन इसके ऊपर पानी की टंकी कैसे चढ़ाएं जब शौचालय तक कोई पाईप की व्यवस्था ही नहीं है. हमारे इलाके में पानी की सप्लाई के लिए यही कुआँ है. अब इससे पानी उस शौचालय के ऊपर वाली टंकी में कैसे जाएगा इसीलिए ये बिना इस्तेमाल के पड़ा है. बारिश में मदद ज़रूर मिल जाती है, चारा, लकड़ी और उपले सूखा रखने के लिए."
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने लोकसभा क्षेत्र वाराणसी में 'सांसद आदर्श ग्राम योजना' के तहत जिन दो गांवों को गोद ले रखा है उनमें से एक नागेपुर है और दूसरा जयापुर.
महत्वाकांक्षी अभियान
2014 में नरेंद्र मोदी ने पास ही के जयापुर गाँव को गोद लिया था.
उसी समय से शुरू हुआ था प्रधानमंत्री मोदी का महत्वाकांक्षी स्वच्छ भारत अभियान जिसका एक बड़ा और अहम लक्ष्य है 2019 तक भारत को खुले में शौच से मुक्त बनाना.
इस अभियान में केंद्र सरकार से लेकर ज़िला स्तर तक के अधिकारियों को ज़िम्मेदारियाँ दी गई हैं.
यानी ग्रामीण इकाइयों को पेयजल और स्वच्छता मंत्रालय के तहत रखा गया है जबकि अभियान की शहरी इकाई का ज़िम्मा शहरी विकास मंत्रालय को सौंपा गया है.
लाखों करोड़ रुपए की लागत वाले अभियान की लघु इकाइयों को मानव संसाधन, महिला एवं बाल विकास मंत्रालय भी लागू करवा रहे हैं.
हालाँकि ये पहली बार नहीं है जब भारत में एक बड़े स्तर एक सफ़ाई अभियान चला हो जिसके तहत देश को खुले में शौच से मुक्त कराने का लक्ष्य रहा हो.
'निर्मल भारत अभियान' पर 2015 में ही आई सीएजी की एक रिपोर्ट में इस बात का ज़िक्र है कि "1954 के बाद से भारत में ग्रामीण इलाकों में शौचालय मुहैया कराने का कोई न कोई प्रोग्राम चलता रहा है".
दरसअल, 1986 में भारत सरकार ने एक 'सेन्ट्रल रूरल सैनिटेशन प्रोग्राम' शुरू किया था जिसे 1999 में 'धीमी रफ़्तार' होने के कारण 'टोटल सैनिटेशन कैंपेन' में बदल दिया गया था.
2012 में इसी को निर्मल भारत अभियान में तब्दील कर दिया गया.
बहरहाल, प्रधानमंत्री मोदी ने कार्यकाल में शुरुआत से ही सफ़ाई पर बल दिया है और यही वजह है कि उनके अपने गोद लिए गांवों में सैंकड़ों शौचालय पहुँच चुके हैं.
मोदी के गोद लिए गांव की हक़ीक़त
नागेपुर से करीब बीस मिनट की दूरी पर है जयापुर गाँव जिसे नरेंद्र मोदी ने तीन सालों से गोद लिया हुआ है.
हाईवे से उतर कर गाँव जाने वाली सड़क पहले तीन किलोमीटर तो खड़ंजे वाली है लेकिन अगले पांच किलोमीटर तक यही सड़क बनारस शहर की किसी बेहतरीन सड़क को टक्कर दे सकती है.
पिछली बार की तरह इस बार भी जयापुर से ठीक पहले पड़ने वाले गाँव के लोगों की शिकायत कम नहीं मिली.
सड़क किनारे चाय बेचने वाली सीता देवी ने कहा, "आप लोग तो जयापुर ही जा रहे होंगे. क्या लाए हैं उनके लिए? पानी की टंकी, ट्यूबलाइट-पंखे या और ज़्यादा शौचालय?"
नरेंद्र मोदी की चमकती हुई बड़ी तस्वीर गांव के प्रवेश द्वार पर बने बस स्टैंड पर ही दिख जाती है.
ऊपर लिखा है, "स्वच्छ भारत अभियान में बनें भागीदार".
जयापुर पहुँचने पर वहां के निवासी एक ही बात पर थोड़े खुश दिखे.
यहीं पर बैठे बीड़ी सुलगाते हुए जयापुर निवासी प्रदीप ने बताया, "हमारे गाँव में एटीएम तक खुल गया है और अब योगी जी बिजली भी खूब देंगे ही".
मैंने प्रदीप से पूछा, " तो आपके यहाँ कितने शौचालय हैं अब?"
