क्विक अलर्ट के लिए
अभी सब्सक्राइव करें  
क्विक अलर्ट के लिए
नोटिफिकेशन ऑन करें  
For Daily Alerts
Oneindia App Download

लोकसभा चुनाव 2019: कन्हैया कुमार को महागठबंधन में क्यों शामिल नहीं किया गया?

राजेंद्र तिवारी कहते हैं कि तेजस्वी थोड़ा 'सेफ' खेलना चाहते हैं. "कन्हैया कुमार एक मज़बूत आवाज़ हैं और आम आदमी को बहुत ही आम भाषा में समझाने में सक्षम हैं. अगर इन स्थितियों में भी राजद ने कन्हैया को महागठबंधन में शामिल नहीं किया है तो ज़रूर ये दोनों मजबूरियां रही होंगी."

By अभिमन्यु कुमार साहा बीबीसी संवाददाता
Google Oneindia News
कन्हैया कुमार को महागठबंधन में शामिल क्यों नहीं किया गया?
Getty Images
कन्हैया कुमार को महागठबंधन में शामिल क्यों नहीं किया गया?

बिहार में महागठबंधन ने सीटों का ऐलान कर दिया है.

राष्ट्रीय जनता दल 20 सीटों पर, कांग्रेस 09, उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी राष्ट्रीय लोक समता पार्टी 05, मुकेश सहनी की विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) 03 और पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी की हिंदुस्तान आवाम मोर्चा 03 सीटों पर चुनाव लड़ेगी.

राजद ने अपने कोटे से सीपीआई (माले) को एक सीट देने की भी बात कही है. यह उम्मीद लगाई जा रही थी कि महागठबंधन में कन्हैया कुमार को शामिल किया जाएगा और उनकी पार्टी सीपीआई (कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया) को इसमें जगह दी जाएगी, पर ऐन वक़्त पर ऐसा नहीं हो सका.

जेएनयू छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष कन्हैया कुमार और तेजस्वी के बीच हाल के कुछ महीनों में नज़दीकियां बढ़ी थीं और वो साथ में मंच साझा करते भी नज़र आए थे.

तेजस्वी, कन्हैया के पक्ष में खुल कर बोलने लगे थे. उन्होंने पटना में मकर संक्राति के अवसर पर आयोजित एक कार्यक्रम में कन्हैया के लिए कहा था कि "जो भी भाजपा के ख़िलाफ़ बोलता है, उस पर मुक़दमा होता है. हमारे लोगों के साथ ऐसा ही हो रहा है."

यहां उन्होंने कन्हैया को "हमारे लोगों" में शामिल किया था. तब से यह क़यास लगाए जा रहे थे कि बेगूसराय से कन्हैया को महागठबंधन का चेहरा बनाया जा सकता था, पर ऐसा नहीं हुआ.

कन्हैया कुमार को महागठबंधन में शामिल क्यों नहीं किया गया?
Getty Images
कन्हैया कुमार को महागठबंधन में शामिल क्यों नहीं किया गया?

कन्हैया कुमार को क्यों किया गया दरकिनार

आख़िर कन्हैया कुमार को महागठबंधन में क्यों नहीं शामिल किया गया और इसके पीछे क्या वजहें हैं?

बिहार की राजनीति पर नज़र रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार राजेंद्र तिवारी इसकी दो वजहें गिनाते हैः

  • बिहार में महागठबंधन का नेतृत्व तेजस्वी यादव कर रहे हैं और वो जाति का गणित लेकर चल रहे हैं.
  • दूसरी वजह यह हो सकती है कि कन्हैया कुमार की छवि सत्ता पक्ष ने "देशद्रोह" की बनाई है और उन पर इस तरह का मुक़दमा भी चलाया गया है. ऐसे में राष्ट्रवादी माहौल के ख़िलाफ़ पार्टी जाना नहीं चाहती है.

