क्विक अलर्ट के लिए
नोटिफिकेशन ऑन करें  
For Daily Alerts
Oneindia App Download

बीजेपी से हाथ मिलाकर क्या नीतीश ने सबसे बड़ा रिस्क लिया है?

क्या नीतीश कुमार भाजपा के साथ हाथ मिलाकर हासिल कर पाएंगे वह कद जो उन्हें महागठबंधन की सरकार के कार्यकाल में मिला था।

Google Oneindia News

पटना। बिहार में महागठबंधन के टूटने के साथ ही नीतीश कुमार और लालू प्रसाद यादव के बीच दरार काफी ज्यादा बढ़ गई है। जिस तरह से लालू के बेटे तेजस्वी यादव पर उपमुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने का दबाव था, उसे लालू यादव ने लगातार हल्का करने की कोशिश की और और तेजस्वी का बचाव करते रहे। लेकिन जिस तरह से अंदर ही अंदर चल रहे खींचातानी के बाद नीतीश कुमार ने बुधवार को इस्तीफा दिया उसने लालू के लिए मुश्किल खड़ी कर दी है। लेकिन यहां यह समझने वाली बात यह है कि नीतीश कुमार ने सेक्युलरिज्म से उपर परिवारवाद की के मुद्दे को रखा है।

इसे भी पढ़ें- संघमुक्त भारत, RSS भाजपा का सुप्रीम कोर्ट-कैसे भूलेंगे नीतीश

असल वजह कुछ और

असल वजह कुछ और

महागठबंधन से अलग होकर नीतीश कुमार इस बात का संदेश देने की कोशिश कर रहे हैं कि वह भ्रष्टाचार के खिलाफ हैं और इसके खिलाफ उनकी जीरो टॉलरेंस पॉलिसी है। तेजस्वी यादव के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप हैं और उनके खिलाफ जांच चल रही है। हालांकि तेजस्वी यादव के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों को दरकिनार नहीं किया जा सकता है लेकिन यहां समझने वाली बात यह भी है कि सिर्फ नैतिकता के आधार पर राजनीति का पहिया आगे नहीं बढ़ता है, लिहाजा नीतीश के इस फैसले की असल वजह कुछ और है।

Recommended Video

Nitish kumar fails Opposition Agenda of 2019 । वनइंडिया हिंदी
कई राज्यों में अल्पसंख्यकों के खिलाफ लिंचिंग के मामले

कई राज्यों में अल्पसंख्यकों के खिलाफ लिंचिंग के मामले

तमाम भाजपा शासित राज्यों में मुसलमानों के खिलाफ लिंचिंग की घटनाएं सामने आई हैं, बिहार से सटे राज्य उत्तर प्रदेश, झारखंड में भी इस तरह की घटनाएं सामने आईं हैं। यही नहीं हरियाणा, राजस्थान, बिहार में भी मुसलमानों के साथ हिंसा की घटनाएं सामने आईं है, देश की 17 फीसदी मुस्लिम आबादी मौजूदा समय में रोष में है।

दरकिनार किए जाने से थे नाराज नीतीश

दरकिनार किए जाने से थे नाराज नीतीश


लेकिन यहां सबसे बड़ी बात यह समझनी होगी कि एनडीए के खिलाफ कांग्रेस के नेतृत्व में बन रहे महागठबंधन के नेता के तौर पर नीतीश कुमार के नाम को आगे नहीं बढ़ाया जा रहा था, नीतीश कुमार को 2019 का चेहरा भी नहीं घोषित किया गया। हाल ही में सोनिया गांधी ने 17 दलों की बैठक बुलाई थी, जिसमें राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के उम्मीदवार की घोषणा की जानी थी। गुलाम नबी आजाद ने भी सोनिया गांधी के निर्देश में नीतीश कुमार को बैठक में शामिल होने के लिए बुलाया था, लेकिन इस बात से नीतीश कुमार खफा थे, वह चाहते थे कि सोनिया गांधी खुद उन्हें न्योता दें और सीधा उनसे संपर्क स्थापित करें। बिहार में लालू की पार्टी के साथ मिलकर सरकार के दौरान नीतीश कुमार उस तरह से फैसले लेने क लिए आजाद नहीं थे, जिस तरह से वह भाजपा के समर्थन में थे।

