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चुनाव करीब हैं न..पर, बुंदेलखंड कहीं नहीं दिख रहा, आपको दिखा क्या ?

By हिमांशु तिवारी आत्मीय
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लखनऊ। एक ऐसा सवाल जो सूबे में सियासी करवटों को कब किस ओर मोड़ दे पता नहीं। राजनीति के लिए मुद्दा तैयार करने की जरूरत नहीं। आत्महत्या करने वाले किसान, मुआव्जा पाने वाले किसान, मुआव्जे में अट्ठाइस से तैतीस रूपये पाने वाले किसान, वाटर ट्रेन, योजनाएं, योजनाओं पर जमती धूल।

bundelkhand

कुलमिलाकर कहने का आशय इस बात से है कि राजनीति करनी हो तो मुद्दे ही मुद्दे। पर मदद मुद्दों जैसी किस्मत लेकर नहीं पैदा होती। जमीनें बंजर होती हैं, और बंजर होती जमीनों पर सियासत। सूबे में मौजूदा सरकारों से लेकर, विपक्ष तक, केंद्र सरकारें भी स्कीमों की लंबी चौड़ी फेहरिस्त मीडिया के जरिए लोगों के सामने रखकर खुद को हिमायती बताती हैं, एक दूसरे पर तंज कसती हैं। लेकिन फिलवक्त ये सबकुछ सोया हुआ है। इसीलिए लोगों के जहन में सवाल जागने लगे हैं कि चुनाव करीब हैं पर चुनावों में बुंदेलखंड खो गया है।

दयाशंकर मामले के बाद बसपा में पसरा सन्नाटा

बसपा के लिए बुंदेलखंड को संजीवनी माना जाता रहा है। लेकिन फिलवक्त कुन्बा बिखर चुका है। बसपा के कद्दावर नेता माने जाने वाले बाबूसिंह कुशवाहा, दद्दू प्रसाद अब बसपा को बुंदेलखंड में संभालने के लिए पार्टी में मौजूद नहीं हैं। वहीं नसीमुद्दीन सिद्दीकी से लोगों का मोहभंग हो चुका है। दूसरी ओर पार्टी 19 विधानसभा सीटों पर प्रभारियों की घोषणा पहले ही कर चुकी है। लेकिन दयाशंकर विवाद के बाद से बुंदेलखंड में बसपा की ओर से ज्यादा सक्रियता नहीं देखने को मिल रही है। हां ये जरूर माना जा रहा है कि जिस तरह से 2011 में मायावती ने अलग से बुंदेलखंड राज्य समेत यूपी को चार राज्यों को बांटने का प्रस्ताव केंद्र के पास भेजा था, उस पर माया अपनी सियासी प्यादों का आगे बढ़ाते हुए बुंदेलखंड के लोगों को विकास का नया ख्वाब फिर से बनाने की कोशिश कर रही हों।

चाचा-भतीजे में बुंदेलखंड को भूल गयी क्या सपा ?

सपा के कद्दावर नेता और प्रदेश सरकार में मंत्री शिवपाल यादव और सूबे के मुखिया अखिलेश के बीच कई दिनों से तनातनी की खबरें आईं। पर, इस बीच मूल मुद्दे के रूप में बुंदेलखंड कहीं पिछड़ा हुआ नजर आ रहा है। बहरहाल सपा की ओर से रणनीति काफी पहले ही रची जा चुकी है। बुंदेलखंड में समाजवादी पार्टी अति पिछड़ा कार्ड खेलकर विपक्षियों को पटखनी देने की तैयारियों में जुटी हुई थी। इसी के मद्देनजर पार्टी ने फतेहपुर से विशंभर निषाद को राज्यसभा भेजा। पर जनता का कहना है कि मौजूदा वक्त में सपा बुंदेलखंड की ओर खासा ध्यान नहीं दे रही।

हाशिए पर सरकार का कामकाज

वन इंडिया के साथ बातचीत में लोगों ने कई मुद्दे गिनवाएं। उनमें से कुछ प्रमुख बिंदु :

1- 12, 000 की मुस्लिम आबादी वाले मौदहा ब्लॉक के गुसियारी गांव में कहने को तो करीबन 100 हैंडपंप हैं लेकिन ज्यादातर खराब पड़े हुए हैं।

2- मनरेगा के तहत सरकार ने किसानों को 150 दिनों का रोजगार देने की घोषणा की, लेकिन ग्राम्य विकास विभाग की रिपोर्ट में इसकी पूरी पोलपट्टी खोलकर रख दी गई।

3- बांदा में मनरेगा के तहत पंजीकृत 58,000 परिवारों में से सिर्फ 1,500 को 100 दिनों का काम मिल सका। सवाल साफ है कि 56,500 परिवारों का क्या ? उनका भरणपोषण कैसे हो ?

4- बांदा के कई तालाब गंदगी की मार झेल रहे हैं । नवाब टैंक समेत कई अन्य जिन्हें लोगों के लिए बनाया गया। पर, उनकी ओर देखना भी कोई मुनासिब नहीं समझता।

5- बांदा जैसा क्षेत्र जहां बिजली की भारी कटौती होती है। लोगों के मुताबिक राजधानी दूर है तो कौन जानना सही समझे कि हम किन हालातों में जीने को मजबूर हैं।

''भाजपा और कांग्रेस की राजनीति को भी हमने देखा है''

स्थानीय लोगों का कहना है कि हमने सभी की राजनीति को करीब से देखा है। भाजपा और कांग्रेस की भी। वादे होते हैं, विकास की बात होती है पर विकास कभी भी जमीन पर उतरकर नहीं आ पाया। क्या प्रदेश में भाजपा की सरकार नहीं रही, या कांग्रेस की इस बात को झुठला दिया जाए कि 60 सालों तक केंद्र में राज करती रही। क्या सरकारों को बुदेलखंड ने नहीं चुना। जो यहां के लोगों के साथ इस तरह का दोहरा रवैया अपनाया जाता है। उमा भारती हों या फिर निरंजन ज्योति मौका दिया पर इन्होंने महज वादों के इतर क्या काम किया। फलस्वरूप इनके द्वारा छोड़ी गईं सीटों पर ही भाजपा को हार का सामना करना पड़ा। हम विकास चाहते हैं...हर बार इसी उम्मीद में सरकार चुनते हैं पर बदले में हमें धोखे के इतर कुछ नहीं मिलता।

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English summary
No Political Parties has raise Bundalkhand Issue in Up Asembly election. BSP, SP BJP and Congress all are fighting each other but no one care about the poor farmers in Bundalkhand.
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