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65 साल बाद पाकिस्तानी भाई से मिलीं कश्मीरी बहन

इस बीच जान सु्ल्ताना के माँ-बाप गुज़र गए और गोद में खेलने वाले भाई बूढ़े हो गए.

By अज़ीज़ुल्ला खान - बीबीसी उर्दू संवाददाता
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जान सुल्ताना
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'ज़िंदगी का वो वक़्त जो माता पिता से दूर गुज़रा उसकी कमी शिद्दत से महसूस होती है, अब इतने समय बाद आई हूँ तो माता-पिता नहीं हैं लेकिन भाई-बहन से मिलकर जो खुशी हुई है वह बयान नहीं कर सकती हूं.'

54 साल बाद जब चीन में रिश्तेदारों से मिले तो फूट-फूटकर रोए वांग छी

ये शब्द हैं जान सुल्ताना ख़ातून के जो 65 साल बाद भारत प्रशासित कश्मीर से अपने पैतृक इलाक़े पाकिसतान के अशीरी दर्रा इलाक़े तक पहुंची हैं.

पाकिस्तान आने के बाद वो अपने परिवारवालों से पश्तो भाषा में बातें कर रही थीं. हालांकि उनकी भाषा धाराप्रवाह नहीं है लेकिन वो अपनी बातें अच्छी तरह रख लेती हैं. वैसे अपने घर में वह कश्मीरी भाषा बोलती हैं.

आँसू भर आए

जान सुल्ताना
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बीबीसी से बातचीत में उन्होंने कहा कि वो वापस आकर बहुत ख़ुश हैं. लेकिन माता पिता को याद करते हुए उनकी आँखों में आँसू भर आए.

जान सुल्ताना कहती हैं कि उन्हें दुख है कि उनके माता-पिता अब इस दुनिया में नहीं रहे.

उनसे जब पूछा गया कि इतने साल भारत प्रशासित कश्मीर में जीवन कैसे गुज़रा तो उनका कहना था, "जीवन अच्छा गुज़रा लेकिन जो समय माता-पिता के बिना बीता उसकी कमी शिद्दत से महसूस होती है और शायद वह कमी कभी पूरी नहीं हो सकेगी."

उन्होंने कहा, "ये कमी मुझे अक्सर महसूस होती थी तो आंखों में आंसू आ जाते थे. बच्चे पूछते थे कि क्यों रो रही हो. मैं उनसे यही कहती थी कि अपना घर और माता-पिता, भाई बहन सब याद आते हैं."

सपने जैसा एहसास

जान सुल्ताना बहुत कम उम्र में अपने इलाक़े से चली गई थीं. उनका कहना था कि वे अपनी इच्छा से अपने पति के साथ कश्मीर चली गई थीं.

उन्होंने बताया कि उस समय पासपोर्ट वगैरह नहीं होता था इसलिए जाने में कोई कठिनाई नहीं हुई थी. लेकिन क्या यह घटना भारत के विभाजन से पहले की है? इस पर उन्होंने कहा कि उन्हें इस बात की जानकारी नहीं है.

जान सुल्ताना ने बताया कि उनके तीन बेटे और तीन बेटियां हैं जिनके अपने भी बच्चे हैं, जिसकी वजह से घर में रौनक लगी रहती है. दो बेटे शिक्षक हैं और एक बेटा अपना व्यवसाय करता है.

इतने सालों बाद परिवार से मुलाक़ात को जान सुल्ताना एक सपने जैसा एहसास बताती हैं.

उन्होंने बताया कि जिस समय वह अपने इलाक़े (वर्तमान पाकिस्तान) से गईं थीं तब वह अपने भाइयों को माँ की गोद में छोड़ गई थीं.

"एक भाई तीन महीने का था और एक की उम्र कोई तीन साल थी अब उन्हें देखा तो उनकी सफेद दाढ़ी हैं. "

सोशल मीडिया ने मिलाया

सोशल मीडिया
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जान सुल्ताना के साथ उनके छोटे बेटे ज़िया मंटो, बेटी और नवासी भी आए हैं.

ज़िया मंटो ने बीबीसी से बातचीत करते हुए कहा कि उन्होंने गूगल की मदद से और माँ की मदद से पाकिस्तान में इलाक़े का नाम और उनके माता-पिता और भाइयों के नाम खोजे लेकिन इस इलाक़े के बारे में इंटरनेट पर कोई अधिक जानकारी उपलब्ध नहीं है.

उनका कहना था कि इसके बाद उन्होंने फ़ेसबुक के एक पन्ने पर संदेश भेजा जिसमें माँ का परिचय और इलाक़े के नाम आदि लिखे थे.

यह पेज रहीमउद्दीन चलाते हैं और उन्होंने तमीरगिरा के स्थानीय व्यापारी इकरामुल्लाह से संपर्क किया.

इसके बाद इकरामुल्लाह ने कोशिशें की और जो अंततः उन्हें जानकारी मिल सकी.

ज़िया मंटो ने बताया कि उनकी मां भाइयों से मुलाकात के लिए बेताब थी और उन्हें बार बार यही कहती थीं कि उन्हें अपने भाइयों से मुलाकात करनी है और वह उनसे मिलने के लिए अपने गांव जाना चाहती हैं.

उन्होंने कहा कि वह अपनी मां को यह नहीं बता सकता था कि दोनों देशों के राजनयिक संबंधों में इन दिनों तनाव है और पासपोर्ट और वीज़ा मिलना इतना आसान काम नहीं है.

दोनों ओर बैठे लोग रो रहे थे

जान सुल्ताना
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इकरामुल्लाह ने बताया कि इस पूरे मामले में उनका हस्तक्षेप जनवरी में हुआ था.

इसके बाद 'देर के पी' फेसबुक पेज चलाने वाले रहीमुद्दीन के माध्यम से उन्होंने इस परिवार के लोगों से संपर्क किया और उनसे पता किया कि उनकी कोई बहन लापता है. पुष्टि करने के बाद उन्हें बताया गया कि उनकी बहन कश्मीर में हैं.

इकरामुल्लाह ने बताया कि जब जान सुल्ताना का अपने भाइयों के साथ संपर्क वीडियो चैट के माध्यम से किया गया तो वह बहुत भावुक क्षण था और दोनों ओर बैठे लोग रो रहे थे.

उनका कहना था कि सोशल मीडिया के माध्यम से यह सब कुछ संभव हो सका और बिछड़ा हुआ परिवार पैंसठ साल बाद मिला सका.

जान सुल्ताना इन दिनों अपने रिश्तेदारों से मुलाकात कर रही हैं. वह अपने बिछड़े भाइयों के साथ पुरानी यादें ताजा करती हैं, भाई बहन माता पिता के बारे में पूछती हैं और अपनी सहेलियों के बारे में जानने की कोशिश करती हैं कि वे सब अब कहां हैं.

वे गुज़रे दिनों को याद करती हैं और अपने उन रिश्तेदारों को याद करती हैं जो अब इस दुनिया में नहीं हैं.

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English summary
Kashmiri sister meets Pakistani brother after 65 years
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