काश, पीओके के लोगों भी जोड़ा जाता कश्मीर चुनाव से
नई दिल्ली (विवेक शुक्ला)। मंगलवार की सुबह जम्मू-कश्मीर में पहले चरण के मतदान के दौरान जब पोलिंग बूथ पर लंबी कतारें दिखाई दीं, तो एक सवाल मन में उठा- क्या होता अगर आज पीओके यानी पाकिस्तान अधीकृत कश्मीर में भी पोलिंग हो रही होती? अंग्रेजी भाषी इसे हाईपोथेटिकल सिचुवेशन कहेंगे, लेकिन सच पूछिए तो भारत सरकार का एक बड़ा सपना है कि पीओके भी भारतीय लोकतंत्र का हिस्सा बने।
घाटी में पहले चरण के मतदान में लंबी-लंबी कतारों से साफ है कि वहां पर लोकतंत्र की जड़ें मजबूत हो रही हैं। कश्मीर मामलों के जानकार और पत्रकार अंदलीब अख्तर कहते हैं कि भारत सरकार को पीओके की जनता को भी जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव से जोड़ने की पहल करनी चाहिए थी। क्योंकि पीओके भारत का अभिन्न अंग है। संसद का इस बारे में ध्वनि मत से पारित प्रस्ताव भी है।
पीओके से सीटें आरक्षित
हम आपको बता दें कि यूपीए सरकार के दौर में सरकार के सामने एक प्रस्ताव आया था कि वह लोकसभा के लिए दो और विधानसभा के लिए करीब 15 सीटें पीओके के लिए आरक्षित कर दे। यानी भविष्य में जब भी पीओके का विलय भारत के हिस्से वाले कश्मीर में हो तब वहां पर भी इन सीटों के लिए तुरंत चुनाव होने लगें।
अपनी सरकार चुनने के लिए उमड़ी लोगों की भारी भीड़ बताती है कि घाटी में भी उत्साह का वातावरण है। इससे बड़े बदलाव के संकेत साफ मिल रहे हैं। लोकतंत्र के प्रति लोगों की यह आस्था निश्चित रूप से अलगाववादियों और पाकिस्तान परस्त संगठनों के दुष्प्रचार की हवा निकालने का काम करेगी। हरिभूमि अखबार के संपादक ओमकार चौधरी कहते हैं कि घाटी में जिस तरह से लोग वोटिंग के लिए निकले, उससे साफ है कि वहां भारत की जम्हूरियत के प्रति आस्था व्यक्त की जा रही है। लोग अपने तमाम मसलों के हल लोकतंत्र में हल होते देख रहे हैं।
इसमें कोई शक नहीं है कि कश्मीर में लोकतंत्र की मजबूती को देख पीओके की आम जनता में भी भारत के प्रति विश्वास कई गुना बढ़ जायेगा। और वही विश्वास आगे चलकर भारत की कोशिशों को मजबूती प्रदान करेगा।