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महत्वपूर्ण क्षेत्रों और आम उपभोक्ताओं पर जीएसटी के त्वरित प्रभाव

भारतीय अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण चीजों पर जीएसटी के प्रभावों पर बात करने का यह एकदम सही समय है। हम यहां इस बात पर भी चर्चा करेंगे कि कैसे एक आम उपभोक्ता पर जीएसटी का असर पड़ेगा।

By Ajay Mohan
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वस्तु एवं सेवा कर यानी गुड्स एवं सर्विस टैक्स, यानी जीएसटी, 1 जुलाई से पूरे भारत में लागू हो चुका है। इसका मकसद है एक भारत एक कर। उसके साथ समस्त भारत में समान बाजार। इसके चलते उपभोक्ताओं को वस्तुएं और सेवाएं अच्छे दामों में प्राप्त हो सकेंगी, क्योंकि इसके आने से टेढ़े मेड़े रास्ते बंद हो जायेंगे और आसान और सहज तरीके से उत्पादों की आपूर्ति हो सकेगी। भारतीय अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण चीजों पर जीएसटी के प्रभावों पर बात करने का यह एकदम सही समय है।

GST

हम यहां इस बात पर भी चर्चा करेंगे कि कैसे एक आम उपभोक्ता पर जीएसटी का असर पड़ेगा:

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बैंकिंग, वित्तीय सेवाओं और इंश्‍योरेंस:

बैंकिंग, वित्तीय सेवाएं और इंश्‍योरेंस अथवा बैंकिंग, फाइनेंशियल सर्विसेस एंड इंश्‍योरेंस (बीएफएसआई) पर जीएसटी के दो प्रकार से प्रभाव पड़ सकते हैं:

1. जीएसटी दरें वर्तमान सेवा कर की तुलना में अधिक हैं
2. सभी बैंकों और गैर-बैंक वित्तीय कंपनियों के लिये सभी राज्यों में रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया

वर्तमान परिस्थिति:

बैंकिंग सेवाओं का शुल्क वर्तमान में 15% है। इन सेवाओं में ऋण के लिये आवेदन, डिमांड ड्राफ्ट, विदेशी मुद्रा विनिमय, आदि शामिल हैं। यही दर इंश्‍योरेंस उत्पादों पर भी लागू होती है। टर्म और हेल्थ इंश्‍योरेंस में पूरे प्रीमियम पर वर्तमान में 15% कर लिया जाता है। यूनिट लिंक्ड इंवेस्टमेंट प्लान (यूलिप) में निवेश राशि को हटाकर प्रीमियम पर 15% कर है।

जीएसटी का प्रभाव:

इंश्‍योरेंस और बैंकिंग दोनों क्षेत्रों में वर्तमान दर 15% है, जो जल्‍द ही 18% हो जायेगी। बैंक विभिन्न प्रक्रियाओं के लिये आपसे 3% अधिक कर लेगा। यानी प्रत्येक 1000 रुपए की धनराशि से जुड़ी प्रक्रिया पर आपको 180 रुपए बतौर जीएसटी देने होंगे। और कमोडिटी जैसे गोल्‍ड और सिल्‍वर में जीएसटी दरों में कुछ छूट रखी गई है, वह दरें उन पर लागू होंगी। कुल मिलाकर वित्तीय क्षेत्रों व बैंकिंग सेक्टर में कोई भी उत्पाद या सेवा लेते समय आपको अधिक कर देना होगा।

उपभोक्ता पर प्रभाव:

जीएसटी के आने के बाद अब पॉलिसी-धारकों को अधिक प्रीमियम देना होगा। विशेषज्ञों की मानें तो इससे व्यापार की सक्रिय पूंजी पर प्रभाव पड़ेगा। इससे व्‍यापार में नकदी की कमी हो सकती है। हालांकि आप सक्रिय पूंजी के लिये व्‍यापार ऋण के बारे में सोच सकते हैं। इन ऋणों को आप आकर्षक दरों पर आसान किश्‍तों पर चुका सकते हैं, वो भी इसकी समय सीमा भी आपके मन मुताबिक हो सकती है। बिजनेस करने वाले व्‍यापारी बिजनेस अकाउंट में उन सभी सेवाओं के लिये कर समंजन भी प्राप्त कर सकते हैं।

कृषि

भारतीय जीडीपी में कृषि क्षेत्र का सबसे अधिक योगदान है। इस क्षेत्र में सबसे बड़ी समसस्या यह है कि वस्तुओं को एक राज्य से दूसरे राज्य में कैसे ले जायें। संभवत: जीएसटी में इस समस्या का समाधान रखा गया है, जिसके अंतर्गत कृषि उत्पादों के लिये एक समान बाजार तैयार किया जायेगा।

