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भारतीय कूटनीति ने बढ़ाई पाकिस्तान की बेचैनी

पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अलग-थलग करने के लिए भारत ने कुटनीतिक चाल चलना आरंभ कर दिया है, जो पाकिस्तान के लिए भारी पड़ सकता है।

By राजीव रंजन तिवारी
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नई दिल्ली। सीमा पर आए दिन भारत और पाकिस्तान के बीच तकरार की खबरें मिल रही है। अक्सर दोनों ओर से गोलीबारी की सूचनाएं मिलती रहती हैं। इन सबके बावजूद पाक अधिकृत कश्मीर से आतंकी वारदातें की खबरें सबको परेशान करती हैं। यद्यपि इनसे निपटने के लिए भारतीय सेना पाकिस्तानी सैनिकों को जवाब दे रही है, फिर भी पाकिस्तान अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहा है। जानकार बताते हैं कि पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अलग-थलग करने के लिए भारत ने कुटनीतिक चाल चलना आरंभ कर दिया है, जो पाकिस्तान के लिए भारी पड़ सकता है। इस हालात को महसूस करते हुए पाकिस्तानी राजनयिकों में बेचैनी भी देखी जा रही है।

भारतीय कूटनीति ने बढ़ाई पाकिस्तान की बेचैनी

दरअसल, अफगानिस्तान में भारत के बढ़ते हुए प्रभाव से पाकिस्तान चिंता में है। स्वाभाविक है, अफगानिस्तान में अपना प्रभुत्व जमाने के लिए पाकिस्तान चीन की मदद लेगा। दिलचस्प यह है कि भारत का अफगानिस्तान में बढ़ते प्रभाव तथा पाकिस्तान द्वारा अफगानिस्तान के विरुद्ध चीन से ली जाने वाली कथित मदद की आशंका की चर्चा अमेरिका तक पहुंच गई है। इस संबंध में अमेरिकी इंटेलिजेंस ने संसद को जानकारी भी दी है। बताते हैं कि सीनेट की आर्म्ड सर्विसेज कमिटी में अफगान को लेकर हुई हालिया सुनवाई के दौरान यूएस इंटेलिजेंस प्रमुखों ने युद्ध से बदहाल अफगान की स्थिति का आकलन किया और काबुल में पाक के हित पर चर्चा की।

गौरतलब है कि नवम्बर 2016 में ही भारत और अफगानिस्तान ने स्पष्ट कर दिया था कि दोनों देश हार्ट ऑफ एशिया सम्मेलन में आतंकवाद का मुद्दा प्रमुखता से उठाएंगे। दोनों देश इस बात को काफी समय से कह रहे हैं कि वह पाकिस्तान की ओर से फैलाए जा रहे आतंकवाद के शिकार हैं। नगरोटा में अटैक के बाद भारत और अफगान हार्ट ऑफ एशिया सम्मेलन में पाकिस्तान को घेरने को घेरने का प्रयास भी किया। हार्ट ऑफ एशिया सम्मेलन 3-4 दिसंबर 2016 को अमृतसर में हुआ था। इस सम्मेलन का मुख्य फोकस अफगानिस्तान का विकास था, लेकिन नगरोटा में अटैक के बाद इसमें आतंकवाद का मुद्दा हावी रहा। इतना ही नहीं सम्मेलन से पहले ही भारतीय विदेश मंत्रालय के अधिकारियों ने भी यह स्पष्ट कर दिया था कि सम्मेलन में आतंकवाद पर चर्चा होगी और इस बाबत पाकिस्तान का जिक्र होगा। तब भारत में अफगान के राजदूत शैदा अब्दाली ने कहा था कि हमारे देश ने काउंटर टेरर फ्रेमवर्क तैयार किया है और हमें उम्मीद है कि हार्ट ऑफ एशिया में इसे स्वीकार कर लिया जाएगा।