राजेंद्र तिवारी कहते हैं कि तेजस्वी थोड़ा 'सेफ' खेलना चाहते हैं. "कन्हैया कुमार एक मज़बूत आवाज़ हैं और आम आदमी को बहुत ही आम भाषा में समझाने में सक्षम हैं. अगर इन स्थितियों में भी राजद ने कन्हैया को महागठबंधन में शामिल नहीं किया है तो ज़रूर ये दोनों मजबूरियां रही होंगी."

वहीं पटना के वरिष्ठ पत्रकार अजय कुमार इसके अलग कारण गिनाते हैं. वो कहते हैं कि राजनीति में आप किसी भी दल के साथ गठबंधन करते हैं तो आप उसके जनाधार को भी देखते हैं और उसका फ़ायदा अन्य सीटों पर आपको मिलेगा या नहीं, यह भी देखते हैं.

वो कहते हैं, "कन्हैया की पार्टी सीपीआई के पास दूसरे लोकसभा क्षेत्र में वो आधार नहीं है जबकि सीपीआई (एमएल) के पास दूसरी सीटों, जैसे सिवान में भी आधार है और वह वोट बैंक महागठबंधन को ट्रांसफर हो सकता है."

अजय कुमार सवाल करते हैं कि यदि कन्हैया की पार्टी को तेजस्वी टिकट देते तो क्या दूसरी अन्य सीटों पर इसका फ़ायदा पहुंचता? क्या सीपीआई के पास दूसरी सीटों पर जनाधार है, जो महागठबंधन को ट्रांसफर हो पाता?

कन्हैया कुमार को महागठबंधन में शामिल क्यों नहीं किया गया?
Getty Images
कन्हैया कुमार को महागठबंधन में शामिल क्यों नहीं किया गया?

राजद को कितना फ़ायदा?

पिछले लोकसभा चुनाव में बेगूसराय की सीट भाजपा के खाते में गई थी. भाजपा के भोला सिंह को क़रीब 4.28 लाख वोट मिले थे, वहीं राजद के तनवीर हसन को 3.70 लाख वोट मिले थे. दोनों में करीब 58 हज़ार वोटों का अंतर था.

वहीं सीपीआई के राजेंद्र प्रसाद सिंह को करीब 1.92 हजार वोट ही मिले थे.

वरिष्ठ पत्रकार अजय कुमार इन आंकड़ों को भी बड़ी वजह बताते हैं. वो कहते हैं कि बेगूसराय में राजद के तनवीर हसन ने पिछले चुनाव में अच्छा प्रदर्शन किया था और राजद अपने यादव-मुस्लिम के सशक्त समीकरण पर किसी तरह का तोहमत नहीं लेना चाहती है.

बेगूसराय में भूमिहार जाति का वोट बैंक निर्णायक भूमिका में होता है. भोला सिंह इसी जाति से संबंध रखते थे और उनकी मृत्यु पिछले साल अक्तूबर के महीने में हो गई थी.

भोला सिंह बीजेपी से पहले सीपीआई में थे. इन सभी का फ़ायदा भाजपा को पिछले लोकसभा चुनाव में मिला था.

यह चर्चा है कि इस बार भाजपा इस सीट से गिरिराज सिंह को लड़ा सकती है. गिरिराज सिंह भूमिहार जाति से हैं.

ऐसे में चुनावी खेल कन्हैया बनाम गिरिराज हुआ तो फ़ायदा राजद उठा ले जाएगा.

कन्हैया कुमार को महागठबंधन में शामिल क्यों नहीं किया गया?
Getty Images
कन्हैया कुमार को महागठबंधन में शामिल क्यों नहीं किया गया?

तेजस्वी में असुरक्षा की भावना?

कल की तारीख़ में कन्हैया युवाओं की पहली पसंद न बन जाए, क्या इस तरह की असुरक्षा की भावना भी रही होगी तेजस्वी के मन में?

