104 सैटेलाइट लॉन्च: अब पाकिस्तान के खिलाफ सर्जिकल स्ट्राइक होगी आसान
इसरो की कामयाबी के साथ ही रूस स्पेस टेक्नोलॉजी में भारत से पीछे छूट रहा है। 104 सैटेलाइट्स के साथ चीन और पाकिस्तान पर करीब से नजर रख पाएगा भारत। सबसे ज्यादा अमेरिकी सैटेलाइट भेजे इसरो ने।
श्रीहरिकोटा। 15 फरवरी 2017 इसरो के साथ ही साथ देश के लिए भी एक एतिहासिक पल का गवाह बना है। इस दिन इसरो ने एक साथ 104 सैटेलाइट्स को लॉन्च करके रूस का रिकॉर्ड तोड़ दिया। वहीं पड़ोसी मुल्कों के साथ ही पूरी दुनिया को बता दिया है कि भारत के वैज्ञानिक सिर्फ मिसाइल बनाने का ही नहीं अतंरिक्ष में सैटेलाइट्स को भेजने का माद्दा भी रखते हैं।
सबसे ज्यादा सैटेलाइट्स अमेरिका के
इसरो ने जो 104 सैटेलाइट्स भेजे हैं उनमें सबसे ज्यादा सैटेलाइट्स अमेरिका के हैं। इसके साथ ही एक और खास बात है कि भारत इन सैटेलाइट्स में मौजूद एक सैटेलाइट की मदद से चीन और पाकिस्तान पर करीब से नजर रख पाएगा। इसरो ने सभी सैटेलाइट्स को एक सिंगल रॉकेट के जरिए अतंरिक्ष में भेजा है और इनमें ही शामिल है अर्थ ऑब्जर्वेशन सैटेलाइट। श्रीहरिकोटा में यह पहला मौका था जब एक सिंगल मिशन में इतने सारे सैटेलाइट्स लॉन्च किए गए हों। इस कामयाबी पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वैज्ञानिकों को बधाई दी तो वहीं ट्विटर पर भी कामयाबी का जश्न जारी है। सुबह नौ बजकर 28 मिनट पर इसरो ने पीएसएलवी के 39वें मिशन के तहत नए इतिहास को रचने में सफलता हासिल की है। एक नजर डालिए इस कामयाबी से जुड़ी अहम बातों पर। पढ़ें-इसरो से आठ साल पहले आगे था पाक, आतंक की फैक्ट्री बनने से पीछे छूटा
कैसे होगी चीन पाक की निगरानी
इन सैटेलाइट्स में शामिल कारटोसैट-2 नामक सैटेलाइट की मदद से भारत को मदद मिलेगी कि वह चीन और पाकिस्तान की गतिविधियों पर नजर रख सके। इस सैटेलाइट की मदद से दुश्मनों के सैनिक ठिकानों में गाड़ियों तक की संख्या का पता भी लगाया जा सकता है। इस सैटेलाइट के तहत हाई रेजॉल्यूशन सैटेलाइट सीरीज को भेजा गया। इस सीरीज के सैटेलाइट्स में पैनक्रोमैटिक और मल्टीस्पेक्ट्रल इमेज सेंसर फिट हैं। इसकी वजह से भारत को हाई रेजॉल्यूशन फोटोग्राफ मिल सकेंगी। साथ ही साथ किसी भी प्राकृतिक आपदा से पहले देश को आगाह किया जा सकेगा।
पिछले वर्ष जून में 20 सैटेलाइट्स
इसरो ने पिछले वर्ष जून में 20 सैटेलाइट्स को एक साथ लॉन्च किया था जिनमें 13 अमेरिका के थे। इसरो को उम्मीद है कि वह अंतरिक्ष से जुड़े मिशंस का सफलतापूर्वक पूरा करके एक नया मुकाम हासिल करेगा। वर्ष 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि एक भारतीय रॉकेट जिसने एक साथ चार सैटेलाइट्स को लॉन्च किया है उसकी कीमत हॉलीवुड की फिल्म 'ग्रैविटी' की लागत से भी कम है।
