मोदी के इशारे पर पाक को चेतावनी, लखवी हुआ रिहा तो चुकानी होगी कीमत!
नई
दिल्ली।
गुरुवार
को
जैसे
ही
यह
खबर
आई
कि
पाकिस्तान
की
कोर्ट
ने
26/11
के
मुख्य
आरोपी,
जकी-उर-रहमान
लखवी
को
जमानत
दे
दी
है,
देश
के
हर
कोने
से
इस
फैसले
के
खिलाफ
आवाज
उठने
लगीं।
शुक्रवार को जब यह खबर आई कि पाक में लखवी पर एक नया केस दर्ज किया गया है और अब वह तीन माह जेल में ही रहेगा, तो लोगों ने कुछ देर को चैन की सांस ली।
लोकसभा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस फैसले पर अपना बयान दिया। सूत्रों की मानें तो पाक कोर्ट के इस फैसले के खिलाफ भारत की ओर से पाक को की गई एक फोन कॉल ने लखवी का पूरा खेल बिगाड़ दिया था।
तो क्या यह मान लिया जाए कि संसद में जवाब देने से पहले मोदी के इशारे पर पाक को कड़ी चेतावनी दी गई थी। जो जानकारी आ रही है, उससे तो कम से कम यही लगता है।
जेल में हो लखवी नहीं तो अदा करनी होगी कीमत
सूत्रों की ओर से जो जानकारी दी गई है, उसके मुताबिक भारत के एक सीनियर ऑफिसर की ओर से पाक को कड़ी चेतावनी देने वाली फोन कॉल की गई थी। भारत के इस अधिकारी की ओर से जो फोन कॉल पाक को की गई, उसमें पाक को कड़े शब्दों में चेतावनी दी गई थी।
इस चेतावनी में भारत की ओर से साफ कर दिया गया था कि अगर पाक ने लखवी को जेल में नहीं डाला तो उसे एक बड़ी कीमत चुकानी होगी। इस फोन कॉल के बाद पाक को अपना फैसला बदलने के लिए मजबूर होना पड़ गया।
पाक का बेपरवाह रवैया
26/11 मुंबई हमलों के बाद भारत की ओर से पाक को कई बार इस बात के लिए अनुरोध किया जा चुका है कि वह इन हमलों के मास्टरमाइंड को भारत को सौपें। पाक ने हर बार ही भारत के अनुरोध को खारिज कर दिया और इसे साधारण तरीके से लेकर पूरी तरह से नजरअंदाज कर दिया।
वहीं पाक ने इस बात की भी कोशिश नहीं की कि उसके यहां जो भी दोषी हैं, उन पर केस सही तरीके से चलाया जाए।
इन हमलों के मास्टरमाइंड को भारत को सौंपे जाने के लिए कई बार भारत की ओर से अपील की गई लेकिन नतीजा वही ढाक के तीन पात। पाक ने हर बार भारत की अपील को सिरे से नजरअंदाज कर दिया। पाक ने यहां तक कि अमेरिका की ओर से उसे दी गई चेतावनी पर भी कोई ध्यान नहीं दिया।
बिगड़ जाता घाटी का माहौल
भारत जो पहले से ही कश्मीर को लेकर खासा चिंतित है, लखवी की जमानत की खबर को सुनकर उसकी चिंताएं दोगुनी हो गईं। भारत को चिंता इस बात की थी अगर लखवी जेल से बाहर आ गया तो फिर घाटी में लश्कर-ए-तैयबा की गतिविधियां और बढ़ जाएंगी।
लखवी की रिहाई की बात को लेकर भारतीय एजेंसियों में काफी विचार-विमर्श किया गया। अधिकारी इस बात पर एकमत थे कि इस बार सिर्फ डिप्लोमेसी से काम नहीं बनेगा। पाक ने जिस तरह से इस पूरे केस को डील किया है, वह भी नाकाफी है।
एजेंसियों ने खुद लिया फैसला
साधारण तौर पर इस तरह के मसलों पर एजेंसियां सरकार को जानकारी देते हैं और फिर सरकार डिप्लोमैटिक तरीके से पूरे मसले को देखती है। लेकिन इस बार ऐसा कुछ नहीं था और एजेंसियों ने खुद ही फैसला लिया कि वह पाक को एक कड़ी चेतावनी भेजेंगी।
फिर एक सीनियर ऑफिसर की ओर से पाक को कड़ा मैसेज दिया गया। अधिकारी के तल्ख लहजे ने इस मैसेज को और कड़ा बना दिया। इसकी वजह से पाक को कड़ा कदम उठाना पड़ गया। भारत की ओर से पाक को साफ कर दिया गया कि या तो वह लखवी को जेल में डाले या फिर एक कड़ी कार्रवाई के लिए तैयार रहे।
नजरअंदाज
नहीं
कर
सका
पाक
वहीं
दूसरी
ओर
पाक
पहले
से
ही
कई
तरह
की
मुसीबतों
का
सामना
कर
रहा
है।
पेशावर
में
हुए
हमले
के
बाद
पाक
ने
आतंकी
संगठन
तहरीक-ए-तालिबान
का
एक
खौफनाक
रूप
देखा
और
ऐसे
में
वह
लखवी
की
रिहाई
को
बर्दाश्त
करने
की
हालत
में
नहीं
था।
भारत
की
ओर
से
पाक
को
इस
बारे
में
बताया
गया
कि
अगर
लखवी
रिहा
हुआ
तो
फिर
पाक
आतंकवाद
के
खिलाफ
लड़ाई
में
अकेला
पड़
जाएगा।