वर्तमान परिस्थिति:

वर्तमान कर व्यवस्‍था के अंतर्गत कृषि उत्पादों पर अलग-अलग प्रकार के अप्रत्यक्ष कर लगाये जाते हैं। जैसे कि सेवा कर, एक्‍साइज ड्यूटी और वैल्‍यू एडेड टैक्स (वैट)। सभी खाद्य वस्तुओं पर राज्य स्तर का वैट लागू होता है। उदाहरण के लिये अनाज और बीज पर राज्य स्तर पर 4% वैट लगता है। हालांकि कुछ असंसाधित खाद्य वस्तुओं पर वैट नहीं लगता है, जैसे कि फल और सब्जियां, मीट और अंडे। इसी प्रकार गेहूं, चावल, आटा, नमक, चीनी आदि पर केंद्रीय वैट नहीं लगता है।

जीएसटी का प्रभाव:

माना जा रहा है कि जीएसटी कृषि उत्पादों के लिये भारत का पहला राष्‍ट्रीय बजार तैयार करने जा रहा है, जिसमें सकारात्मक ऊर्जा दिखाई दे रही है। हालांकि जीएसटी स्लैब के अंतर्गत अलग-अलग खाद्य उत्पादों पर लगने वाले विभिन्न करों से जुड़े कई सवाल अब भी अनुत्तरित हैं, जिसके जवाब आने चाहिये। उदाहरण के लिये ताज़ा दूध पर कोई जीएसटी नहीं है, जबकि मलाई रहित दूध पर 5% जीएसटी लगता है और संघनित दूध 12% जीएसटी के अंतर्गत आता है। जीएसटी के साथ कुछ कृषि तत्वों पर अधिक कर लगेंगे। उदाहरण के तौर पर कृषि के लिये सबसे महत्वपूर्ण चीज खाद, पर जहां पहले 6% (5%वैट + 1% एक्‍साइज) कर लगता था अब जीएसटी के अंतर्गत उपभोक्ता को 12% कर देना होगा।

उपभोक्ता पर प्रभाव:

कृषि उत्पादों की कीमतों में इजाफा कुछ समय के लिये असहज होगा। यद्यपि एक समान कृषि बाजार के बनने के बाद किसानों को इसका लंबी अवधि तक फायदा मिलेगा।

एफएमसीजी

फास्ट-मूविंग कंज्यूमर गुड्स (एफएमसीजी) क्षेत्र उन क्षेत्रों में से एक है, जिसे जीएसटी का सबसे अधिक लाभ मिलने वाला है, क्योंकि वस्तुओं को एक जगह से दूसरी जगह ले जाना अब सस्ता हो जायेगा। आगे सुव्यवस्थित सप्‍लाई चेन मैनेजमेंट के साथ खर्च की गई धनराशि पर करों की गिरती हुई दरें लगने से एफएमसीजी उत्पादों का कंपनियों पर भार कम होगा और लंबे अंतराल में देखें तो अंत में आम उपभोक्ता को इसका बड़ा लाभ मिलेगा।

वर्तमान परिस्थिति:

एफएमसीजी क्षेत्र को वर्तमान में एक्‍साइज ड्यूटी, सर्विस टैक्स, वैट और सेंट्रल सेल्स टैक्स देना होता है। एफएमसीजी पर वर्तमान में 22 से 24 प्रतिशत तक कर हैं।

जीएसटी का प्रभाव:

जीएसटी के लागू होने पर एफएमसीजी उद्योग के लिये टैक्स की दरें घट कर 18 से 20% हो जायेंगी। आगे एफएमसीजी कंपनियों को निवेश की गई राशि पर अधिक लाभ होगा, क्योंकि उनकी डिस्ट्रिब्यूशन कॉस्‍ट कम (2-7 प्रतिशत से घट कर 1.5 प्रतिशत तक) हो जायेगी। और आसान स्‍टोरेज, व सुव्यवस्थित ट्रांसपोर्टेशन एफएमसीजी कंपनियों को लाभ पहुंचायेंगी।

उपभोक्ता पर प्रभाव:

