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विश्लेषणः कांग्रेस का विश्वास डगमगा रहा है

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क्या कांग्रेस इतिहास की इतनी बुरी स्थिति में पहुंच गई है कि उसका आत्मविश्वास ही डगमगा गया है? क्या हैं मुख्य वजह कि आज देश की सबसे चहेती व सबसे बड़ी और मजबूत कहे जाने वाली पार्टी का भविष्य ही खतरे में है। आम जनता ने क्यों दी देश की सत्ता भाजपा के हाथों में पढ़े विश्लेषणः

राहुल का लोकसभा में हताशा भरा चेहरा लिए नींद के झोंटे लेना, सोनिया की नेता प्रतिपक्ष के पद को लेकर छटपटाहट और महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव से पहले नरायाण राणे की इस्तीफा न देने के लिए मान मनोव्वल। किसकी ओर इशारा है। क्या कांग्रेस का विश्वास डगमगा रहा है। देश की सबसे मजबूत पार्टी कही जाने वाली कांग्रेस में धीरे-धीरे एक डर घर कर रहा है। इसके दो कारण हैं पहला, अपने किए काम को समाज में सही रूप से मार्केटिंग या कहें प्रचारित-प्रसारित करने में विफल रहना, दूसरा सबसे बड़ा कारण हैं घोटाले। यही दो कारण ही कहे जा सकते हैं कि जिसकी वजह से देश की सत्ता आज भाजपा के हाथों में है।

लेकिन ऐसा पहली बार तो नहीं, कि कांग्रेस को हार मिली हो। लेकिन इतना है कि इस बार की कांग्रेस की हार और कई वर्षों से विपक्षी पार्टी रही भाजपा की जीत ऐतिहासिक पन्नों पर अपनी पहचान छोड़ गई है। भाजापा अपनी जीत से कभी इतना बड़ा इतिहास नहीं रच पाई, जो उसने नरेंद्र मोदी को आगे कर हाल ही सम्पन्न हुए लोकसभा चुनाव में रचा। इतनी बुरी हार ने कांग्रेस को इतनी बद्तर स्थिति की ओर धकेल दिया है कि हताशा कांग्रेस के हर नेता के चेहरे पर व झुंझलाहाट भरे शब्दों में नजर आ रही है।

देश के भावी प्रधानमंत्री के रूप में कांग्रेस का मुख्य चेहरा रहे राहुल गांधी जिस तरह लोकसभा में सोते देखे गए। उससे राहुल का आत्मविश्वास व संसद की गतिविधियों में उनका घटता रुझान साफ तौर पर सामने आ गया। वहीं कांग्रेस के वरिष्ठ व बड़बोले नेता दिग्विजय सिंह ने हार का ठीकरा चुपके-चुपके व अचानक से जिस तरह राहुल पर फोड़ते हुए राहुल को नाकाम शासक बताया, उससे कांग्रेस में चल रही उठा-पटक जागजाहिर हुई है। इससे यह भी पता चला है कि राहुल गांधी का विरोध जितना कम बाहर दिख रहा है उससे कहीं ज्यादा पार्टी के अंदर हो रहा है।

यही नहीं, कांग्रेस सहयोगियों का भी रुख बदला-बदला सा है। इसका एक ताजा उदाहरण है कि महाराष्ट्र में कांग्रेस की सहयोगी राष्ट्रवादी पार्टी में कांग्रेस के साथ चुनाव लड़ने पर घबराहट है। एनसीपी पार्टी के ही शरद पवार साथ चुनाव लड़ना चाहते हैं तो पार्टी के चीफ अजीत पवार अकेले ही पार्टी को चुनावी मैदान में उतारना चाहते हैं।

दरअसल, यह घबराहट इस प्रश्न को लेकर है कि अगर साथ चुनाव लड़ा तो जीतेंगे या मोदी की हवा उन्हें भी ले उड़ेगी। घटते आत्मविश्वास से कांग्रेस आम जनता का विश्वास और भी खोती जा रही है। जिसको भांपने वाले सहयोगी दल संशय में हैं कि कांग्रेस का साथ दें या नहीं।

खैर, किसी पार्टी में यदि विपरीत परिस्थितियां होती हैं तो वही समय होता है कि कड़े सांगठनिक निर्णय लिए जाएं। कांग्रेस इस ओर आगे बढ़ती है या नहीं। यह तो भविष्य का सवाल है। लेकिन कांग्रेस को अपनी रणनीतियों पर मंथन कर ऐसे निर्णयाक कदम उठाने होंगे जो पीड़ित आम तबके का विश्वास जीता सकें, तभी शायद कांग्रेंस अपना अत्मविश्वास वापस पाने में भी सफल हो पाए।

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English summary
Is confidence of Congress declining? This is the question that revealed actual reason of defeat.
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