अफगानिस्तान का मानना है कि इस फ्रेमवर्क में इस तरह के प्रावधान हैं जिनसे सीमा पार से फैलाए जा रहे आतंकवाद पर रोक लगाने में मदद मिलेगी। हार्ट ऑफ एशिया सम्मेलन में वित्त मंत्री ने भारतीय प्रतिनिधि मंडल का नेतृत्व किया। सम्मेलन का औपचारिक उद्घाटन पीएम नरेंद्र मोदी और अफगानी राष्ट्रपति अशरफ गनी ने 4 दिसंबर 2016 को किया था। अफगान हार्ट ऑफ एशिया का स्थायी अध्यक्ष है जबकि भारत मेजबान होने के नाते इस बार सह अध्यक्ष था। करीब 40 देशों के इस सम्मेलन में पाकिस्तान की ओर से सरताज अजीज शामिल हुए।

भारतीय कूटनीति ने बढ़ाई पाकिस्तान की बेचैनी

अमेरिकी खुफिया विभाग के हवाले से यह जानकारी मिली है कि पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान अफगान में भारत के बढ़ते प्रभाव से परेशान है। अधिकारियों ने अमेरिकी कांग्रेस को बताया कि पाकिस्तान अफगानिस्तान के अंदर भारत का प्रभाव नहीं बढ़ने देना चाहता है। और तो और, वह अपनी पश्चिमी सीमा पर भारत के बढ़ते प्रभाव के मद्देनजर चीन से अपनी दोस्ती गाढ़ी करने में भी जुट सकता है। हाल ही में अमेरिकी कांग्रेस के अंदर अफगानिस्तान में हुई जंग को लेकर एक बैठक हुई। इसमें अफगानिस्तान और भारत की बढ़ती दोस्ती को लेकर पाकिस्तान की चिंता की चर्चा हुई। वहीं ट्रंप सरकार अफगानिस्तान को लेकर नई नीति तय कर रहा है। बताते हैं कि हाल ही में रिपब्लिकन कांग्रेसमैन ऐडम किंजिंगर ने सुझाव दिया था कि अमेरिका पाकिस्तान में कथित आतंकी ठिकानों पर हवाई हमले दोबारा शुरू करे। मामले पर नजर रखने वालों का मानना है कि अगर आतंकी अफगानिस्तान के अंदर अमेरिकी सेना को निशाना बनाने की कोशिश करते हैं, तो ट्रंप प्रशासन उनके खिलाफ सैन्य कार्रवाई शुरू कर सकता है।

अफगान पर सेनेट आर्म्ड सर्विसेज कमिटी की हाल ही में हुई बैठक में अमेरिकी खुफिया विभाग के वरिष्ठ अफसरों ने इस संबंध में समिति को जानकारी दी। इसमें से अधिकतर चर्चा पाकिस्तान पर हुई। अमेरिकी नैशनल इंटेलिजेंस डायरेक्टर डैन कोट्स ने कहा कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अलग-थलग पड़ने के बाद पाकिस्तान परेशान है और अपने हालात की समीक्षा वह भारत के बढ़ते अंतरराष्ट्रीय रसूख के नजरिये से कर रहा है। विदेशों में भारत की बढ़ती भूमिका और अमेरिका से बेहतर होते रिश्ते भी पाकिस्तान को परेशान कर रहे हैं। दरअसल, पाकिस्तान चाहता है कि अफगान में शांति हो, लेकिन इसके लिए वह भारत और अफगान के करीब आने की कीमत नहीं चुकाना चाहता।

भारत और अफगानिस्तान की निकटता से पाकिस्तान कितना परेशान है, इसका अंदाजा पाकिस्तान के आंतरिक मंत्री चौधरी निसार अली खान के इस बयान से लगाया जा सकता है, उन्होंने 21 मई को कहा था। खान अफगानिस्तान को चेतावनी दे रहे थे, लेकिन वह भारत का जिक्र करना नहीं भूले। चौधरी ने अफगानिस्तान को चेताया कि वह भारत की बोली न बोले। विदित है कि पिछले कुछ समय से पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच तनाव काफी बढ़ गया है। भारत की ही तरह अफगानिस्तान का भी आरोप है कि आतंकवादी पाकिस्तानी जमीन का इस्तेमाल कर उनकी सीमा में घुसपैठ करते हैं और आतंकी गतिविधियों को अंजाम देते हैं। दोनों देशों के बीच सीमा पर भी काफी टकराव की स्थिति है।