जवाब मिला, "स्वच्छ भारत अभियान और अखिलेश सरकार के चलते हमारे पड़ोस में पांच शौचालय बन चुके हैं. किसी से कहिएगा नहीं, सिर्फ एक इस्तेमाल में है क्योंकि दूसरों में या तो मल के लिए बनाए गए पिट (गड्ढे ) भर चुके हैं और नहीं तो उसमें जाने वालों को खुजली की बीमारी हो जाती है. हम तो खेत में ही जाते है साहब".
इसमें कोई शक नहीं कि जयापुर में नागेपुर की बदौलत कहीं ज़्यादा शौचालय दिखे. इस गाँव भी आबादी भी नागेपुर से ज़्यादा है.
लेकिन ज़्यादातर को करीब से देखने पर दिखता है कि सभी के पिट इतने कम गहरे हैं कि बहुत जल्द भर जाएं.
चमेला देवी इस बात से बहुत नाराज़ हैं कि काम 'मन से नहीं किया गया'.
उन्होंने कहा, "स्वच्छ अभियान के चलते एक शौचालय तो हमने अपने पैसे से बनवाया जो सरकार से अभी तक मिला नहीं है. जो एक बक्से वाले शौचालय घर के पास रखे गए इनके गड्ढों में गंदगी जमा हो जाती है. परिवार के लोग खेत में न जाए तो कहाँ जाएं".
नागेपुर और जयापुर दोनों जगहों में जो सबसे बड़ी दिक्कत साफ दिखी वो यही कि बक्सानुमा इन शौचालयों में से अधिकांश में पानी पहुंचाने की कोई व्यवस्था ही नहीं.
साथ ही हज़ारों गावों की तरह इन दोनों में भी सीवेज लाइनें नहीं बिछीं हैं.
जयापुर निवासी और दो बच्चों के पिता संजय सिंह हमें गाँव में घूमता देख कर खुद चल कर आए.
उन्होंने कहा, "मोदी से कहिए अगर बाथरूम दे दिया है तो पानी भी दे देते. बाथरूमों में लोग गोबर के कंडे रखते हैं, चारा रखते है और नहीं तो अपना ताला डाल देते हैं. सिर्फ़ सड़क बनवाने और सोलर लैंप लगाने से क्या होगा".
हालांकि इस जगह से सिर्फ आधा किलोमीटर आगे एक मेड़ पर बैठकी लगाए हुए हमें जयापुर के प्रधान भी मिल ही गए.
नारायण पटेल ने बताया पिछले तीन वर्षों में यहाँ करीब 600 शौचालय बने हैं.
लेकिन इस सवाल के जवाब में कि इनका रखरखाव कैसा है, नारायण पटेल ने कहा, "जो लोग इन्हे साफ़ रखना चाहते हैं वे बिलकुल रखते हैं. अब लोग जानबूझ कर इन्हे गंदा छोड़ दें और खेतों में जाए तो इसमें सांसद मोदी जी और हम भी क्या करें".
जयापुर के कुछ लोगों ने हमसे बातचीत के दौरान ये आरोप लगाया था कि, "प्रधान जी भाजपा के हैं, इसलिए चुने हुए लोगों का भला करते हैं".
नारायण पटेल इन्हे खारिज करते हुए बोले, "शिकायत करने वालों का मुँह कौन बंद कर सकता है. इस विरोध के कोई मायने नहीं हैं. मुझे पता है कि गाँव के 40-50 लोग अभी भी शौच के लिए बाहर जाते हैं. लेकिन ये उनकी मर्ज़ी है, हम तो सिर्फ़ समझा ही सकते हैं."
तीन साल का बदलाव
जयापुर और नागेपुर में दो दिन घूमने में मुझे तो शौचालयों के रखरखाव और उनमें पानी की किल्लत की शिकायत करने वालों की तादाद तारीफ करने वालों से ज्यादा मिली.
हालाँकि वाराणसी शहर में मेरी मुलाक़ात कई ऐसी महिला समाज सेविकाओं से भी हुई जिनके मुताबिक़ "स्वच्छ भारत अभियान के चलते स्कूलों में शौचालय बनवाने से इलाके में स्कूली छात्राओं की बहुत बड़ी मुश्किल हल हो गई है."
वैसे केंद्र में आसीन नरेंद्र मोदी सरकार के पास अभी इस बेहद महत्वाकांक्षी योजना को पूरा करने के लिए दो साल और बचे हैं.
लेकिन कुछ वर्षों पहले आए विश्व बैंक के एक अनुमान के मुताबिक़ भारत के ग्रामीण इलाकों में आधे से ज़्यादा और शहरी इलाकों में करीब 15 प्रतिशत लोग खुले में शौच करते थे.
तीन साल में क्या बदला है और दो साल में क्या बदलेगा इसका सटीक पता चलने में अभी थोड़ा समय और लगेगा.