तमिलनाडु में भारी विरोध के बाद पर्यावरण और कानून मंत्रालय ने जल्लीकट्टू के अध्यादेश को दी मंजूरी
भारी विरोध के बाद केंन्द्रीय कानून, पर्यावरण और संस्कृति मंत्रालय ने जल्लीकट्टू को लेकर दिए गए तमिलनाडु सरकार के अध्यादेश को मंजूरी दे दी है। अब सिर्फ राष्ट्रपति की मंजूरी का इंतजार है।
नई दिल्ली। तमिलनाडु के लोगों द्वारा जल्लीकट्टू के समर्थन में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का विरोध किए जाने के बाद अब केन्द्रीय कानून, पर्यावरण और संस्कृति मंत्रालय ने जल्लीकट्टू को लेकर दिए गए तमिलनाडु सरकार के अध्यादेश को मंजूरी दे दी है। अब सिर्फ इस अध्यादेश पर सरकार की मंजूरी की जरूरत है। आपको बता दें कि तमिलनाडु सरकार ने शुक्रवार को ही यह अध्यादेश जारी किया था, जिसे केंद्र की मंजूरी भी मिल चुकी है। केन्द्र द्वारा इस अध्यादेश को दी गई मंजरी का इशारा इसी ओर है कि अब इस अध्यादेश को राष्ट्रपति से भी मंजूरी मिलने की पूरी उम्मीद है।
इससे
पहले
सुप्रीम
कोर्ट
उस
याचिका
को
खारिज
कर
चुका
है,
जिसमें
विवादित
खेल
जल्लीकट्टू
को
तमिलनाडु
में
होने
वाले
पोंगल
के
उत्सव
में
खेले
जाने
को
स्वीकृति
देने
की
मांग
की
गई
थी।
जस्टिस
दीपक
मिश्रा
और
जस्टिस
आर
बानुमति
की
बेंच
ने
इस
याचिका
पर
सुनवाई
की
मांग
करने
वाले
वकीलों
के
एक
समूह
से
कहा
कि
इसे
लेकर
ऑर्डर
पास
करने
को
कहना
गलत
है।
आपको
बता
दें
कि
केन्द्र
ने
इस
खेल
को
खेले
जाने
की
अनुमति
का
एक
नोटिफिकेशन
जारी
किया
था,
जिसको
बहुत
सी
याचिकाओं
में
चुनौती
दी
गई
है।
दरअसल,
2014
में
सुप्रीम
कोर्ट
ने
जल्लीकट्टू
खेल
पर
यह
कहकर
प्रतिबंध
लगा
दिया
था
कि
यह
जानवरों
के
साथ
बर्बरता
वाला
खेल
है।
पिछले
साल
ही
सुप्रीम
कोर्ट
ने
तमिलनाडु
सरकार
की
उस
याचिका
को
भी
खारिज
कर
दिया,
जिसमें
उन्होंने
सुप्रीम
कोर्ट
से
उसके
2014
के
फैसले
पर
एक
बार
फिर
से
विचार
करने
की
मांग
की
थी।
जल्लीकट्टू
खेल
में
लोग
सांड
के
साथ
लड़कर
उसे
गिराते
हैं।
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कोर्ट
में
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सुप्रीम
कोर्ट
पहले
ही
यह
कह
चुका
है
कि
तमिलनाडु
रेग्युलेशन
ऑफ
जल्लीकट्टू
एक्ट
2009
संवैधानिक
तौर
पर
गलत
है,
क्योंकि
यह
संविधान
की
धारा
254(1)
का
उल्लंघन
करता
है।
पिछले
साल
8
जनवरी
को
केन्द्र
ने
एक
नोटिफिकेशन
जारी
करते
हुए
तमिलनाडु
में
जल्लीकट्टू
खेले
जाने
पर
लगे
प्रतिबंध
को
हटा
लिया
था
और
खेले
जाने
की
कुछ
शर्तें
निर्धारित
की
थीं।
इसे
एनिमल
वेलफेयर
बोर्ड
ऑफ
इंडिया,
पीपल
फॉर
एथिकल
ट्रीटमेंट
ऑफ
एनिमल
(पेटा)
इंडिया,
बेंगलुरु
के
एक
एनजीओ
और
कुछ
अन्य
लोगों
द्वारा
सुप्रीम
कोर्ट
में
चुनौती
दी
गई।
सुप्रीम
कोर्ट
8
जनवरी
को
केन्द्र
द्वारा
जारी
किए
गए
नोटिफिकेशन
पर
पहले
ही
रोक
लगा
चुका
है।
पिछले
साल
26
जुलाई
को
सुप्रीम
कोर्ट
ने
कहा
कि
जल्लीकट्टू
खेल
को
सिर्फ
इस
आधार
पर
अनुमति
नहीं
दी
जा
सकती
कि
वह
सदियों
पुरानी
परंपरा
है।