पाक को जाने वाली सिंधु नदी के पानी को रोकने के लिए भारत ने शुरू किया काम
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रिंसिपल सेक्रेटरी की अध्यक्षता में हुई टास्क फोर्स की पहली मीटिंग हुई। मीटिंग में सिंधु नदी के पानी को पूरी तरह से प्रयोग करने पर हुआ विचार। जनवरी में अगली मीटिंग।
नई दिल्ली। भारत ने पाकिस्तान की ओर जाने वाली सिंधु नदी के पानी को पूरी तरह से प्रयोग करने के लिए प्लान पर काम करना शुरू कर दिया है। शुक्रवार को इस मुद्दे के लिए बनाई गई टास्क फोर्स की पहली मीटिंग हुई और इस दौरान पंजाब और जम्मू कश्मीर में सिंधु नदी पर बनने वाले बांध के काम में तेजी लाने पर भी चर्चा की गई।
क्यों हुई यह मीटिंग
एक इंग्लिश डेली टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक मीटिंग की अध्यक्षता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रिंसिपल सेक्रेटरी नृपेंद्र मिश्रा ने की। इस मीटिंग के दौरान जम्मू कश्मीर में बनने वाले हाइड्रोपावर प्लांट के अलावा सिंधु, झेलम और चेनाब नदी के पानी के अधिकतम प्रयोग पर विचार किया गया। इसके अलावा बड़े तालाब और नहरें बनाने पर भी विचार किया गया। टास्क फोर्स की मीटिंग में शामिल एक अधिकारी ने बताया कि क्योंकि सिंधु की सहायक नदियां जैसे सतलज, रावी और ब्यास पर इसका असर पड़ सकता है। इसलिए ही मीटिंग में राज्य के चीफ सेक्रेटरी ने भी शिरकत की। इस अधिकारी के मुताबिक इस मीटिंग का मकसद भारत का सिंधु नदी के पानी के प्रयोग करने के इरादे को मजबूती के साथ दिखाना था। साथ ही पंजाब और जम्मू कश्मीर को प्रक्रिया में तेजी लाने के लिए मनाना था।
क्या
है
दोनों
देशों
के
बीच
पानी
का
समझौता
उरी आतंकी हमले के बाद से भारत और पाकिस्तान के बीच काफी तनाव है। इस हमले के बाद से ही पाक के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की बातें हो रही हैं और इनमें से एक है सिंधु नदी के पानी को रोकना। पीएम मोदी ने 27 सितंबर को दोनों देशों के बीच हुई संधि की समीक्षा की थी। भारत और पाकिस्तान के बीच सिंधु जल समझौता 19 सितंबर 1960 को हुआ था। इस समझौते के तहत रावी, व्यास और सतलज नदी का पानी भारत को मिला तो सिंधु, झेलम और चेनाब का 80 प्रतिशत पानी पाकिस्तान को मिला। भारत का कहना है कि उसने अब तक 20 प्रतिशत का पानी भी प्रयोग नहीं किया है। इस समझौते के तहत भारत पश्चिमी नदियों के पानी को भी अपने प्रयोग के लिए रोक सकता है। पाक पर दबाव बनाने के तहत भारत ने इस तरफ गंभीरता से सोचना शुरू किया है।