आम खाद्य सामग्री जैसे चावल, गेहूं, सब्जियां, दूध, आदि जीएसटी के दायरे से बाहर हैं, जिससे आम जनता को बड़ी राहत मिलेगी। शहरी उपभोक्ताओं के लिये पैक्ड और फ्रोज़न आइटम जैसे पनीर, मटर, आदि 5% जीएसटी के दायरे में रखी गई हैं। यह दर वर्तमान की 4% के लगभग करीब है। यद्यपि ड्राई फ्रूट्स, चीज़, मक्खन, घी, आदि के दामों में इजाफा होगा, क्योंकि ये सभी 12% जीएसटी के दायरे में रखे गये हैं। जबकि पहले इन पर 5% तक कर लगता था। वहीं कुल मिलाकर एफएमसीजी की बात करें तो आम उपभोक्ता को जीएसटी से लाभ ही प्राप्त होगा।

टेलीकम्यूनिकेशन

टेलीकॉम सेक्टर की कंपनियां लॉजिस्टिक यानी एक जगह से दूसरी जगह ले जाने पर लगने वाले धन को बचा सकते हैं, अगर वे कार्यकुशलता के साथ अपने उत्पादों का प्रबंधन करें। हालांकि छोटी अवधि के लिये जीएसटी इस क्षेत्र के लिये नकारात्मक साबित हो सकता है।

वर्तमान परिस्थिति:

वर्तमान में टेलीकॉम उद्योग से जुड़े उत्पादों पर नकारात्मक असर इसलिये दिखाई दे रहा है क्योंकि कई सारे अप्रत्यक्ष कर इसमें शामिल हैं। टैलीकॉम सेवाओं पर 14% का सेवा कर। साथ में स्‍वच्‍छ भारत सेस (एसबीसी 0.5%) और कृषि कल्‍याण सेस (केकेसी 0.5%)। एसबीसी पर आईटीसी उपलब्‍ध नहीं है और यह केकेसी के विरुद्ध हो सकता है।

जीएसटी का प्रभाव:

जीएसटी के अंतर्गत आने के बाद टेलीकॉम सेवाओं पर कर 18% तक चला गया है। जबकि पहले लगभग 15% था। आगे की बात करें तो मोबाइल फोन पर 12% जीएसटी है, जोकि देसी उत्‍पादनकर्ताओं के लिये कम है।

उपभोक्ता पर प्रभाव:

पोस्ट-पेड मोबाइल प्रयोग करने वाले उपभोक्ताओं को 1000 रुपए से ऊपर के बिल पर 30 रुपए अधिक देने होंगे। वहीं प्रीपेड उपभोक्ताओं को कम टॉकटाइम मिलेगा। आगे आने वाले हैंडसेट की कीमतों में 4-5 प्रतिशत का इजाफा हो सकता है। जीएसटी के अंतर्गत ये 12% के अंतर्गत आते हैं।

रीयल इस्टेट में जीएसटी

जीएसटी के आने से रीयल इस्‍टेट के क्षेत्र में जवाबदेही बढ़ेगी और साथ ही पारदर्शिता आयेगी। इसका लंबे समय में बड़ा फायदा होगा।

वर्तमान परिस्थिति:

रीयल इस्‍टेट अब तक कई प्रकार के करों के बोझ तले दबा हुआ था, जैसे कि एक्‍साइज ड्यूटी, ऑक्‍टरोय और एंट्री टैक्स, आदि। ये सभी वैट और सेवा कर से अलग हैं।जीएसटी के प्रभाव से डेवलपर्स को लाभ मिलेगा। अब तक करीब 16 अलग-अलग अप्रत्यक्ष कर, जिनकी दरें अब तक स्थिर नहीं थीं, उन पर लागू होती थीं। अब 12% जीएसटी के नाम का एक मात्र टैक्स लगेगा। इसमें भूमि की कीमत और निवेशित राशि शामिल होगी। एक अन्‍य बड़ा परिवर्तन कॉन्‍ट्रैक्‍ट पर दिये जाने वाले कार्यों पर जीएसटी दर है। इसे निवेश राशि से अलग किया जा सकता है।

उपभोक्ता पर प्रभाव:

जीएसटी के प्रभाव से डेवलपर्स को थोड़ी राहत मिलेगी, लेकिन यह कहना जल्दबाजी होगा कि आवासीय इकाईयों के दाम गिरेंगे या नहीं। हालांकि जवाबदेही के साथ-साथ पारदर्शिता बढ़ने से कई लोग असहज होंगे, लेकिन लंबे समय में उपभोक्ता को बड़े फायदे मिलेंगे।

ऑटोमोबाइल

ऑटोमोबाइल सेक्टर के लिये जीएसटी कुछ मिक्स्‍ड बैग जैसा है। विभिन्न करों के त्वरित प्रभावों के कम से फायदा मिलेगा। हालांकि जीएसटी के मानक तय होने के बाद ऑटोमोबाइल को 28% के स्लैब में रखा गया है। यानी टू-व्‍हीलर, छोटी व म‍ीडियम साइज की कारों के दाम बढ़ेंगे।