भारतीय कूटनीति ने बढ़ाई पाकिस्तान की बेचैनी

अफगानी बॉर्डर फोर्स की तरफ से बलूचिस्तान के चमन एरिया में फायरिंग की गई थी, जिसमें पाकिस्तानी सुरक्षा बल के कुछ सैनिक मारे गए थे। इसके जवाब में पाकिस्तान ने एक कार्रवार्इ कर 50 अफगानी सैनिकों को मारने का दावा किया था। इससे पहले पाकिस्तानी सेना ने आरोप लगया था कि लाल शाहबाज कलंदर दरगाह पर हुए आत्मघाती हमले के पीछे अफगानिस्तान के आतंकियों का हाथ था। तब बताया गया था कि इसी को मद्देनजर रखते हुए पाकिस्तान ने अफगान सीमा के अंदर बने उग्रवादी ठिकानों पर हमला भी किया। खैबर-पख्तूनख्वा के वारसक में एक पासिंग आउट परेड को संबोधित करते हुए खान ने कहा कि अगर अफगानिस्तान भारत की बोली में बात करना जारी रखता है, तो पाकिस्तान उसपर ध्यान नहीं देगा। मालूम हो कि भारत और अफगानिस्तान दोनों ही पाकिस्तान पर आतंकवाद को प्रश्रय देने का आरोप लगाते आए हैं। अफगानिस्तान का आरोप है कि उसके यहां गड़बड़ी पैदा करने वाले आतंकवादियों के लिए पाकिस्तान सुरक्षित पनाहगाह बन गया है।

उधर, अमेरिका में रिपब्लिकन सांसद ऐडम किंगजिंगर ने हाल ही में पाकिस्तान में आतंकी ठिकानों पर हवाई हमले फिर से शुरू करने का सुझाव दिया था। जानकारों का कहना है कि अगर आतंकी अफगान में अमेरिकी सेना और सैन्य प्रतिष्ठानों को निशाना बनाएंगे तो अमेरिका पाकिस्तान में आतंकी ठिकानों पर फिर बमबारी कर सकता है। सीआईए और एफबीआई समेत दर्जनों जासूसी एजेंसियों की टीम का नेतृत्व करने वाली नैशनल इंटेलिजेंस डायरेक्टर डैन कोट्स ने कहा कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अलग-थलग पड़ने पर पाकिस्तान चिंतित है और भारत के बढ़ते हुए कद की नजर से अपनी स्थिति को देखता है।

एक पाकिस्तानी अखबार ने कोट्स का हवाला देते हुए लिखा है कि पाकिस्तान अपनी स्थिति को मजबूत करने के लिए चीन की मदद ले सकता है जिससे पेइचिंग को हिंद महासागर क्षेत्र में अपना प्रभाव बढ़ाने में मदद मिलेगी। कोट्स ने कहा कि पाकिस्तान में आतंकवादियों पर लगाम कसने में इस्लामाबाद फेल हो गया है और इस असफलता के कारण 'ये आतंकी गुट इस क्षेत्र में अमेरिका के हित पर खतरा पैदा कर रहे हैं और भारत एवं अफगानिस्तान में हमले की योजना बना रहे हैं और उसे अंजाम दे रहे हैं। बहरहाल, कहा जा रहा है कि अफगानिस्तान के साथ मिलकर भारत ने जो कुटनीतिक खेल खेला है, उस खेल से पाकिस्तान सकते में है। यही वजह है कि पाकिस्तानी राजनयिकों को यह समझ में नहीं आ रहा है कि अब क्या किया जाए?

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English summary
Indian diplomacy has raised Pakistan's discomfort
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