कौन दिलवाएगा जामा मस्जिद को इमाम से मुक्ति
नई दिल्ली (विवेक शुक्ला) दिल्ली की मशहूर जामा मस्जिद के इमाम अहमद बुखारी के अपने पुत्र को जामा मस्जिद का अगला इमाम बनाने के लिए दस्तारबंदी के कार्यक्रम आयोजित करने पर तमाम नामवर मुसलमानों ने कड़ी आपत्ति जताई है।
इमाम का कदम गैर-कानूनी
इनका कहना है इमाम को इस बात का कोई हक नहीं है कि वे अपने बेटे को जामा मस्जिद का अगला इमाम बना दें दस्तारबंदी करके। पूर्व सांसद सैयद शाहबुद्दीन ने तो मुसलमानों का आहवान किया कि वे इमाम से जामा मस्जिद को मुक्ति दिलवाएं।उऩ्होंने कहा कि जो कुछ इमाम करना चाहते हैं वह पूरी तरह से गैर-इस्लामिक और गैर-कानूनी है।
जामा मस्जिद देश की विरासत
पूर्व आई एफएस अफसर शाहबुद्दीन ने कहा कि जामा मस्जिद बेहद अहम खास मुसलमानों की विरासत है। इस बात से सारा देश वाकिफ है। कानून की नजरों मे यह वक्फ की संपत्ति है। इसलिए इसका प्रबंधन दिल्ली वक्फ बोर्ड के जिम्मे होना चाहिए ना कि इमाम बुखारी के। उन्होंने सवाल किया कि जब वक्फ बोर्ड बाकी सारी मस्जिदों को देखती है,तो उसे इसे भी देखना चाहिए।
इस बीच, चोटी के इस्लामिक मामलों के चिंतक और दिल्ली यूनिवर्सिटी के विधि विभाग से जुड़े रहे डा. ताहिर महसूद ने कहा कि इमाम का अरबी में अर्थ होता है नेता। नेता किसी भी क्षेत्र का हो सकता है। इमाम से यह अपेक्षा की जाती है कि उसे दीन(धर्म) की गहन समझदारी हो।
इस्लाम की कितनी समझ
क्या इमाम बुखारी के पुत्र को इस्लाम की समझ है, वे सवाल करते हैं। उन्होंने कहा कि मशहूर शायर इकबाल ने भगवान राम को इमाम-ए-हिन्दुस्तान का दर्जा दिया था। तब उनका मतलब था कि राम इस देश के एक प्रकार से नेता है। उन्होंने अफसोस जताया कि इमाम बुखारी सारे कायदे-कानूनों को ताक पर रखकर अपने पुत्र को जामा मस्जिद के भावी इमाम बनाने की कोशिश कर रहे हैं।
इस बीच राजधानी के बड़ी तादाद में मुसलमान भी जामा मस्जिद के इमाम अहमद बुखारी के उक्त कदम की मुखालफत कर रहे हैं।