वरिष्ठ पत्रकार अजय कुमार कहते हैं, "आप देखिए कि पप्पू यादव जिस तरह से राजद के अंदर पैठ बना रहे थे, वो पार्टी के नेतृत्व को खटक रहा था."

"कोई भी पार्टी अपने पसंद का नेतृत्व देखना चाहती है. कन्हैया के आने के बाद मामला 'कन्हैया बनाम तेजस्वी' का भी बन सकता था. राजनीति में यह भी देखा जाता है कि आप किसको साथ लेकर चल रहे हैं और आने वाले समय में उसका क्या परिणाम होगा."

"राजद के मन में यह भी बात होगी कि कन्हैया की छवि जिस तरह से राष्ट्रीय स्तर पर सशक्त प्रतिरोध की बनी है, उसके सामने तेजस्वी का क़द कहीं छोटा न पड़ जाए."

वहीं वरिष्ठ पत्रकार राजेंद्र तिवारी कहते हैं, "मुझे नहीं लगता है कि इस तरह की असुरक्षा की भावना तेजस्वी के मन में रही होगी क्योंकि कन्हैया कुमार की पार्टी का आधार बिहार में बहुत छोटा है जबकि राजद एक बड़ी पार्टी है."

राजेंद्र तिवारी जोड़ते हैं, "मुद्दा यह है कि महागठबंधन यह नहीं चाहता है कि भाजपा या एनडीए कन्हैया कुमार के ख़िलाफ़ कुछ ऐसे मुद्दे खड़े करे जिसका जवाब अभी के राष्ट्रवादी माहौल में देना महागठबंधन के लिए परेशानी का सबब बने."

कन्हैया कुमार को महागठबंधन में शामिल क्यों नहीं किया गया?
Getty Images
कन्हैया कुमार को महागठबंधन में शामिल क्यों नहीं किया गया?

महागठबंधन ने कुछ खोया भी?

क्या कन्हैया को शामिल न करके महागठबंधन ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ख़िलाफ मजबूत आवाज़ खोई है?

इस सवाल के जवाब में वरिष्ठ पत्रकार राजेंद्र तिवारी कहते हैं, "कन्हैया कुमार को शामिल न करके महागठबंधन ने एक मज़बूत आवाज़ को खोया है, इसमें कोई शक नहीं है. कन्हैया प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी नीतियों पर सवाल करते रहे हैं और उनकी जवाबी शैली भी लोगों को आकर्षित करती हैं. शायद कन्हैया महागठंबधन के साथ होते तो स्थितियां बहुत अलग होतीं."

महागठबंधन में शामिल नहीं किए जाने के बाद कन्हैया के लिए बेगूसराय की लड़ाई आसान नहीं होगी.

वरिष्ठ पत्रकार अजय कुमार कहते हैं कि अब बेगूसराय की लड़ाई आसान नहीं है. लोकसभा में यहां दो ध्रुव ही होंगे, चाहे वो भाजपा बनाम महागठबंधन हो या फिर भाजपा बनाम कन्हैया कुमार का.

"तीसरा ध्रुव मुश्किल है क्योंकि धुव्रीकरण जिस तरह से हो रही है वो मुक़ाबला को आमने-सामने का बनाएगा."

वो अंत में कहते हैं कि पिछले चुनाव में राजद ने बेगूसराय सीट पर भाजपा को कड़ी टक्कर दी थी जो भी हो मुक़ाबला आमने सामने का ही होगा.

BBC Hindi
Comments
देश-दुनिया की ताज़ा ख़बरों से अपडेट रहने के लिए Oneindia Hindi के फेसबुक पेज को लाइक करें
English summary
Lok Sabha Elections 2019 Why did Kanhaiya Kumar not be included in the alliance
तुरंत पाएं न्यूज अपडेट
Enable
x
Notification Settings X
Time Settings
Done
Clear Notification X
Do you want to clear all the notifications from your inbox?
Settings X
X