रूस को पछाड़ा
इसरो ने बुधवार को सैटेलाइट लॉन्चिंग के साथ ही रूस का रिकॉर्ड तोड़ दिया है। वर्ष 2014 में रूस ने एक इंटर-कॉन्टिनेंटल बैलेस्टिक मिसाइल का प्रयोग करके 37 सैटेलाइट्स को एक साथ लॉन्च किया था। रूस से पहले अमेरिकी एजेंसी नासा ने एक साथ 29 सैटेलाइट्स को लॉन्च करके नया रिकॉर्ड कायम किया था।
मिलेगा आर्थिक फायदा
कमर्शियल सैटेलाइट्स को अंतरिक्ष में भेजना अब एक बिजनेस सेक्टर में तब्दील होता जा रहा है। ऐसा इसलिए है क्योंकि अब फोन, इंटरनेट और दूसरी कंपनियां और कई देश हाई-टेक कम्यूनिकेशंस की तरफ देख रही हैं। इसरो ने वर्ष 2013 में 73 बिलियन डॉलर की लागत से एक मानवरहित रॉकेट को अंतरिक्ष में भेजा था। इसकी तुलना नासा के मेवन मार्स मिशन से की गई थी जिसकी लागत 671 मिलियन डॉलर थी।
अब नजरें गुरु और शुक्र पर
इसरो अब गुरु और शुक्र से जुड़े मिशन की ओर देख रहा है। मंगल पर दूसरा मिशन भी वर्ष 2021-2022 के लिए तय किया गया है। इसके अलावा लाल ग्रह पर एक रोबोट को भी रखने की योजना इसरो ने तैयार की है। इसरो की कामयाबी को देखते हुए सरकार ने इस बार के बजट में इसरो के बजट में 23 प्रतिशत का इजाफा किया है।
एक दशक पहले था सिर्फ एक सपना
इसरो आज कामयाबी के जिस रास्ते पर बढ़ रहा है उसका अंदाजा आज से 10 वर्ष पहले किसी ने नहीं लगाया था। एक दशक पहले तक सैटेलाइट लॉन्चिंग के क्षेत्र पर अमेरिका, रूस और यूरोप का ही दबदबा माना जाता था। उस समय भारत सिर्फ अंतरिक्ष में उड़ान का सपना देख रहा था और उड़ना सीख रहा था। भारत तब तक सब-ऑर्बिटल व्हीकल्स और हल्के कैरियर्स को तैयार करने में लगा था जो कुछ दर्जन किलोग्राम का वजन धरती की कक्षा में ले जा सकें।
कब बदला माहौल
वर्ष 1990 में भारत ने पोलर सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल यानी पीएसएलवी को डेवलप किया और इसे शामिल किया। यह एक मिडिल क्लास लॉन्च व्हीकल है जो आज की कामयाबी को मिलाकर अब तक करीब 39 टेस्ट फ्लाइट्स को पूरा कर चुका है। भारत ने पीएसएलवी की विश्वसनीयता की रेटिंग को करीब 95 प्रतिशत तक पहुंचाया और इसके साथ ही भारत रूस, अमेरिका और यूरोपियन कैरियर्स की बराबरी पर आ गया।
भारत और रूस साथ
वर्ष 1991 में भारत और रूस के बीच एक समझौता हुआ जिसके तहत रूस ने भारत को केवीडी-1 क्रायोजेनिक इंजन को बेचने पर रजामंदी जाहिर की। हालांकि अमेरिका को उस समय यह डर सता रहा था कि यह डील मिसाइल टेक्नोलॉजी कंट्रोल रिजाइम यानी एमटीसीआर का उल्लंघन हैं। फिर भी भारत ने यही दावा किया कि उसका मकसद शांतिपूर्ण अंतरिक्ष कार्यक्रम चलाना है। अमेरिका को लगने लगा था कि भारत, न्यूक्लियर वेपन कैरियर की मदद से पाकिस्तान पर हमला कर सकता है।