 जमीन पर मजबूत होती भाजपा

जमीन पर मजबूत होती भाजपा


इन सब के बीच रिपोर्ट की मानें तो भाजपा बिहार में जमीनी स्तर पर अपना समर्थन बढ़ाने में जुटी थी, पार्टी के लिए मध्यम वर्ग के लोगों का समर्थन बढ़ रहा था, जाति और संप्रदाय से उपर उठकर युवा भाजपा के साथ आ रहे थे। मंडल कमीशन के आने के बाद तमाम नीची जाति के लोगों ने सवर्णों द्वारा उनपर किए गए अत्याचार को भुलाकर एक बार फिर से भाजपा की ओर उम्मीदों से देख रही है, भाजपा हिंदुत्व के मुद्दे पर हिंदुओं को वोट को अपनी ओर एकजुट करने में काफी हद तक सफल रही है। 1990 के समय पर नजर डालें तो उस वक्त आरएसएस के द्वारा चलने वाले स्कूलों में काफी बढ़ोत्तरी शुरू हो गई थी, पूरे बिहार में आरएसएस की शाखाओं की बढ़ोत्तरी हुई। बाद में यह लोग भाजपा के वोटबैंक बने और पार्टी को मजबूती दी।

 अकेले कभी नहीं हासिल कर सके हैं पूर्ण समर्थन

अकेले कभी नहीं हासिल कर सके हैं पूर्ण समर्थन

नीतीश के इस्तीफा देने के बाद भाजपा ने बिना किसी शर्त के नीतीश को समर्थन देने का ऐलान किया, निसंदेह इसके पीछे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रजामंदी थी। अगर राजद और कांग्रेस को अलग कर दें तो नीतीश कहीं नहीं ठहरते हैं, ऐसे में नीतीश के लिए यह विकल्प बिल्कुल बेहतर नहीं था कि वह चुनावी मैदान में जाएं, लिहाजा नीतीश ने भाजपा का दामन थामा। वैसे भी इतिहास पर नजर डालें तो 1995 से अकेले दम पर नीतीश कभी भी पूर्ण बहुमत हासिल करने में सफल नहीं हुए हैं।

सहज नहीं होगा अपनी शर्तें मनवाना

सहज नहीं होगा अपनी शर्तें मनवाना

इस पूरे घटनाक्रम के दूसरे पहलू पर नजर डालें तो नीतीश कुमार के भीतर यह खयाल था कि केंद्र सरकार के साथ आने से वह प्रदेश के लिए बेहतर काम कर पाएं, भाजपा-जदयू के गठबंधन में केंद्र की ओर से फंड काफी आसानी से हासिल किया जा सकता है ,लिहाजा वह बिहार के लिए बड़े और अहम फैसले और भी सहजता से ले सकते हैं। वह बिहार के लिए विशेष पैकेज सहित तमाम अहम योजनाओं के लिए फंड की मांग कर सकते हैं।

क्या गठबंधन में मिल सकेगा जैसा स्थान

क्या गठबंधन में मिल सकेगा जैसा स्थान


लेकिन यहां इस पहलू को भी दरकिनार नहीं किया जा सकता है कि क्या नीतीश कुमार एनडीए के साथ गठबंधन में अपनी शर्तों को मनवा पाएंगे, क्या वह इस स्थित में हैं कि वह अपनी शर्तों को आगे रख सकें, इस गठबंधन में नीतीश कुमार की पार्टी तुलना में काफी कमजोर स्थिति में होगी। लिहाजा इस बात से इनकार नहीं किय जा सकता है कि नीतीश कुमार ने अपने राजनीतिक कैरियर में बड़ा जोखिम लिया है, जिस तरह का कद और अधिकार उन्हें महागठबंधन की सरकार में प्राप्त था, क्या वह कद वह भाजपा के साथ गठबंधन करके हासिल कर पाएंगे, यह आने वाला समय बताएगा।

Comments
English summary
Is it biggest political risk of Nitish Kumar to shake hand with BJP. Will he get the same stature in the new alliance.
देश-दुनिया की ताज़ा ख़बरों से अपडेट रहने के लिए Oneindia Hindi के फेसबुक पेज को लाइक करें
For Daily Alerts
तुरंत पाएं न्यूज अपडेट
Enable
x
Notification Settings X
Time Settings
Done
Clear Notification X
Do you want to clear all the notifications from your inbox?
Settings X
X