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क्या धर्म की आलोचना से व्यक्ति सज़ा का हक़दार?

धमकियों के कारण लेखिका तसलीमा नसरीन को रद्द करना पड़ा था अपना औरंगाबाद दौरा.

By शकील अख़्तर - बीबीसी उर्दू, संवाददाता
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तसलीमा नसरीन
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तसलीमा नसरीन

बांग्लादेश की विवादास्पद लेखिका तसलीमा नसरीन को कुछ दिनों पहले औरंगाबाद का अपना दौरा रद्द करना पड़ा. उन्हें इस बात का डर था कि कुछ मुसलमान उन पर हमला कर सकते हैं.

उन्हें धमकियां मिल रही थीं जिसकी वज़ह से वो औरंगाबाद तो पहुंच गईं, लेकिन हवाई अड्डे से बाहर नहीं निकलीं और मुंबई वापस चली गईं.

तसलीमा नसरीन विश्व प्रसिद्ध अजंता और एलोरा की गुफ़ाओं को देखने के लिए औरंगाबाद गई थीं.

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'तसलीमा गो बैक' के नारे

उनके आने की ख़बर फ़ैलते ही ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल-मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के स्थानीय विधायक और उनके समर्थक उस होटल के सामने जमा होकर तसलीमा नसरीन के ख़िलाफ़ नारे लगाने लगे जहां वो ठहरने वाली थीं.

कुछ मुसलमान हवाई अड्डे के बाहर भी 'तसलीमा गो बैक' के नारे लगा रहे थे. पुलिस ने किसी भी हिंसा की आशंका को देखते हुए तसलीमा को हवाई अड्डे से बाहर निकलने की इजाज़त नहीं दी और उन्हें वहीं से मुंबई वापस भेज दिया.

एआईएमआईएम के समर्थकों ने कुछ साल पहले हैदराबाद में एक किताब के लोकार्पण के दौरान भी तसलीमा नसरीन पर हमला कर दिया था.

लज्जा
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लज्जा

'लज्जा' ने तसलीमा को किया मजबूर

1992 में बाबरी मस्जिद के गिराए जाने के बाद उसके बदले की कार्रवाई में बांग्लादेश में कुछ कट्टरपंथी मुसलमानों ने दर्जनों मंदिरों को तोड़ दिया था.

तसलीमा ने अपने देश यानी बांग्लादेश में हिंदुओं और बौद्धों पर होने वाले कथित ज़ुल्म के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाई थी. उन्होंने कुछ लोगों के ज़रिए इस्लाम धर्म की संकीर्ण व्याख्या किए जाने का भी जमकर विरोध किया था.

उनकी किताब 'लज्जा' पर पाबंदी लगने के बाद 1994 में उन्हें बांग्लादेश छोड़ना पड़ा. कई बरस तक अमरीका और यूरोप में रहने के बाद साल 2005 में वह भारत में आकर कोलकाता में रहने लगीं. साल 2007 में एक अख़बार ने उनकी आत्मकथा 'द्वि खंडिता' के कुछ हिस्सों को छापना शुरू किया.

इसके बाद कोलकाता के कुछ मुसलमानों ने उनके ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया. मुसलमानों के सख़्त विरोध के कारण उस समय की वाम सरकार ने उन्हें 2008 में कोलकाता छोड़कर जाने के लिए कह दिया.

तसलीमा नसरीन
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तसलीमा नसरीन

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इस्लाम को लेकर सख़्त राय

इसमें कोई शक नहीं कि तसलीमा नसरीन की इस्लाम के बारे में राय काफ़ी सख़्त है और काफ़ी हद तक उत्तेजित करने वाली है.

लेकिन क्या किसी भी धर्म की आलोचना करने और उसके मान्य विचारधारा के विपरीत कोई राय रखने से कोई व्यक्ति सज़ा का हक़दार हो जाता है.

यह एक ऐसा सवाल है जिस पर बहस होती रहती है.

यूरोप और अमरीका में इन सवालों को बहुत पहले ही हल कर लिया गया था, लेकिन भारत में धर्म के फ़ैसले अब भी भीड़तंत्र से प्रभावित होते हैं, और सरकारें कोई भी निर्णायक फ़ैसला लेने से दामन बचाती रही हैं.

तसलीमा को अपनी बात कहने का अधिकार नहीं?

पिछले कुछ महीनों में भारत में भीड़ के हिंसा करने की ख़बरें सुर्खियां बनती रही हैं.

ज़्यादातर मामलों में भीड़ का इस्तेमाल धर्म के नाम पर होता है लेकिन उसका असल मक़सद राजनीतिक लाभ लेना होता है. लेकिन किसी भी देश में जब भीड़ सड़कों पर सामूहिक हिंसा के ज़रिए आम इंसानों को डराने लगे और देश की संस्थाएं तमाशाई बनी बैठी रहें तो फिर ये लोकतांत्रिक मूल्यों में विश्वास रखने वाले लोगों के लिए चिंता का विषय है.

इस्लाम के बारे में तसलीमा नसरीन चाहे जो भी राय रखती हैं, क्या उन्हें अपनी बात कहने का अधिकार नहीं होना चाहिए.

क्या ये बात सोचने की नहीं है कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत में 21वीं सदी में किसी इंसान को अपनी विचारधारा के कारण जुनूनी भीड़ की डर से अपनी ज़िंदगी छुपकर और गुमनामी में गुज़ारनी पड़े.

तसलीमा नसरीन को निशाना बनाकर मुसलमानों के कुछ संगठन न केवल इस्लाम के बुनियादी उसूलों के ख़िलाफ़ काम कर रहे हैं बल्कि वे भारत के लोकतांत्रिक मूल्यों की भी अवहेलना कर रहे हैं.

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English summary
Is criticizing religion for the person's right to be punished?
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