जानिये शिक्षा और कृषि के क्षेत्र में मोदी सरकार की उपलब्धियां और विफलता
नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली एनडीए सरकार 26 मई को अपना एक साल पूरा कर रही है। चुनाव पूर्व लोगों में मोदी को लेकर बहुत सारी उम्मीदें थी। ऐसे में यह जानना जरूरी हो जाता है कि चुनाव से पहले पीएम मोदी ने जनता से क्या वादा किया था और कितना वह अपने वादों पर खरे उतरे हैं।[काम करने के मामले में मोदी सरकार ने तोड़ा 30 साल का रिकॉर्ड]
-
-कृषि
के
क्षेत्र
में
मोदी
सरकार
के
वादे
प्रधानमंत्री मोदी ने सांसद आदर्श ग्राम योजना, मनरेगा को आगे बढ़ाते हुए स्वच्छ भारत अभियान को आगे बढ़ाने का ऐलान किया था। यही नहीं 2013 के भूमि अधिग्रहण बिल को बदलकर नया भूमि अधिग्रहण बिल के जरिए किसानों की दशा और दिशा को बदलना
सफलता
मोदी सरकार ने मनरेगा में मजदूरों को दी जाने वाली मजदूरी को विलंब से नहीं मिले इसके लिए विशेष अभियान शुरु किया। मोबाईल के जरिए मजदूरों को पैसे मिल रहे हैं या नहीं उसकी देखरेख शुरु हुई। यही नहीं मनरेगा के जरिए बेहतर काम हो इसका लिए भी मोदी सरकार ने काम शुरु किया।
विफलता
किसानों की दशा और दिशा बदलने का दावा करने वाली मोदी सरकार नये भूमि अधिग्रहण बिल को पास कराने में विफल रही। वहीं मनरेगा के इतिहास में पिछला साल सबसे विफल साल कहा जा सकता है। मजदूरों को दी जाने वाली मजदूरी, हर घर को दिये जाने वाले काम करने के दिनों में गिरावट आयी है।
सरकार
का
पक्ष
लेकिन सरकार के नजरिए से देखें तो ग्रामई विकास मंत्री बीरेंद्र कुमार का कहना है कि इस एक साल में ग्रामीण विकास, पंचायती राज, पेय जल, सफाई आदि विषयों पर जमीनी स्तर पर काम शुरु हुआ है। प्रधानमंत्री ग्राण सड़क योजना और स्वच्छ भारत अभियान के साथ लगभग सभी योजनाओं पर समान रूप से काम शुरु किया गया। हमें उम्मीद है कि इस दौरान हम अपने कार्यों को और बेहतर कर सकते हैं।
क्या
कहता
है
विपक्ष
वहीं कांग्रेस के नेत जयराम रमेश का कहना है कि सरकार का इस एक साल में मुख्य लक्ष्य यह रहा है कि 2013 के भूमि अधिग्रहण बिल को हर हाल में निष्क्रिय बना देना। कई मंत्रालयों के अहम कार्यक्रमों के बजट आवंटन में भारी कमी की गयी है। राष्ट्रीय आजीविका मिशन के फंड में 4000-5000 करोड़ रुपए तक की कमी की गयी है। वहीं प्रधानमंत्री सड़क योजना के बजट आवंटन में भी 14000 से 20000 करोड़ रुपए तक की कमी की गयी है। उधर मनरेगा को लेकर सरकार का रुख बिल्कुल साफ नहीं दिख रहा है।
- शिक्षा के क्षेत्र में मोदी सरकार के वादे
शिक्षा मंत्रालय ने नयी राष्ट्रीय शिक्षा नीति लाने का वादा किया था। यही नहीं रुचि के आधार पर कॉलेजों को कोाम करने की स्वतंत्रता और यूजीसी और एआईसीटीई में बदलाव के लिए कमेटियों के गठन का भी वादा किया गया था।
सकारात्मक
सफल
कदम
सरकार ने नयी शिक्षा नीति के लिए लोगों से सुझाव लेने प्रारंभ कर दिये हैं, इसके लिए शीर्ष से लेकर निचले स्तर के लोगों को शामिल किया गया है। टीचर एजूकेशन में सुधार के लिए कई कदम उठाये जा रहे हैं। वहीं कई स्कॉलरशिप भी शुरु की गयी है जैसे इशान विकास, इशान उदय और प्रगति।
विफलता
वहीं शिक्षा मंत्रालय कई विवादों में भी फंस चुका है पिछले एक साल के भीतर। डीयू में यूजीसी कार्यक्रम को चार साल का करने के बाद सरकार को यह फैसला वापस लेना पड़ा। तीसरी भाषा के तौर पर केंद्रीय विद्यालयों में संस्कृत भाषा को लागू करना।
क्रिसमस डे को गुड गवर्नेंस डे के तौर पर मनाना। एनसीईआईटी के डायरेक्टर का पद से इस्तीफा, आईआईटी दिल्ली के डायरेक्टर आर शेवगांवकर और आईआईटी बांबे के बोर्ड ऑफ गवर्नर के चेयरमैन अनिल काकोदकर का इस्तीफ(बाद में उन्होंने इसे वापस ले लिया था) आदि ऐसे विवाद हैं जिनके चलते शिक्षा मंत्रालय काफी चर्चा में रहा
क्या
कहना
है
सरकार
का
वहीं शिक्षा मंत्री स्मृति ईरानी का कहना है कि शिक्षा में सुधार के लिए सभी वर्गों और समुदायों के लोगों को शामिल किया गया है। बालिकों की शिक्षा पर विशेष ध्यान दिया गया है साथ ही पूर्वोत्तर भारत के शिक्षण संस्थानों के विकास के लिए कई कदम उठाये गये हैं। व्यवसायिक शिक्षा को बढ़ावा दिया जा रहा है। नयी शिक्षा नीति के लिए सभी राज्यों के सुझावों को लिया जा रहा है। पहली बार 2.75 लाख गांवों में ग्रामीण शिक्षा परिषद, ब्लॉक्स, जिले और राज्य स्तर पर लोगों के सुझाव को लेने के लिए शामिल किया गया है।
क्या
कहना
है
विपक्ष
का
वहीं कांग्रेस के नेता मणिशंकर अय्यर का कहना है कि शिक्षा भगवाकरण किया जा रहा है। उच्च शिक्षण संस्थानों के चेयरमैन को मनमाना तरीके से हटाया जा रहा है और उनकी जगह में भगवा विचार को बढ़ावा देने वालों को आगे लाया जा रहा है।