वर्तमान परिस्थिति:

पहले की टैक्स प्रणाली के अंतर्गत ऑटोमोबाइल सेक्‍टर पर वैट, सेल्‍स टैक्स, रोड टैक्स, रजिस्ट्रेशन ड्यूटी, आदि लागू होती थीं। इसके परिणामस्वरूप कुल करों का औसत 26.5% से 44% तक चला जाता था, निर्भर करता है कि आप कौन सा वाहन खरीद रहे हैं।

जीएसटी का प्रभाव:

ऑटोमोबाइल इंडस्‍ट्री में जीएसटी के अंतर्गत कई सारे करों को जोड़ कर एक में कर दिया गया। इससे कई प्रकार की निवेश राशि (सेवा, लागत वस्तुओं, उत्पादित वस्तुओं पर खर्च) का लेनदेन आसान हो जायेगा। सप्लाई चेन मैनेजमेंट के दुरुस्त होने से इस उद्योग की गति बढ़ेगी। अलग-अलग वाहनों के लिये अलग-अलग जीएसटी दनों की घोषणा की गई है। और सेस 1-15% है। इसके परिणामस्‍वरूप 1200 सीसी तक छोटी कारों पर 1% सेस + 28% जीएसटी लगेगा और 1500 सीसी तक वाहनों (मोटरसाइकिल, कार) पर 3% सेस+ 28% जीएसटी लगेगा। और 1500 सीसी या उससे अधिक के वाहनों पर 28% जीएसटी+ 15% सेस लगेगा।

उपभोक्ता पर प्रभाव:

जो लोग छोटी कार खरीदना चाहते हैं, उनके लिये जीएसटी बड़ी सौगात लेकर आया है। जो लोग हाई-पावर इंजन वाली मोटर साइकिल या लग्‍जरी कार खरीदना चाहते हैं उन्‍हें अधिक सेस देना होगा साथ में 28% जीएसटी देना होगा।

और पढ़ें- 'जीएसटी का आपके बिज़नेस पर प्रभाव'

त्वरित प्रभावों की बात करें तो साधारण जीएसटी एक बहुत ही अर्थपूर्ण कर सुधार है जो भारत स्वतंत्रता के बाद पहली बार देख रहा है। जीएसटी के अंतर्राष्‍ट्रीय अनुभवों का अध्‍ययन करने के बाद ही भारत सरकार ने महंगाई-विरोधी बातों को ध्‍यान में रखते हुए जीएसटी को लागू किया है। कुछ क्षेत्र हैं, जहां कर अधिक हो गया है, वे अपने कर को अपनी निवेश राशि का ब्योरा देकर वापस क्‍लेम कर सकते हैं। भारत सरकार का संदेश स्पष्‍ट है। जिस समय जीएसटी भारत में एक बाजार समान बजार तैयार करेगा, उस समय आम ग्राहक पर किसी भी प्रकार के अतिरिक्त कर का बोझ नहीं आयेगा। अलग-अलग क्षेत्रों में कार्यरत व्यापारिक संगठनों से उम्मीद की जा रही है कि वे जनता तक जीएसटी के लाभों को पहुंचायेंगे। उपभोक्ता को सभी फायदा पहुंचाने में यह भले ही थोड़ा समय ले, लेकिन भविष्‍य के लिये यह बेहद उपयोगी है।

कुल मिलाकर जीएसटी के लागेू होने से आम उपभोक्ता को किसी भी प्रकार का त्वरित लाभ नहीं मिलेगा। इसके विरुद्ध हो सकता है आपको उन वस्तुओं एवं सेवाओं की कीमतों में इजाफा दिखाई दे जो 28% की श्रेणी में हैं। हालांकि जीएसटी का मुख्‍य मकसद पूरी पारदर्शिता और समान कर प्रणाली को लागू करते हुए उपभोक्ता को सही लाभ पहुंचाना है।

जीएसटी के लागू होने से असंगठित क्षेत्र भी छोटे हो जायेंगे और उपभोक्ता के सामने बेहतर विकल्प होंगे। अंत में कहना चाहूंगा कि थोड़े समय के लिये यह दर्द भरा हो सकता है, लेकिन लंबे समय में समस्त भारत के उपभोक्ताओं को इससे लाभ होगा।

English summary
The Goods and Services Tax (GST) regime which was introduced in India on July 1 will unify India as a homogenous market. Read impact of GST on key sectors and its ripple effect on the ordinary consumer.
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